विशेषकर पराली जलाने के संदर्भ में, वायु प्रदूषण के कारकों पर चर्चा कीजिये? इसके प्रभावों को कम करने हेतु कौन से उपाय किये जा सकते हैं? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- वायु प्रदूषण और पराली जलाना शब्द को परिभाषित करते हुए प्रारंभ कीजिये।
- बताइये कि पराली जलाने से किस प्रकार वायु प्रदूषण होता है।
- किये जाने वाले उपचारात्मक उपायों का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिये।
- अपने उत्तर के मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय: वायु प्रदूषण, जिसे वायुमंडल में हानिकारक पदार्थों की उपस्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है, मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं समग्र कल्याण के लिये एक बड़ा खतरा उत्पन्न करता है।
धान, गेहूँ आदि जैसे अनाजों की कटाई के बाद बची हुई पराली दहन की प्रक्रिया वायु प्रदूषण की समस्या को बढ़ाती है।
मुख्य भाग:
पराली दहन से वायु प्रदूषण:
- पार्टिकुलेट मैटर (PM): पराली दहन से वायु में बारीक पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 और PM10) निकलते हैं, जिससे श्वसन संबंधी समस्याएँ होती हैं तथा दृश्यता कम हो जाती है।
- ग्रीनहाउस गैसें: पराली दहन से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और मीथेन (CH4) जैसी ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं, जो जलवायु परिवर्तन में योगदान करती हैं।
- ज़हरीली गैसें: नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) जैसी हानिकारक गैसें निकलती हैं, जो स्वास्थ्य के लिये खतरा उत्पन्न करती हैं तथा अम्लीय वर्षा का कारण बनती हैं। ये द्वितीयक एरोसोल और ओज़ोन भी बना सकते हैं।
- वायु की गुणवत्ता में कमी: सामूहिक रूप से पराली दहन से वायु की गुणवत्ता खराब हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप धुंध बनती है तथा दृश्यता कम होती है। भारत का वर्तमान वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 80 (मध्यम) है, लेकिन भीषण गर्मी के मौसम में यह गुणवत्ता बहुत खराब स्तर तक पहुँच सकती है।
शमन के उपाय:
- वैकल्पिक कृषि पद्धतियाँ: किसानों को बिना जुताई वाली खेती, सीधी बुआई या फसल अवशेष प्रबंधन जैसी पद्धतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने से पराली दहन की आवश्यकता कम हो जाती है, जिससे मृदा गुणवत्ता और फसल उत्पादकता को लाभ होता है।
- मशीनीकरण: अवशेष प्रबंधन के लिये हैप्पी सीडर ( Happy Seeder) और बेलर (Balers) जैसी आधुनिक मशीनरी को बढ़ावा देने से फसल अवशेषों का स्वच्छ निपटान सुनिश्चित होता है।
- सब्सिडी और प्रोत्साहन: वित्तीय प्रोत्साहन तथा सब्सिडी पराली दहन के कारण पड़ने वाले आर्थिक दबाव को कम कर सकते हैं। उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 में पराली दहन न करने के लिये प्रति एकड़ 2,400 रुपए देने की योजना प्रस्तावित की गई थी, लेकिन फंडिंग की कमी के कारण इसे लागू नहीं किया गया।
- जागरूकता और शिक्षा: मास मीडिया, सोशल मीडिया, कार्यशालाएँ तथा विशेषज्ञ प्रदर्शन किसानों को पराली दहन के हानिकारक प्रभावों और वैकल्पिक प्रथाओं के लाभों के बारे में शिक्षित करने के उपकरण हैं।
- कानूनी प्रवर्तन: पराली दहन के लिये नियमों तथा दंडों को सख्ती से लागू करना, उपग्रह या ड्रोन से निगरानी करना, उल्लंघन करने वालों के लिये ज़ुर्माना, कारावास या सब्सिडी रोकना।
- फसल विविधीकरण: किसानों को फसलों में विविधता लाने के लिये प्रोत्साहित करने से धान के भूसे की सघनता को कम किया जा सकता है, जो पराली दहन का एक प्रमुख कारण है।
निष्कर्ष:
वायु प्रदूषण, विशेषकर पराली दहन से, सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को खतरा है। शमन प्रयासों में इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे से निपटान तथा प्रभावित क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता बढ़ाने हेतु कृषि प्रथाओं में बदलाव, आर्थिक प्रोत्साहन, जागरूकता अभियान और सख्त कानूनी उपाय शामिल होने चाहिये।