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प्रश्न :
ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप की रूपरेखा को प्रस्तुत कीजिये एवं ग्रामीण बस्तियों की समस्याओं का उल्लेख करें।
08 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप के बारे में लिखें।
- इनसे संबंधित समस्याओं के बारे में लिखें।
ग्रामीण बस्ती का तात्पर्य एक ऐसे प्रदेश से है जहाँ सामान्यतः प्राथमिक क्रियाकलापों में संलग्न अपेक्षाकृत छोटे जनसंख्या समूह एक साथ निवास करते हैं। ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप इन क्षेत्रों में मकानों की स्थिति तथा उनके अंतर्संबंध को दर्शाता है। यह गाँव की आकृति तथा वहां की पर्यावरणीय एवं भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करता है।
ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-
- रैखिक प्रतिरूप- इसमें मानव बस्तियों का निर्माण सड़कों, रेल लाइनों तथा नदियों आदि के किनारे होता है।
- आयतकार प्रतिरूप- इनका निर्माण समतल क्षेत्रों में होता है यहाँ सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
- वृत्ताकार प्रतिरूप- किसी तालाब अथवा झील के चारों ओर बस्तियों के निर्माण से वृत्ताकार प्रतिरूप का निर्माण होता है।
- तारे के आकार का प्रतिरूप- इनका निर्माण उन प्रदेशों में होता है जहां बहुत सारे सड़क एक साथ एक स्थान पर मिलते हैं। ऐसे में इन सड़कों के किनारे मकानों के निर्माण होने से ये तारे की आकृति के प्रतीत होते हैं।
- टी अथवा वाई आकार के प्रतिरूप- टी आकार की बस्तियां सड़कों के तिराहे पर विकसित होती हैं जबकि वाई आकार की बस्तियों का निर्माण उन क्षेत्रों में होता है जहाँ दो मार्ग आकर तीसरे मार्ग से मिलते हैं।
- दोहरे ग्राम- नदी अथवा पुल के दोनों किनारों पर बस्तियों के निर्माण से दोहरे ग्राम प्रतिरूप का निर्माण होता है।
ग्रामीण बस्तियों की समस्याएँ
अपेक्षाकृत कम जनसंख्या के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था विकसित नहीं हो पाती। साथ ही यहाँ रोजगार के साधनों का अभाव होता है जिससे अधिकांश जनसंख्या कृषि जैसे कुछ सीमित कार्यों में ही लगी रहती है। इससे यहां छिपी बेरोजगारी, गरीबी तथा प्रवास की समस्या उभरती है। इसका प्रत्यक्ष परिणाम खाद्य सुरक्षा तथा कुपोषण की समस्या के रूप में दिखाई देता है। कुपोषण के कारण लोगों की प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है और वे बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। साथ ही शौचालय एवं कूड़ा-कचरा निस्तारण की सुविधाओं के अभाव के कारण इन क्षेत्रों में हैजा पीलिया जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ और भी बढ़ जाती हैं। स्वास्थ्य के कमजोर होने से लोग आर्थिक गतिविधियों में शामिल नहीं हो पाते जिससे गरीबी के कुचक्र का निर्माण होता है।
सड़क, चिकित्सा तथा शिक्षा संबंधित अवसंरचना का अभाव इन समस्याओं को और भी बढ़ा देता है। शिक्षा के अभाव के कारण यहाँ अंधविश्वास तथा सामाजिक रूढ़ियों की समस्याओं को देखा जा सकता है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था, डायन प्रथा, विधवा महिला से विभेद तथा जाति के नाम पर छुआछूत जैसी सामाजिक समस्याएँ ग्रामीण बस्तियों में देखी जा सकती हैं। अंधविश्वास जैसी समस्याओं से स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अपने रोगों के इलाज के लिये डॉक्टर के स्थान पर ये ओझाओं पर अधिक विश्वास करते हैं जिससे समय पर इलाज न हो पाने के कारण कई बार लोगों की मृत्यु भी हो जाती है। उदाहरण के लिये, 2017 में उड़ीसा के जगतसिंहपुर जिले में 9 लोगों की मृत्यु साँप के काटने से हुई है जबकि कोई भी स्थान जिला अस्पताल या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से 1 घंटे से अधिक दूरी पर नहीं है। ध्यातव्य है कि भारत में पाया जाने वाला कोई भी साँप इतना विषैला नहीं होता 1 घंटे से कम समय में व्यक्ति की मृत्यु हो जाए।
स्पष्ट है कि गरीबी, बेरोज़गारी तथा आर्थिक एवं सामाजिक संरचना का अभाव ग्रामीण बस्तियों की सबसे बड़ी समस्याओं में शामिल है। इसमें सुधार के लिये जनभागीदारी से युक्त एक समन्वित नीति की आवश्यकता है।
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