भारतीय स्थापत्य के इतिहास को आकार देने में विजयनगर साम्राज्य के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
11 Sep, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति
हल करने का दृष्टिकोण:
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विजयनगर साम्राज्य (जिसका 14वीं से 17वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत में प्रभुत्व था) का भारत के स्थापत्य इतिहास को आकार देने में अत्यधिक महत्त्व रहा है। वास्तुशिल्प में इसके योगदान ने एक स्थायी विरासत छोड़ी है जो आज भी भारत की कला एवं वास्तुकला को प्रेरित और प्रभावित करती है।
भारत के स्थापत्य इतिहास को आकार देने में विजयनगर साम्राज्य का महत्त्व:
शैलियों का संलयन: विजयनगर वास्तुकला विभिन्न स्थापत्य शैलियों के मिश्रण के लिये प्रसिद्ध है। इसमें द्रविड़, चालुक्य, होयसल और इस्लामी वास्तुकला के तत्वों को एक साथ लाया गया, जिसके परिणामस्वरूप एक अद्वितीय और विशिष्ट वास्तुकला का विकास हुआ। इस संलयन से एक नई डिज़ाइन का विकास हुआ जो नवीनता के साथ सौंदर्य की दृष्टि से आकर्षक थी।
स्मारकीय संरचनाएँ: यह साम्राज्य भव्य और विशाल मंदिर परिसरों, किलों, महलों और सिंचाई प्रणालियों के निर्माण के लिये जाना जाता है। इनमें से प्रमुख हैं विरुपाक्ष मंदिर, विट्ठल मंदिर और हम्पी के खंडहर। ये संरचनाएँ धार्मिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों को पूरा करने वाली स्मारकीय इमारतें बनाने के लिये साम्राज्य की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती हैं।
प्रतिष्ठित मंदिर वास्तुकला: विजयनगर मंदिरों की विशेषता उनके विशाल गोपुरम, जटिल मूर्तियाँ और व्यापक परिसर हैं। इसमें सबसे प्रतिष्ठित उदाहरण विरुपाक्ष मंदिर का 160 फुट ऊँचा गोपुरम है, जो द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। ये मंदिर दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
निर्माण तकनीकों में प्रगति: विजयनगर के वास्तुकारों और इंजीनियरों ने निर्माण तकनीकों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की। उन्होंने टिकाऊ और देखने में आश्चर्यजनक संरचनाएँ बनाने के लिये बारीक नक्काशीदार पत्थर के ब्लॉक, जटिल प्लास्टर कार्य और उन्नत संरचनात्मक प्रणालियों का उपयोग किया। इस विशेषज्ञता ने भारत में बाद के वास्तुशिल्प विकास को प्रभावित किया।
जल प्रबंधन और सिंचाई: जल प्रबंधन और सिंचाई प्रणालियों पर साम्राज्य का बल, इसकी वास्तुकला विरासत का एक और पहलू है। तुंगभद्रा बाँध और पुष्कर्णी टैंक जैसे विशाल टैंकों और नहरों के निर्माण से न केवल कृषि को समर्थन मिला बल्कि इसने इस साम्राज्य के इंजीनियरिंग कौशल को भी प्रदर्शित किया।
कला का संरक्षण: विजयनगर साम्राज्य के शासक कला के महान संरक्षक थे। उन्होंने कारीगरों, मूर्तिकारों और वास्तुकारों को उत्कृष्ट कलाकृतियाँ बनाने के लिये प्रोत्साहित किया। इस संरक्षण के परिणामस्वरूप कुशल कारीगरों का विकास हुआ तथा एक समृद्ध कलात्मक परंपरा विकसित हुई।
सांस्कृतिक समन्वयवाद: विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य उपलब्धियाँ इस काल के सांस्कृतिक समन्वयवाद को दर्शाती हैं। इसमें हिंदू, इस्लामी और स्थानीय परंपराओं सहित विविध प्रभाव शामिल थे। यह सांस्कृतिक सम्मिश्रण साम्राज्य के समावेशी दृष्टिकोण का एक प्रमाण है, जिससे समृद्ध तथा विविध स्थापत्य विरासत को बढ़ावा मिला।
विरासत का संरक्षण: अंततः साम्राज्य के पतन के बावजूद, इसके कई वास्तुशिल्प चमत्कार समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। ये महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल, पर्यटक आकर्षण और समकालीन वास्तुकारों के लिये प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं।
निष्कर्ष:
विजयनगर साम्राज्य की भारत के स्थापत्य इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसकी वास्तुकला विरासत न केवल साम्राज्य की भव्यता एवं कलात्मक उपलब्धियों को प्रदर्शित करती है बल्कि विविध वास्तुशिल्प परंपराओं के सामंजस्यपूर्ण मिश्रण का भी प्रतिनिधित्व करती है। भारत में बाद के वास्तुशिल्प विकास पर विजयनगर वास्तुकला का स्थायी प्रभाव देश की वास्तुकला विरासत को आकार देने में इसके महत्त्व को रेखांकित करता है।