भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए FDI में आई हालिया गिरावट के कारणों का विश्लेषण कीजिये। भारत में FDI बढ़ाने हेतु उपचारात्मक सुझाव दीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपने उत्तर की शुरुआत एक संक्षिप्त परिचय के साथ विशेषकर विकास और FDI प्रवाह से संबंधित कुछ आंकड़ों को देकर कीजिये।
- भारत के लिये FDI के महत्त्व की गणना कीजिये।
- FDI में गिरावट के कारण और आवश्यक उपचारात्मक उपायों की गणना कीजिये।
- अपने उत्तर के मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष निकालिये और भारत के लिये FDI के महत्त्व को दोहराएँ।
|
परिचय:
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) एक प्रकार का सीमा पार निवेश है जिसमें एक देश का निवेशक दूसरे देश के किसी उद्यम में स्थायी रुचि स्थापित करता है। वैश्विक निवेश रिपोर्ट 2023 के अनुसार, वर्ष 2022 में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह में 12% की गिरावट आई है।
मुख्य भाग:
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का महत्त्व:
- आर्थिक विकास: FDI बुनियादी ढाँचे, औद्योगिक विस्तार और तकनीकी उन्नति के लिये विदेशी पूंजी लगाकर आर्थिक विकास को गति देता है। जैसे FDI, PLI आदि के कारण भारत में सिलिकॉन चिप्स का निर्माण करना।
- रोज़गार सृजन: FDI रोज़गार प्रदान करता है, जिससे भारत की जनसंख्या संबंधी चुनौतियों जैसे बेरोज़गारी और गरीबी को कम करने में सहायता मिलती है।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: बहुराष्ट्रीय निगम उन्नत प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता लाते हैं, जैसे फ्रांस से ब्रह्मोस एवं जेट इंजन या पनडुब्बी जो घरेलू नवाचार को बढ़ावा देते हैं।
- भुगतान संतुलन: FDI विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाता है, जो आर्थिक स्थिरता और व्यापार घाटे के प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- औद्योगिक विकास: यह विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में विकास को प्रोत्साहित करता है और "मेक इन इंडिया" पहल के साथ संरेखित करता है। जैसे हवाई जहाज़ निर्माण में एयरबस का टाटा के साथ निवेश करना।
- वैश्विक एकीकरण: FDI भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकीकृत करता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
FDI प्रवाह में गिरावट के कारण:
- अमेरिका और यूरोप में उच्च मुद्रास्फीति और मांग में कमी: इन कारकों ने निवेश गंतव्य के रूप में भारत के आकर्षण को कम कर दिया है।
- नई नीति सुधार और राज्य-स्तरीय सुधारों का अभाव: हाल के वर्षों में FDI नियमों को उदार बनाने या राज्य स्तर पर कारोबारी माहौल में सुधार के लिये कुछ कदम उठाए गए हैं।
- वैश्विक निराशावाद: वैश्विक निराशावाद सीमा पार विलय और अधिग्रहण (M&A) में बड़ी गिरावट का एक महत्त्वपूर्ण कारण है। पश्चिमी निगम बड़े निवेश करने को लेकर सतर्क होते हैं।
- भू-राजनीति: भू-राजनीतिक रणनीतियाँ भी महत्त्वपूर्ण होती है। भारत ने चीन के साथ वर्ष 2020 की सीमा झड़पों के बाद चीनी FDI से सावधान रहना शुरू कर दिया था।
- तकनीकी और अन्य उद्योग: FDI में गिरावट प्रौद्योगिकी से परे उद्योगों को प्रभावित करती है।
- नीतिगत अनिश्चितता: निवेशकों को अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है और बीच में ही नीतिगत बदलावों का सामना करना पड़ता है।
- प्रतिस्पर्धा का असमान स्तर: असमानताएँ निवेश को हतोत्साहित करती हैं।
- व्यापार समझौतों से अनुपस्थिति: RCEP जैसे समझौतों से भारत की अनुपस्थिति और यूरोपीय संघ के व्यापार सौदों की कमी FDI आकर्षण में बाधा बनती है।
- बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा निवेशकों को, विशेषकर लॉजिस्टिक्स और ऊर्जा क्षेत्रों में, रोकता है।
FDI बढ़ाने के लिये उपचारात्मक उपाय:
- स्थिर और पूर्वानुमेय नीतियाँ: एक स्थिर और पूर्वानुमेय नियामक वातावरण सुनिश्चित करना।
- व्यवसाय करने में आसानी: प्रक्रियाओं को सरल करना, नौकरशाही को कम करना और व्यवसाय करने में सरलता लाना ।
- बुनियादी ढाँचे में निवेश: FDI का समर्थन करने के लिये परिवहन, ऊर्जा और डिजिटल बुनियादी ढाँचे का विकास करना।
- व्यापार समझौतों में भागीदारी: बेहतर बाज़ार पहुँच के लिये क्षेत्रीय और द्विपक्षीय व्यापार समझौतों में संलग्न होना।
- 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देना: PLI योजना जैसी पहल के माध्यम से विनिर्माण निवेश को प्रोत्साहित करना।
- निवेशक की सुरक्षा: निवेशक सुरक्षा तंत्र और विवाद समाधान प्रणाली को मज़बूत करना।
- कौशल विकास: प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और नवाचार का समर्थन करने के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करना।
निष्कर्ष:
भारत की आर्थिक वृद्धि के लिये FDI को बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि, भारत को अपनी वृद्धि के लिये केवल FDI और विदेशी निवेश पर निर्भर नहीं रहना चाहिये बल्कि निवेश के अन्य स्रोतों का भी पता लगाना चाहिये।