वीर सावरकर और महात्मा गांधी के राजनीतिक एवं वैचारिक दृष्टिकोण के बीच समानताओं और अंतरों पर चर्चा कीजिये? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- दोनों व्यक्तित्वों के बारे में संक्षिप्त विवरण देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- उनके बीच समानताओं पर चर्चा कीजिये।
- इसके साथ ही उनके राजनीतिक और वैचारिक दृष्टिकोण के बीच अंतरों पर भी चर्चा कीजिये।
- मुख्य बिंदुओं को सारांशित करते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
विनायक दामोदर सावरकर (जिन्हें आमतौर पर वीर सावरकर के नाम से जाना जाता है) और महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में दो प्रमुख व्यक्ति थे। उनके विशिष्ट राजनीतिक एवं वैचारिक दृष्टिकोण ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से आज़ादी हेतु भारत के आंदोलन को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- हालाँकि दोनों ही उत्साही राष्ट्रवादी थे जिनका भारत को स्वतंत्र कराने का समान लक्ष्य था लेकिन दोनों के दृष्टिकोण, दर्शन और रणनीति में काफी अंतर था।
मुख्य भाग:
उनके राजनीतिक एवं वैचारिक दृष्टिकोण में समानताएँ:
- राष्ट्रवाद और देशभक्ति: सावरकर और गांधी दोनों ही भावुक भारतीय राष्ट्रवादी थे जो देश को ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्त कराने के लिये समर्पित थे। सावरकर के लेखन से गांधी के स्व-शासन के आह्वान की तरह, भारतीय प्रतिरोध को बल मिला।
- सांस्कृतिक गौरव: दोनों नेताओं को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत पर गर्व था। सावरकर ने भारत के प्राचीन गौरव को पुनर्जीवित करने तथा उसका जश्न मनाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया एवं गांधी ने खादी जैसे पारंपरिक भारतीय हस्तशिल्प और पोशाक को बढ़ावा दिया।
- अस्पृश्यता का विरोध: सावरकर और गांधी दोनों ही अस्पृश्यता के मुखर विरोधी थे। सावरकर ने सामाजिक सुधारों एवं जाति-आधारित भेदभाव के उन्मूलन की वकालत की, जबकि गांधी ने दलितों (जिन्हें पहले अछूत कहा जाता था) के हितों की वकालत की तथा उनके उत्थान की दिशा में कार्य किया।
- पश्चिमी प्रभाव की आलोचना: दोनों नेता पश्चिमी साम्राज्यवाद और भारत पर उसके प्रभाव के आलोचक थे। सावरकर ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद की निंदा की, जबकि गांधी के असहयोग एवं स्वदेशी आन्दोलन (आत्मनिर्भरता) के दर्शन का उद्देश्य भारतीय जीवन शैली में पश्चिमी प्रभाव को कम करना था।
- विभाजन का विरोध: सावरकर और गांधी दोनों ही धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन के विरुद्ध थे। सावरकर ने एकजुट भारत की वकालत की तथा उनके विचार सांप्रदायिक हिंसा को रोकने एवं हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के गांधी के प्रयासों के अनुरूप थे।
उनके राजनीतिक और वैचारिक दृष्टिकोण में अंतर:
मतभेद न केवल उनके प्रतिरोध के तरीकों में थे बल्कि भारत के भविष्य के प्रति उनके दृष्टिकोण में भी थे।
- प्रतिरोध के तरीके:
- सावरकर: सावरकर ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध की वकालत की थी। वह स्वतंत्रता हासिल करने के क्रम में बल प्रयोग में विश्वास करते थे और उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह पर आधारित "द फर्स्ट वॉर ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस" नामक एक पुस्तक भी लिखी थी।
- गांधी: दूसरी ओर, गांधी ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के साधन के रूप में अहिंसक सविनय अवज्ञा आन्दोलन का समर्थन किया। उनके सत्याग्रह (अहिंसक प्रतिरोध) के दर्शन द्वारा नैतिक एवं आध्यात्मिक शक्ति पर बल दिया गया।
- धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव:
- सावरकर: सावरकर की राजनीतिक सोच हिंदू राष्ट्रवाद एवं हिंदुत्व पर अधिक केंद्रित थी। हालाँकि वे स्वाभाविक रूप से मुस्लिम विरोधी नहीं थे, भारत के बारे में उनका दृष्टिकोण हिंदू संस्कृति के प्रभुत्व की ओर झुका हुआ था।
- गांधी: गांधी धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने भारत में सभी समुदायों के बीच एकता पर ज़ोर देते हुए, हिंदुओं एवं मुसलमानों के बीच अंतराल को कम करने के लिये अथक प्रयास किये।
- समाज सुधार:
- सावरकर: सावरकर जाति-आधारित भेदभाव के आलोचक थे लेकिन उनका प्राथमिक ध्यान राजनीतिक स्वतंत्रता पर था। सामाजिक सुधार के क्षेत्र में उनके प्रयास महत्त्वपूर्ण नहीं थे।
- गांधी: गांधी सामाजिक सुधार, विशेष रूप से अस्पृश्यता के उन्मूलन और दलितों (जिन्हें पहले अछूत कहा जाता था) के उत्थान के लिये प्रतिबद्ध थे। उन्होंने भारतीय समाज के भीतर सामाजिक अन्याय को समाप्त करने के लिये कई आंदोलन शुरू किये।
- स्वतंत्रता के बाद के भारत हेतु दृष्टिकोण:
- सावरकर: स्वतंत्र भारत के लिये सावरकर का दृष्टिकोण हिंदुत्व में उनके विश्वास से प्रभावित था। उन्होंने भारत को एक हिंदू-बहुल राष्ट्र के रूप में देखा तथा हिंदू संस्कृति पर अधिक बल देने की कल्पना की।
- गांधी: भारत के लिये गांधी का दृष्टिकोण समावेशी और धर्मनिरपेक्ष था। उन्होंने एक विविध तथा बहुलवादी राष्ट्र की वकालत की, जहाँ नैतिक मूल्यों पर बल देने के साथ सभी धर्म और समुदाय सौहार्दपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व में रह सकें।
निष्कर्ष:
वीर सावरकर और महात्मा गांधी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रभावशाली नेता थे। उनके बीच मतभेद, आंदोलन की विविधता का परिचायक है। दोनों ने स्वतंत्रता के लिये संघर्ष के विशिष्ट पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हुए, भारत के इतिहास पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा। उनके विरोधाभासी दृष्टिकोण ऐतिहासिक चर्चा का विषय बने हुए हैं, जो भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में विविधता को रेखांकित करते हैं।