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प्रश्न :
भक्ति साहित्य की प्रकृति और भारतीय संस्कृति में इसके योगदान का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)
10 Jul, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भक्ति साहित्य का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भक्ति साहित्य की प्रकृति और भारतीय संस्कृति में इसके योगदान की व्याख्या कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भक्ति साहित्य का आशय विभिन्न संतों, कवियों और फकीरों के भक्तिपूर्ण लेखन से है जिन्होंने विभिन्न भाषाओं और शैलियों के माध्यम से भगवान के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को व्यक्त किया। यह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में एक लोकप्रिय आंदोलन के रूप में उभरा था जिसमें ब्राह्मणवादी रूढ़िवाद और कर्मकांड के प्रभुत्व को चुनौती दी गई थी।
मुख्य भाग:
भक्ति साहित्य की प्रकृति:
- इसमें लेखन तमिल, तेलुगु, कन्नड़, हिंदी, मराठी, बंगाली आदि स्थानीय भाषाओं में किया गया जिससे यह आम जनता के लिये भी सुलभ हो गया।
- यह विभिन्न धार्मिक परंपराओं जैसे वैष्णववाद, शैववाद, सूफीवाद आदि से प्रभावित था, जो भारतीय संस्कृति की विविधता और समन्वय को दर्शाता है।
- इसमें सादगी, सहजता, भावनात्मक तीव्रता, व्यक्तिगत अनुभव और काव्य सौंदर्य जैसी विशेषताएँ थी, जिसने लोगों को आकर्षित किया था।
- इसमें संगीत, नृत्य, नाटक और भजन, कीर्तन, ध्रुपद, राग आदि जैसे कला रूप शामिल होते थे, जो इसके सौंदर्य और आध्यात्मिक आकर्षण को बढ़ाते थे।
भारतीय संस्कृति में योगदान:
- इस दौरान दिव्य प्रबंधम, तिरुमुराई, वचन साहित्य, रामचरितमानस, सूर सागर, पदावली गीत गोविंद आदि जैसे महान साहित्यिक कार्य हुए थे जिससे भारत की भाषाई और साहित्यिक विरासत समृद्ध हुई।
- जातिगत और लैंगिक भेदभाव को दूर करने के साथ धार्मिक असहिष्णुता और अनुष्ठानिक औपचारिकता को अस्वीकार करने के कारण इससे सामाजिक सद्भाव और सुधार को बढ़ावा मिला।
- इसमें समानता, बंधुत्व, मानवतावाद और सार्वभौमिकता पर बल दिया गया। उदाहरण के लिये रामानंद ने सभी जातियों के शिष्यों को स्वीकार किया; कबीर ने हिंदू और मुस्लिम धर्म की अतार्किक प्रथाओं की आलोचना की; मीराबाई ने पितृसत्ता को चुनौती दी आदि।
- इसके द्वारा मातृभूमि और देश के प्रति प्रेम को बल मिलने से विदेशी आक्रमणों के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिरोध की भावना को बढ़ावा मिला
- उदाहरण के लिये गुरु नानक ने मुगलों के अत्याचारों की निंदा की थी तथा शिवाजी, तुकाराम की शिक्षाओं से प्रेरित थे आदि।
निष्कर्ष:
भक्ति साहित्य से भारत का सांस्कृतिक आयाम समृद्ध हुआ था। इसके द्वारा लोगों की आकांक्षाओं और भावनाओं के प्रतिबिंबित होने के साथ समग्र सांस्कृतिक विकास में योगदान मिला था।
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