सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों से केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के कार्यक्षेत्र में किस सीमा तक स्वतंत्रता और जवाबदेहिता को बढ़ावा मिला है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णय किस सीमा तक CBI की स्वतंत्रता और जवाबदेहिता को बढ़ावा देते हैं।
- यथोचित निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध, आतंकवाद और अन्य गंभीर अपराधों के मामलों से निपटने वाली प्रमुख जाँच एजेंसी है। हालाँकि CBI को अक्सर राजनीतिक और नौकरशाही दबावों से प्रभावित होकर अपनी स्वायत्तता और विश्वसनीयता से समझौता करने के क्रम में आलोचना का सामना करना पड़ा है। इसलिये CBI की स्वतंत्रता तथा जवाबदेहिता सुनिश्चित करने में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
मुख्य भाग:
सर्वोच्च न्यायालय ने CBI को बाहरी हस्तक्षेप से बचाने तथा उसकी व्यावसायिकता एवं पारदर्शिता को बढ़ाने के लिये कई ऐतिहासिक फैसले दिये हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- विनीत नारायण बनाम भारत संघ (1997): इस फैसले में CBI की स्वायत्तता को सुरक्षित करने के लिये कई कदम उठाए गए, जैसे एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा CBI निदेशक की नियुक्ति और CBI के निदेशक के लिये दो साल के निश्चित कार्यकाल का प्रावधान।
- सुब्रमण्यम स्वामी बनाम CBI निदेशक (2014): इस फैसले द्वारा दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6-A को रद्द कर दिया गया, जिसमें वरिष्ठ सिविल सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने के लिये केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी की आवश्यकता का प्रावधान था। सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यह प्रावधान असंवैधानिक होने के साथ संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) का उल्लंघन है।
- कॉमन कॉज़ बनाम भारत संघ (2018): इस फैसले द्वारा दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 4A की वैधता को बरकरार रखा गया, जिसमें CBI निदेशक को नियुक्त करने या हटाने के लिये प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नामित व्यक्ति की एक चयन समिति का प्रावधान था। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि CBI निदेशक के कर्तव्यों में कोई भी स्थानांतरण या बदलाव इस समिति की पूर्व सहमति से ही किया जाना चाहिये।
- इन निर्णयों ने राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करके, CBI निदेशक के कार्यकाल की स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करके तथा नियुक्ति या निष्कासन हेतु एक पारदर्शी एवं भागीदारीपूर्ण प्रक्रिया स्थापित करके CBI में कुछ हद तक स्वतंत्रता और जवाबदेहिता को बढ़ावा दिया। हालाँकि इसके समक्ष अभी भी कुछ चुनौतियाँ और सीमाएँ हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है जैसे:
- वित्तीय स्वायत्तता के साथ अपने कर्मियों पर प्रशासनिक नियंत्रण का अभाव, CBI अपने बजट एवं कैडर प्रबंधन के लिये गृह मंत्रालय के तहत कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग पर निर्भर रहती है
- सक्षम प्राधिकारियों से अभियोजन हेतु मंजूरी प्राप्त करने में देरी और जटिलता से कई मामलों के समय पर और प्रभावी निपटान में बाधा उत्पन्न होती है।
- बढ़ते कार्यभार और मामलों की जटिलता से निपटने के लिये बुनियादी ढाँचा, जनशक्ति और संसाधनों का अपर्याप्त होना।
निष्कर्ष:
सर्वोच्च न्यायालय ने CBI की स्वतंत्रता एवं जवाबदेहिता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन इसे और अधिक कुशल तथा विश्वसनीय संस्थान बनाने हेतु अभी भी इसमें सुधार की गुंजाइश है।