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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल ही में कई राज्यों के राज्यपालों के आचरण पर सवाल उठाए गए हैं, जिससे उनके कार्यों के संवैधानिक औचित्य के संदर्भ में संदेह पैदा हो गया है। इस संबंध में भारत में राज्यपाल के पद की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

    03 Oct, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • राज्यपाल के पद का संक्षिप्त परिचय देने के साथ उसकी भूमिका एवं महत्त्व का उल्लेख करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • राज्यपाल के पद की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये।
    • आप राज्यपाल के पद के वैध कार्यों एवं शक्ति के दुरुपयोग की संभावना के बीच संतुलन की आवश्यकता पर बल देते हुए निष्कर्ष दे सकते हैं।

    परिचय:

    भारत में राज्यपाल का पद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 के तहत एक संवैधानिक पद है। राज्यपालों को भारत के राष्ट्रपति द्वारा राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के औपचारिक प्रमुख के रूप में नियुक्त किया जाता है। हाल के दिनों में राज्यपाल के पद ने कई विवादों को जन्म दिया है, जैसे- केरल और तमिलनाडु में राज्यपाल और CoM के बीच विवाद।

    मुख्य भाग:

    राज्यपाल के पद की आवश्यकता का मूल्यांकन विभिन्न दृष्टिकोणों से किया जा सकता है:

    • संवैधानिक सत्यनिष्ठा का संरक्षण: राज्यपाल का पद भारतीय संघीय ढाँचे की संवैधानिक सत्यनिष्ठा को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राज्यपाल संघ और राज्यों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि राज्य सरकारें संवैधानिक ढाँचे के तहत कार्य करें। उनकी यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि राज्य विधानसभाएँ और सरकारें अपनी संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन न करें।
    • नियंत्रण और संतुलन: राज्यपाल की उपस्थिति से राज्यों में नियंत्रण और संतुलन की प्रणाली स्थापित होती है। यदि उन्हें लगता है कि कानून असंवैधानिक है या संघवाद के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है तो उनके पास राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर अपनी सहमति रोकने का अधिकार है। इससे सुनिश्चित होता है कि राज्य इस तरह से कार्य न करें जिससे राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को खतरा हो।
    • राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व: राज्यपाल, राज्य स्तर पर राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारतीय गणराज्य की संघीय प्रकृति को मज़बूत करता है और भारत के विविध राज्यों के बीच एकता एवं साझा पहचान की भावना बनाए रखने में मदद करता है।
    • मुख्यमंत्री की नियुक्ति: किसी राज्य के मुख्यमंत्री की नियुक्ति में राज्यपाल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे राज्य विधानसभा में बहुमत दल या गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिये आमंत्रित करने के लिये ज़िम्मेदार हैं। यह प्रक्रिया सत्ता के सुचारु परिवर्तन में मदद करती है और यह सुनिश्चित करती है कि मुख्यमंत्री को विधायिका का विश्वास प्राप्त हो।
    • आपातकालीन शक्तियाँ: संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राज्यपालों को आपातकालीन शक्तियाँ सौंपी जाती हैं, जो उन्हें संवैधानिक तंत्र के असंतुलित होने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने की अनुमति देती हैं। यह राज्य सरकारों द्वारा सत्ता के संभावित दुरुपयोग के खिलाफ एक सुरक्षा उपाय है।
    • सहकारी संघवाद को बढ़ावा: राज्यपालों की उपस्थिति संघ और राज्यों के बीच संचार एवं समन्वय को सुविधाजनक बनाकर सहकारी संघवाद को बढ़ावा देती है। यह सहयोगात्मक तरीके से संसाधनों, विशेषज्ञता एवं ज़िम्मेदारियों को साझा करने को प्रोत्साहित करता है।
    • सलाहकार की भूमिका: राज्यपाल अक्सर अपने अनुभव और अंतर्दृष्टि के आधार पर विभिन्न मामलों पर राज्य सरकार को बहुमूल्य सलाह देते हैं। यह सलाहकारी भूमिका सुशासन और लोगों के कल्याण को सुनिश्चित करने में विशेष रूप से उपयोगी हो सकती है।

    निष्कर्ष:

    हालाँकि कुछ राज्यपालों के आचरण से जुड़े हालिया विवादों ने राजनीतिक उद्देश्यों के लिये उनकी शक्तियों के दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। कार्यालय के वैध कार्यों और दुरुपयोग की संभावना के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। राज्यपालों की नियुक्ति और कार्यप्रणाली में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे संघवाद और संवैधानिक औचित्य के सिद्धांतों के अनुसार कार्य करें।

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