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प्रश्न :
जलवायु परिवर्तन की अवधारणा तथा वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र एवं मानव समाज पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिये। जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों का परीक्षण कीजिये तथा इसके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के उपाय बताइये। (250 शब्द)
10 Jul, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- जलवायु परिवर्तन की अवधारणा को समझाते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र और मानव समाज पर जलवायु परिवर्तन के निहितार्थ बताइये।
- जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों को बताइये।
- जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के उपाय बताइये।
परिचय:
जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य तापमान, वर्षा एवं पवन प्रतिरूप तथा पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के अन्य पहलुओं में दीर्घकालिक बदलाव से है। इससे प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र और मानव समाज दोनों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
मुख्य भाग:
जलवायु परिवर्तन की अवधारणा और निहितार्थ:
- परिभाषा और कारण:
- जलवायु परिवर्तन मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के कारण होता है, जिसमें ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) का उत्सर्जन और वनों की कटाई शामिल है।
- GHGs से पृथ्वी के वायुमंडल में ऊष्मा का संकेंद्रण होता है जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव के परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग होती है।
- वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
- बढ़ता तापमान और वर्षा का बदलता प्रतिरूप पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को प्रभावित करता है।
- चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता से आवास, प्रजातियों के वितरण और पारिस्थितिकी संतुलन पर प्रभाव पड़ता है।
- ग्लेशियर और ध्रुवीय बर्फ की टोपियों के पिघलने से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ता है जिससे समुद्र स्तर में वृद्धि होती है।
- मानव समाज पर प्रभाव:
- जलवायु परिवर्तन से कृषि बाधित होने एवं फसल की पैदावार कम होने के साथ खाद्य असुरक्षा की स्थिति हो जाती है जिससे कृषक समुदायों की आजीविका पर प्रभाव पड़ता है।
- मौसम के प्रतिरूप में बदलाव से जल की उपलब्धता प्रभावित होती है, जिससे जल की कमी होने के साथ संसाधनों को लेकर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है।
- समुद्र के बढ़ते स्तर से तटीय समुदायों को जोखिम होता है, जिसके परिणामस्वरूप मजबूरन प्रवासन होने के साथ प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाले कारक:
- ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन:
- जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस) जलाने से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जित होता है।
- औद्योगिक गतिविधियाँ, परिवहन और वनों की कटाई से GHG उत्सर्जन में योगदान मिलता है।
- वनों की कटाई:
- वनों को साफ़ करने के कारण प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से CO2 को अवशोषित करने की पृथ्वी की क्षमता कम हो जाती है, जिससे वायुमंडल में CO2 की सांद्रता में वृद्धि होती है।
- औद्योगीकरण और शहरीकरण:
- तीव्र औद्योगिक विकास और शहरीकरण से ऊर्जा की खपत और उत्सर्जन में वृद्धि हुई है।
- शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव से शहरों में स्थानीय तापमान में वृद्धि हुई है।
जलवायु परिवर्तन को कम करने के उपाय:
- नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना:
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिये सौर, पवन और जल विद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देना।
- कुशल और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के लिये नई प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करना।
- वन संरक्षण के साथ पुनर्वनीकरण पर बल देना:
- टिकाऊ वन प्रबंधन और कार्बन पृथक्करण को बढ़ाने के लिये पुनर्वनीकरण प्रयासों को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- सतत् कृषि को अपनाना:
- जलवायु-अनुकूल कृषि तकनीकों, कृषि वानिकी और कुशल जल प्रबंधन प्रथाओं को प्रोत्साहित करना।
- जैविक कृषि को बढ़ावा देना और सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम करना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- GHG उत्सर्जन को कम करने और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये पेरिस समझौते जैसे वैश्विक सहयोग और समझौतों का पालन करना।
निष्कर्ष:
जलवायु परिवर्तन से पारिस्थितिकी तंत्र और मानव समाज दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। इसके कारणों और निहितार्थों को समझने एवं प्रभावी शमन उपायों को लागू करके हम पर्यावरण की सुरक्षा एवं सतत् विकास सुनिश्चित करने के साथ आने वाली पीढ़ियों के लिये अनुकूल भविष्य प्रदान करने की दिशा में कार्य कर सकते हैं।
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