सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र, विशेषकर एमएसएमई की बढ़ी हुई हिस्सेदारी तीव्र आर्थिक विकास के लिये आवश्यक है। इस संबंध में सरकार की वर्तमान नीतियों पर टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत MSME पर ध्यान केंद्रित करते हुए विनिर्माण क्षेत्र के महत्त्व से कीजिये। आप प्रासंगिक डेटा और आँकड़ों के साथ अपने परिचय की पुष्टि कर सकते हैं।
- विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने और सकल घरेलू उत्पाद में MSME की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न नीतिगत उपायों पर चर्चा कीजिये।
- इन नीतिगत उपायों के प्रभावों का उल्लेख करते हुए उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
तेज़ आर्थिक विकास के लिये सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र, विशेषकर MSME की हिस्सेदारी बढ़ाने की आवश्यकता है। ऐसा इसलिये है क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र आर्थिक विकास, रोज़गार और निर्यात का एक प्रमुख चालक है। यह आयात पर निर्भरता कम करने तथा भुगतान संतुलन में सुधार करने में भी मदद करता है।
भारत में MSME क्षेत्र 100 मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करता है और विनिर्माण उत्पादन का 45% तथा देश के निर्यात का 40% से अधिक हिस्सा है। यह क्षेत्र विनिर्माण सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6% एवं सेवा गतिविधियों का 25% योगदान देता है। MSME बड़े उद्यमों की तुलना में अधिक तेज़ व नवोन्मेषी हैं, और ये बदलती बाज़ार स्थितियों के लिये जल्दी से अनुकूल हो सकते हैं।
मुख्य भाग:
सरकार ने विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने और सकल घरेलू उत्पाद में MSME की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये कई कदम उठाए हैं। इसमे निम्नलिखित पहलें शामिल हैं:
- मेक इन इंडिया: वर्ष 2014 में शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य निवेश की सुविधा, नवाचार को बढ़ावा देना, कौशल विकास को बढ़ाना और अनुकूल व्यापारिक वातावरण/व्यावसायिक परिवेश बनाकर भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदलना है।
- राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (NMP): यह एक व्यापक नीति है जिसे एक दशक के भीतर सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी को 25% तक बढ़ाने और 100 मिलियन नौकरियाँ उत्पन्न करने के उद्देश्य से वर्ष 2011 में शुरू किया गया था। यह एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप के रूप में राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र (NIMZ) स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन भी प्रदान करता है।
- MSME विकास अधिनियम, 2006: यह अधिनियम भारत में MSME के प्रचार और विकास के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। यह MSME के वर्गीकरण के मानदंडों को परिभाषित करता है, पंजीकरण और ऋण सुविधाएँ प्रदान करता है तथा MSME हेतु एक राष्ट्रीय बोर्ड की स्थापना करता है।
- MSE के लिये सार्वजनिक खरीद नीति, 2012: यह नीति अनिवार्य करती है कि केंद्रीय मंत्रालयों और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल वार्षिक खरीद का 25% MSE से होना चाहिये जिसमें से 4% SC/ST के स्वामित्व वाले MSE से एवं 3% महिला स्वामित्व वाले MSE से होना चाहिये। यह MSE के लिये मूल्य वरीयता व निविदा निर्धारित करने का भी प्रावधान करता है।
- क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी योजना (CLCSS): यह योजना MSE को उनके संयंत्र और मशीनरी के प्रौद्योगिकी उन्नयन तथा आधुनिकीकरण के लिये 15% पूंजी सब्सिडी प्रदान करती है।
- एस्पायर (ASPIRE) योजना: वर्ष 2015 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में नवाचार, उद्यमिता और कृषि-उद्योग को बढ़ावा देना है। यह इनक्यूबेशन केंद्र, प्रौद्योगिकी व्यवसाय इन्क्यूबेटर और आजीविका व्यवसाय इन्क्यूबेटर स्थापित करने के लिये सहायता प्रदान करता है।
- स्फूर्ति योजना: यह योजना खादी, कॉयर और बाँस जैसे पारंपरिक उद्योगों के समूहों के विकास का समर्थन करती है। यह बुनियादी ढाँचे, प्रौद्योगिकी, विपणन, कौशल विकास तथा क्षमता निर्माण के लिये सहायता प्रदान करता है।
निष्कर्ष:
इन नीतियों और कार्यक्रमों का भारत में विनिर्माण क्षेत्र एवं MSME पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार, भारत में विनिर्माण क्षेत्र में 2022-23 की पहली तिमाही में पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 11.8% की वृद्धि हुई। यह पिछले एक दशक से अधिक समय में विनिर्माण क्षेत्र की सबसे ऊँची वृद्धि दर है। MSME क्षेत्र में भी रिकवरी के मज़बूत संकेत दिखे हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, MSME क्षेत्र ने 2021-22 में भारत की GDP में 29.6% का योगदान दिया। इस क्षेत्र में अगले पाँच वर्षों में 1.25 करोड़ नई नौकरियाँ उत्पन्न होने की भी उम्मीद है।