भारत की अर्थव्यवस्था, ऊर्जा सुरक्षा एवं विदेश नीति पर चल रहे इज़राइल-हमास संघर्ष के परिणामों का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- इज़राइल-हमास संघर्ष का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत पर इस संघर्ष के संभावित प्रभावों को बताते हुए इसके समाधान हेतु कुछ उपायों पर भी चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
चल रहे इज़राइल-हमास संघर्ष के भारत की अर्थव्यवस्था, ऊर्जा सुरक्षा एवं विदेश नीति के संदर्भ में व्यापक प्रभाव हैं। भारत के इज़राइल एवं फिलिस्तीन के साथ-साथ क्षेत्र के अन्य देशों जैसे सऊदी अरब, ईरान तथा तुर्की के साथ मज़बूत संबंध हैं। भारत अपने कुल उपभोग में से 80% तेल हेतु आयात पर निर्भर रहता है, इस मांग को पूरा करने के लिये भारत तेल आयात के लिये मध्य पूर्व पर बहुत अधिक निर्भर है।
मुख्य भाग:
भारत पर इस संघर्ष के कुछ संभावित प्रभाव:
- व्यापार संबंध: इस संघर्ष के बढ़ने से इज़राइल के साथ भारत के व्यापार पर असर पड़ सकता है (खासकर रक्षा उपकरण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में)। इज़राइल, भारत की रक्षा प्रौद्योगिकी का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता देश है और इस व्यापार संबंध में कोई भी व्यवधान भारत की रक्षा तैयारियों को प्रभावित कर सकता है।
- कूटनीतिक चुनौतियाँ: भारत ने परंपरागत रूप से इज़राइल और अरब देशों के प्रति अपनी विदेश नीति में एक संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखा है। यदि यह संघर्ष बढ़ता है और अन्य अरब देश इसमें शामिल होते हैं तो इससे भारत के लिये राजनयिक चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं। इससे भारत को इज़राइल के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना और अरब देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना अधिक जटिल हो सकता है।
- मध्य पूर्व के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंध: मध्य पूर्व के साथ भारत के आर्थिक एवं रणनीतिक संबंधों का महत्त्व बढ़ गया है (खासकर भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे जैसी पहल के संदर्भ में)। यदि यह संघर्ष तीव्र होता है और इसमें हिजबुल्लाह एवं ईरान जैसे अन्य क्षेत्रीय हितधारक शामिल होते हैं, तो इससे पश्चिम एशियाई क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ सकती है।
- ऊर्जा आपूर्ति: पश्चिम एशियाई क्षेत्र भारत के लिये ऊर्जा आयात का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। इस क्षेत्र की स्थिरता में कोई भी व्यवधान संभावित रूप से भारत की ऊर्जा आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है, जिससे आर्थिक चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं।
- भारतीय प्रवासियों का कल्याण: भारत का बड़ा प्रवासी समूह विभिन्न मध्य पूर्वी देशों में कार्यरत है। यदि यह संघर्ष बढ़ता है तो इन भारतीय नागरिकों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
भारत को अपनी विदेश नीति में विभिन्न कारकों एवं हितों पर विचार करना चाहिये। हालाँकि इस संदर्भ में कुछ संभावित सुझाव निम्नलिखित हैं:
- भारत को पहले की तरह संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों एवं अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुरूप, इज़राइल तथा फिलिस्तीन के संदर्भ में टू स्टेट सॉल्यूशन को बरकरार रखना चाहिये।
- भारत को अमेरिका, सऊदी अरब एवं यूएई जैसे देशों के साथ सुरक्षा, विकास के क्षेत्रों में संबंधों को मज़बूत करने के लिये रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखना चाहिये।
- भारत, शांति को बढ़ावा देने, बातचीत को प्रोत्साहित करने और गाजा, इज़राइल तथा उसके प्रवासियों को मानवीय सहायता प्रदान करने हेतु अपने राजनयिक प्रभाव का लाभ उठा सकता है।
- भारत को इस संघर्ष को हल करने के लिये मिस्र, जॉर्डन, तुर्की, रूस, चीन और यूरोपीय संघ के साथ साझेदारी पर विचार करना चाहिये तथा पश्चिम एशियाई शांति को बढ़ावा देने के लिये अपनी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थिति एवं गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेतृत्व जैसे दृष्टिकोण का उपयोग करना चाहिये।
निष्कर्ष:
अतः इस संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान एवं इस क्षेत्र में स्थिरता, भारत के हित में है। भारत को अपने कूटनीतिक प्रभाव का उपयोग करते हुए दोनों पक्षों से संयम बरतने और बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह करना चाहिये। भारत को मानवीय सहायता को सुविधाजनक बनाने एवं आगे की हिंसा को रोकने के लिये अन्य क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों के साथ भी समन्वय करना चाहिये।