इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के मुद्दे को प्रथम और द्वितीय दोनों विश्व युद्धों के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। विवेचना कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष का एक संक्षिप्त विवरण प्रदान करते हुए शुरुआत कीजिये।
- इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध की घटनाओं की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- आप इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के प्रमुख कारकों और वर्तमान संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता का सारांश देकर निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष एक जटिल और लंबे समय से चला आ रहा विवाद है जिसकी शुरुआत 19वीं सदी के अंत एवं 20वीं सदी की शुरुआत में हुई थी। यह संघर्ष प्रत्यक्ष रूप से प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के कारण नहीं हुआ था बल्कि उन्होंने उन घटनाओं और स्थितियों को आकार देने में अहम भूमिका निभाई जिसके कारण वर्ष 1948 में इज़राइल अस्तित्व में आया तथा इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष शुरू हुआ।
रूपरेखा:
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को बढ़ाने में प्रथम विश्व युद्ध की भूमिका:
- साइक्स-पिकोट समझौता (1916): यह गुप्त समझौता ब्रिटेन और फ्राँस के मध्य हुआ था। इस समझौते में प्रभावी ढंग से मध्य पूर्व को भविष्य के ब्रिटिश और फ्राँसीसी नियंत्रण अथवा प्रभाव के क्षेत्रों में विभाजित किया गया जिससे इस क्षेत्र के भविष्य का भू-राजनीतिक परिदृश्य प्रभावित हुआ।
- बाल्फोर घोषणा (1917): वर्ष 1917 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने बाल्फोर घोषणा (Balfour Declaration) जारी की थी जिसमें फिलिस्तीन में ‘यहूदी लोगों के लिये राष्ट्रीय गृह’ (National home for the Jewish people) की स्थापना के लिये समर्थन व्यक्त किया गया था।
- यहूदी आप्रवासन: फिलिस्तीन में यहूदी आप्रवासन और अवस्थापन के लिये आधार तैयार कर बाल्फोर घोषणा ने संबद्ध क्षेत्र के भविष्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया तथा यहूदी गृह राज्य की मांग को बढ़ावा दिया।
- ओटोमन साम्राज्य: साइक्स-पिकोट समझौते ने ओटोमन साम्राज्य को आगे बढ़ाने में मदद की तथा फिलिस्तीन में ब्रिटिश जनादेश के लिये आधार तैयार किया। अंततः इस जनादेश ने मुद्दे/संघर्ष को और अधिक ध्रुवीकृत करने एवं मुसलमानों के बीच इज़राइल के प्रति विरोध को भड़काने का काम किया।
- राष्ट्र संघ का आदेश: प्रथम विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप ओटोमन साम्राज्य का पतन हुआ, जिसने सदियों से इस क्षेत्र को नियंत्रित किया था। युद्ध के बाद के समझौते के कारण राष्ट्र संघ ने ब्रिटेन को फिलिस्तीन पर शासन करने का अधिकार दे दिया, जिससे क्षेत्र की जनसांख्यिकी व राजनीतिक गतिशीलता और भी प्रभावित हुई।
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में द्वितीय विश्व युद्ध की भूमिका:
- यहूदियों का नरसंहार: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नरसंहार की भयावहता ने फिलिस्तीन में यहूदियों के आप्रवासन को बढ़ा दिया, जिन्होंने शरण और मातृभूमि की मांग की। ब्रिटिश सरकार को यहूदी और अरब दोनों के दबाव का सामना करना पड़ा, जिससे तनाव एवं हिंसा बढ़ गई।
- संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना (1947): द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन के लिये एक विभाजन योजना का प्रस्ताव रखा, जिसमें यरूशलम के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन के साथ-साथ संबद्ध क्षेत्र को अलग-अलग यहूदी व अरब राज्यों में विभाजित करने की सिफारिश की गई।
- अरब-इज़राइल युद्ध: संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना को यहूदी नेताओं ने स्वीकार कर लिया किंतु अरब नेताओं ने इसके प्रति असहमति जताई, जिससे वर्ष 1948 का अरब-इज़राइल युद्ध हुआ, जिसने संघर्ष को और अधिक तीव्र बना कर मुद्दे का राजनीतिकरण कर दिया तथा वर्ष 1967 एवं वर्ष 1973 में युद्ध की नींव रखी।
- इज़राइल की उत्पत्ति: युद्ध के बाद वर्ष 1948 में इज़राइल राष्ट्र की स्थापना से इस संघर्ष को नया आयाम मिला।परिणामस्वरूप हज़ारों फिलिस्तीनी अरबों को विस्थापन के लिये विवश होना पड़ा एवं इज़राइलियों और फिलिस्तीनियों के बीच तनाव बढ़ गया।
वर्तमान परिदृश्य:
- वेस्ट बैंक मुद्दा: इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष दशकों से जारी है, जिसमें कई युद्ध, विद्रोह, शांति वार्ता और चल रही हिंसा शामिल है। इसमें मुख्य रूप से भूखंड, शरणार्थी, यरूशलम, सुरक्षा और मान्यता जैसे मुद्दे शामिल हैं। वेस्ट बैंक में इज़रायली बस्तियों के निर्माण से भी संघर्ष बढ़ गया है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अवैध माना जाता है।
- फिलिस्तीन लिबरेशन आर्गेनाईज़ेशन (PLO) की स्थापना: PLO की स्थापना वर्ष 1964 में फिलिस्तीनियों के हितों को कायम रखने तथा उन्हें आत्मनिर्णय का अधिकार प्रदान करने के लिये की गई थी, जिसने इज़राइल के खिलाफ कई युद्धों को प्रेरित किया एवं पड़ोसी देशों की भागीदारी ने इस मुद्दे को बहुआयामी बना दिया।
- हमास: वर्ष 1987 में संगठित इस संगठन ने हिंसक माध्यमों और युद्ध रणनीति का उपयोग कर दो-राष्ट्र राज्य के फिलिस्तीनी उद्देश्य एवं गाज़ा पट्टी पर उनकी पूर्ण संप्रभुता की बहाली का समर्थन करने के लिये कार्य किया है।
निष्कर्ष:
हालाँकि इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष सीधे तौर पर प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के कारण नहीं हुआ था किंतु युद्ध के कारण इसके उद्भव को आधार मिला जिसने इसकी उत्पत्ति एवं निरंतरता में अहम भूमिका निभाई। बाल्फोर घोषणा, साइक्स-पिकोट समझौता एवं द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम ने इस क्षेत्र के भू-राजनीतिक परिदृश्य तथा नृजातीय, धार्मिक और राजनीतिक विभाजन को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जो आज भी संघर्ष को बढ़ावा दे रहे हैं। यह मुद्दा बहुआयामी है तथा गहनता से जुड़ा हुआ है, ऐतिहासिक घटनाओं और चल रहे विवादों ने इसकी जटिलता में योगदान दिया है। यह मुद्दा अपनी बहुआयामी प्रकृति का है एवं इसकी गहरी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान में चल रहे विवाद इसको और अधिक जटिल बनाते हैं।