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प्रश्न :
श्री वर्मा, एक प्रतिष्ठित आईएएस अधिकारी, अपनी ईमानदारी और लोक सेवा के प्रति प्रतिबद्धता के लिये जाने जाते हैं। जिन्होंने विभिन्न विकास परियोजनाओं और नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये ख्याति अर्जित की है। बीते वर्षों में, उन्होंने राज्य के समक्ष आने वाली चुनौतियों की गहरी समझ विकसित की है, जिसमें भ्रष्टाचार, अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल और शैक्षणिक सुविधाएँ और बेरोज़गारी के मुद्दे शामिल हैं। अपने दृढ़ कर्त्तव्य परायणता की भावना और सार्थक परिवर्तन लाने की इच्छा से प्रेरित होकर, श्री वर्मा ने राजनीतिक स्तर पर इन मुद्दों को संबोधित करने के लिये चुनाव लड़ने का फैसला किया।
हालाँकि, राज्य सरकार ने यह तर्क देते हुए उनका इस्तीफा स्वीकार करने से इंकार कर दिया कि उनकी विशेषज्ञता और अनुभव, चल रही विकास परियोजनाओं के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। उनका दावा है कि उन्हें चुनाव में भाग लेने की अनुमति देने से राज्य की प्रशासनिक स्थिरता बाधित होगी।
A. मामले में कौन से नैतिक मुद्दे शामिल हैं?
13 Oct, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
B. जब चुनावों में भाग लेने की बात आती है तो सिविल सेवकों के लिए क्या दिशानिर्देश हैं?उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मामले को संक्षेप में समझाते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- श्री वर्मा द्वारा सामना की जाने वाली नैतिक दुविधाओं की सूची बनाइये और उनका वर्णन कीजिये।
- चुनाव लड़ने के इच्छुक सिविल सेवक हेतु नियमों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
श्री वर्मा सिविल सेवा से जुड़े होने की वजह से नैतिक और पेशेवर दुविधाओं में उलझे हुए हैं, एक सिविल सेवक के रूप में इस उलझन ने उनकी भूमिका की मूलभूत प्रकृति पर सवाल खड़ा कर दिया है।
सार्वजनिक हित में सेवा करने और सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने की दृढ़ व्यक्तिगत प्रतिबद्धता के साथ श्री वर्मा को राज्य सरकार के प्राधिकार का सम्मान करते हुए सिविल सेवा के कड़े नियमों एवं विनियमों का पालन करने की जटिल वास्तविकता का सामना करना पड़ता है।
रूपरेखा:
A. श्री वर्मा के मामले में नैतिक मुद्दे:
- हितों का टकराव: एक आईएएस अधिकारी और राजनीतिक उम्मीदवार के रूप में श्री वर्मा की दोहरी भूमिकाएँ उनके सार्वजनिक कर्त्तव्यों एवं व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं के बीच टकराव का कारण बन सकती हैं, जिससे उनकी निष्पक्षता तथा निर्णय लेने की क्षमता पर प्रभाव पड़ सकता है।
- सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग: इस बात की भी काफी संभावना है कि श्री वर्मा अपने राजनीतिक अभियान के लिये कर्मचारियों और सुविधाओं जैसे सरकारी संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं, जो अनैतिक व करदाताओं के धन का दुरुपयोग भी हो सकता है।
- सार्वजनिक सेवा क्षेत्र को कमज़ोर करना: राज्य सरकार का दावा है कि कार्याधीन विकास परियोजनाओं के लिये श्री वर्मा की विशेषज्ञता काफी महत्त्वपूर्ण है। यह श्री वर्मा के जाने के बाद सार्वजनिक सेवा वितरण और विकास लक्ष्यों के बाधित होने संबंधी नैतिक दुविधाओं को भी उजागर करता है।
- जनता का विश्वास और जवाबदेही: श्री वर्मा की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं से सरकारी एजेंसियों में जनता के विश्वास और जवाबदेही पर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे सिविल सेवा पर राजनीतिक प्रभाव अथवा पक्षपात के आरोप लग सकते हैं।
- निष्पक्षता और समान अवसर: राज्य सरकार द्वारा श्री वर्मा का इस्तीफा स्वीकार करने से इनकार किये जाने को उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के निष्पक्ष और समान अवसर से वंचित करने के रूप में देखा जा सकता है, जो व्यक्तिगत अधिकारों एवं लोकतंत्र के सिद्धांतों को लेकर सवाल खड़े कर सकता है।
- कानूनी और नैतिक दायित्व: एक आईएएस अधिकारी के रूप में श्री वर्मा के लिये नैतिक दिशा-निर्देश एवं आचार संहिता बाध्यकारी है। एक लोक सेवक के तौर पर अपने कानूनी उत्तरदायित्वों तथा नैतिक दायित्वों के बीच संतुलन बनाना बड़ी चुनौती है।
B. चुनाव लड़ने के इच्छुक सिविल सेवक हेतु दिशा-निर्देश:
- केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964, जो कि केंद्र सरकार के सिविल कर्मचारियों पर लागू होते हैं, के अनुसार कोई भी सरकारी कर्मचारी, सरकार की पूर्व अनुमति के बिना किसी विधायी अथवा स्थानीय प्राधिकार के लिये चुनाव नहीं लड़ सकता है।
- इन दिशा-निर्देशों के अनुसार सरकारी कर्मचारी निम्नलिखित कार्य नही कर सकते:
- चुनाव में किसी भी उम्मीदवार के लिये प्रचार करना।
- चुनाव के संबंध में अपने प्रभाव का प्रयोग करना।
- निर्वाचित पद धारण करना।
- इन दिशा-निर्देशों के अनुसार सरकारी कर्मचारी निम्नलिखित कार्य नही कर सकते:
- यही नियम अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 द्वारा शासित अखिल भारतीय सेवाओं (आईएएस, आईपीएस और आईएफओएस) पर भी लागू होता है।
- यदि कोई सरकारी कर्मचारी इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उसका चयन अवैध माना जा सकता है और उसे अपना निर्वाचित पद छोड़ना पड़ सकता है। संबद्ध अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जा सकती है तथा उस पर CCS (CCA) नियम, 1965 के तहत निर्धारित उचित दंड भी लगाया जा सकता है।
- जो सिविल सेवक चुनाव लड़ना चाहते हैं उन्हें अपना नामांकन पत्र दाखिल करने से पहले अपनी सेवा से इस्तीफा देना पड़ता है। उन्हें चुनाव अवधि के दौरान भारत निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आदर्श आचार संहिता का भी पालन करना अनिवार्य होता है।
निष्कर्ष:
श्री वर्मा द्वारा सामना किये गए नैतिक और पेशेवर चुनौतियों के आलोक में ध्यान देने योग्य बात यह है कि हमें अपने कार्यों के संभावित परिणामों पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिये, किसी भी मामले पर खुला संवाद करना चाहिये, और जनता के हितों, लोकतांत्रिक प्रक्रिया और सिविल सेवक के रूप में अपने नैतिक मूल्यों पर केंद्रित एक संतुलित दृष्टिकोण को अपनाना चाहिये।
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