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प्रश्न :
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि विपणन की भूमिका और एक मजबूत कुशल विपणन प्रणाली प्राप्त करने में इसके सामने आने वाली चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने, किसानों और समग्र अर्थव्यवस्था के लाभ तथा कृषि विपणन को बढ़ावा देने के लिये क्या-क्या उपाय किये जा सकते हैं? प्रासंगिक उदाहरणों सहित चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
18 Oct, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- कृषि विपणन प्रणाली का संक्षिप्त विवरण देते हुए उत्तर को प्रारंभ कीजिये।
- एक मज़बूत और कुशल कृषि विपणन प्रणाली को प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- इन चुनौतियों का समाधान करने एवं कृषि विपणन को बढ़ावा देने वाले उपायों का वर्णन कीजये।
- प्रासंगिक उदाहरणों के साथ कृषि विपणन प्रणाली के प्रमुख कारकों को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
खेत से कृषि उत्पादों को खरीदने, बेचने और ग्राहक तक वितरित करने की प्रक्रिया को कृषि विपणन कहा जाता है। इसमें बिचौलियों का एक जटिल नेटवर्क शामिल है, जिसमें कमीशन एजेंट, थोक विक्रेता, खुदरा विक्रेता तथा विभिन्न सरकारी एजेंसियाँ शामिल हैं, जो सभी कृषि वस्तुओं की आवाजाही में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि विपणन की भूमिका बहुआयामी है।
संरचना:
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि विपणन की भूमिका:
- आय सृजन: कृषि विपणन लाखों लोगों के लिये, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आय का स्रोत प्रदान करता है। किसान, व्यापारी, मजदूर और परिवहन कर्मचारी सभी अपनी आजीविका कृषि विपणन प्रणाली से प्राप्त करते हैं।
- लागत का पता लगाना: यह कृषि उपज के लिये उचित मूल्य निर्धारित करने में सहायता करता है, जिससे किसानों को अपने निवेश पर उचित रिटर्न प्राप्त होता है।
- हालाँकि, वर्तमान विपणन प्रणाली प्राय: किसानों को बिचौलियों की स्वेच्छा पर छोड़ देती है, जिसके परिणामस्वरूप मूल्य के आधार पर शोषण होता है।
- बाज़ार तक पहुँच: यह सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों को शहरी बाज़ारों से जोड़ता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कृषि उत्पाद उपभोक्ताओं तक कुशलतापूर्वक पहुँचे। इससे फसल बर्बादी कम होती है तथा आबादी की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने में भी सहायता प्राप्त होती है।
- खाद्य आपूर्ति शृंखला के साथ एकीकरण: कृषि विपणन खाद्य आपूर्ति शृंखला का एक अभिन्न अंग है, जो यह सुनिश्चित करता है कि खाद्य उत्पाद उपभोक्ताओं तक पहुँचे। खाद्य सुरक्षा के लिये एक अच्छी तरह से काम करने वाली विपणन प्रणाली महत्त्वपूर्ण है।
कृषि विपणन में चुनौतियाँ:
- बिचौलियों का शोषण: किसान प्राय:स्वयं को बिचौलियों की स्वेच्छा पर निर्भर होते हैं जो कीमतों में हेर-फेर करते हुए उच्च कमीशन वसूलते हैं। इस शोषण के परिणामस्वरूप किसानों को अंतिम उपभोक्ता मूल्य का न्यूनतम भाग ही प्राप्त होता है।
- बुनियादी ढाँचे की कमी: भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों में शीत भंडारण सुविधाओं और गोदामों जैसी उचित बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। विशेष रूप से खराब होने वाली वस्तुओं के लिये इसके परिणामस्वरूप फसल के बाद अत्यधिक हानि होती है।
- अपर्याप्त बाज़ार जानकारी: समय पर एवं सटीक बाज़ार जानकारी के अभाव में किसानों को अपनी उपज कब और कहाँ बेचनी है, इसके बारे में सूचित निर्णय लेने की क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे और अधिक अक्षमताएँ जन्म लेती हैं।
- अप्रभावी मूल्य खोज तंत्र: प्रचलित मूल्य खोज तंत्र प्राय: त्रुटिपूर्ण होते हैं, जिससे किसानों के लिये कीमतें अस्थिर एवं अप्रत्याशित हो जाती हैं। यह अस्थिरता उनकी आय स्थिरता के लिये महत्त्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न करती है।
- नियामक बाधाएँ: भारत में कृषि विपणन व्यवस्था विभिन्न नियमों के अधीन है, जो बोझिल और जटिल हो सकती है। ये नियम अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न हैं साथ ही किसानों एवं व्यापारियों के सामने आने वाली कठिनाइयों में वृद्धि करते हैं।
चुनौतियों का समाधान करने के उपाय:
- किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को सुदृढ़ बनाना: FPO किसानों को सामूहिक रूप से उनकी उपज का विपणन करने एवं बेहतर कीमतों पर चर्चा करने में सहायता कर सकते हैं। सरकारी समर्थन एवं क्षमता-निर्माण कार्यक्रम FPO की प्रभावशीलता में वृद्धि कर सकते हैं।
- बुनियादी ढाँचे में निवेश: आधुनिक भंडारण सुविधाएँ, परिवहन नेटवर्क और बाज़ार यार्ड विकसित करने से फसल के बाद होने वाली हानि को कम किया जा सकता है साथ ही बाज़ार पहुँच में सुधार किये जा सकता है। किसानों द्वारा उपभोक्ताओं अथव थोक खरीदारों के लिये सीधे विपणन को बढ़ावा देने से बिचौलियों की भूमिका कम हो सकती है और साथ-साथ किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है।
- बाज़ार सूचना प्रणाली: प्रौद्योगिकी-संचालित बाज़ार सूचना प्रणालियों को लागू करने से किसानों को कीमतों के साथ मांग पर वास्तविक समय की जानकारी प्राप्त हो सकती है। e-NAM (राष्ट्रीय कृषि बाज़ार) जैसी पहल सही दिशा में उठाए गए कदम हैं।
- APMC अधिनियमों में सुधार: राज्य सरकारों को कृषि उपज बाज़ार समिति (APMC) अधिनियमों में सुधार करना चाहिये ताकि उन्हें अधिक किसान-अनुकूल बनाया जा सके साथ ही कृषि बाजारों में प्रतिस्पर्धा को भी प्रोत्साहित किया जा सके। नीति निर्माताओं को कृषि विपणन को नियंत्रित करने वाले नियामक ढाँचे की समीक्षा के साथ उसका सरलीकरण करना चाहिये ताकि इसे अधिक निवेशक-अनुकूल एवं कुशल बनाया जा सके।
- अनुबंध खेती: अनुबंध खेती को प्रोत्साहित करने से किसानों को मूल्य स्थिरता के साथ बेहतर प्रौद्योगिकी एवं इनपुट तक पहुँच प्रदान की जा सकती है। इस संबंध में स्पष्ट अनुबंध और विवाद समाधान तंत्र आवश्यक हैं।
उदाहरण:
- गुजरात में अमूल सहकारी समिति: कृषि विपणन सुधार का एक सफल उदाहरण गुजरात में अमूल सहकारी समिति के बारे में है। डेयरी किसानों की सहकारी संस्था के रूप में शुरू हुई अमूल, भारत की सबसे प्रमुख और सफल कृषि विपणन संस्थाओं में से एक बन गई है।
- e-NAM पहल: एक अन्य उल्लेखनीय उदाहरण e-NAM पहल है, जिसका उद्देश्य कृषि वस्तुओं के लिये एकीकृत राष्ट्रीय बाज़ार बनाना है। पारदर्शी मूल्य खोज के साथ व्यापार के लिये एक डिजिटल प्लेटफॉर्म प्रदान करके, e-NAM में विपणन प्रणाली की दक्षता में उल्लेखनीय सुधार करने की क्षमता है।
निष्कर्ष:
कृषि विपणन भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। हालाँकि, इसे विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो इसकी दक्षता तथा किसानों के कल्याण में बाधा उत्पन्न करता है। सुधारों के साथ-साथ बुनियादी ढाँचे में निवेश तथा प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान करने से अधिक मज़बूत एवं कुशल कृषि विपणन प्रणाली को जन्म दिया जा सकता है। इस प्रकार, खाद्य सुरक्षा तथा फसल कटाई के बाद के हानि में कमी सुनिश्चित की जा सकती है, जिससे किसानों, उपभोक्ताओं एवं भारतीय अर्थव्यवस्था समग्र रूप से लाभ प्राप्त होगा। किसानों की आय दोगुनी करने एवं समग्र कृषि क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में कृषि विपणन सुधार एक आवश्यक कदम है।
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