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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के पक्ष और विपक्ष में तर्कों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। ऐसे कदम के संवैधानिक और सामाजिक निहितार्थ क्या हैं? (250 शब्द)

    24 Oct, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • विषय के संक्षिप्त परिचय और संदर्भ के साथ उत्तर दीजिये।
    • समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के पक्ष और विपक्ष में तर्कों पर चर्चा कीजिये। साथ ही संवैधानिक एवं सामाजिक निहितार्थों पर भी चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह के संबंध में उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाना LGBTQ+ समुदाय की लंबे समय से चली आ रही मांग है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने वाले फैसले पारित करने से इनकार कर दिया, इसके लिये उसने संसद और राज्य विधानसभाओं को कानून बनाने का आदेश दिया।

    मुख्य भाग:

    भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के पक्ष में तर्क:

    • समानता और मानवाधिकार: भारत का संविधान सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समान सुरक्षा की गारंटी देता है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी माना कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा के अधिकार में यौन अभिविन्यास तथा पहचान का अधिकार भी शामिल है।
    • व्यक्तिगत स्वायत्तता और विकल्प: हादिया केस तथा लता सिंह केस में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि जीवनसाथी चुनने का अधिकार मौलिक अधिकार है। इसलिये समान-लिंग वाले जोड़ों को कानूनी या सामाजिक प्रतिबंधों के अधीन हुए बिना अपना साथी चुनने एवं परिवार बनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिये।
    • सामाजिक न्याय और समावेशन: समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से समान-लिंग वाले जोड़ों को विषमलैंगिक जोड़ों के समान कानूनी अधिकार एवं लाभ मिलेंगे। इससे कलंक और भेदभाव कम होगा, जिससे अंततः LGBTQIA+ समुदाय की भलाई और खुशहाली में वृद्धि होगी।

    भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के विपक्ष तर्क:

    • नैतिकता और धर्म: भारत में कई धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों का मानना है कि समलैंगिकता अप्राकृतिक या पाप है। उन्हें डर है कि समलैंगिक विवाह को अगर कानूनी मान्यता प्राप्त हो गई तो समलैंगिकता वैध हो जाएगी, जिससे संभावित रूप से पारंपरिक नैतिक मूल्यों तथा धार्मिक शिक्षाओं का क्षरण हो सकता है।
    • कानूनी जटिलताएँ: विरोधियों का यह भी तर्क है कि समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिये मौजूदा कानूनों, नीतियों और सामाजिक संरचनाओं में महत्त्वपूर्ण बदलाव की आवश्यकता होगी जो वर्तमान में विषमलैंगिक विवाह पर आधारित हैं। इससे कार्यान्वयन में कानूनी जटिलताएँ तथा चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • व्यावहारिकता एवं व्यवहार्यता: यह भी तर्क दिया जाता है कि यदि कोई पुरुष स्वयं को महिला के रूप में पहचानने लगे तो कानून के समक्ष उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा।

    भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के संवैधानिक और सामाजिक निहितार्थ:

    • संवैधानिक निहितार्थ: समलैंगिक विवाह को वैध बनाना एक संवैधानिक अधिकार और LGBTQ+ समुदाय की गरिमा और समानता को बनाए रखने का एक तरीका माना जा सकता है।
      • हालाँकि संविधान अनुच्छेद 25 के तहत धर्म की स्वतंत्रता भी देता है, जो विभिन्न धार्मिक समुदायों को विवाह, तलाक, विरासत आदि जैसे मामलों को नियंत्रित करने वाले अपने व्यक्तिगत कानून बनाने की अनुमति देता है।
      • इसलिये भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने में कुछ धार्मिक समूहों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है जो समलैंगिकता को पाप या अप्राकृतिक मानते हैं।
    • सामाजिक निहितार्थ: भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के महत्त्वपूर्ण एवं विविध सामाजिक निहितार्थ हैं। यह LGBTQ+ के प्रति हो रहे भेदभाव को कम कर सकता है और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार, समावेशन में वृद्धि तथा कानूनी अधिकार प्रदान कर सकता है।
      • हालाँकि यह प्रतिक्रिया को भी भड़का सकता है, संघर्ष पैदा कर सकता है और सांस्कृतिक मूल्यों को चुनौती दे सकता है, संभावित रूप से सामाजिक सद्भाव तथा विकास को प्रभावित कर सकता है।

    निष्कर्ष:

    भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाना संवैधानिक और सामाजिक प्रभावों वाला एक जटिल मामला है। यह विचारशील विचार, सम्मानजनक संवाद तथा भारतीय संविधान में उल्लिखित लोकतांत्रिक, न्यायपूर्ण एवं गरिमापूर्ण सिद्धांतों पर आधारित निर्णय की मांग करता है।

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