आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं सहित विभिन्न चुनौतियों के कारण भारत में खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिल रहा है। इन चुनौतियों के मुख्य कारण क्या हैं और इनका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है? चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: खाद्य मुद्रास्फीति और उसके कारणों का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- मुख्य भाग: आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित चुनौतियों के पीछे के मुख्य कारणों और उन्हें दूर करने के तरीकों पर चर्चा कीजिये।
- निष्कर्ष: आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
खाद्य मुद्रास्फीति का तात्पर्य समय के साथ खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि होने से है। इससे उपभोक्ताओं (विशेषकर समाज के गरीब और कमजोर वर्गों) की क्रय शक्ति और कल्याण पर प्रभाव पड़ता है। भारत में खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिल रहा है (सितंबर 2021 से अप्रैल 2022 के बीच उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति 0.68% से बढ़कर 8.38% हो गई है)। भारत में खाद्य मुद्रास्फीति के मुख्य कारणों को मांग-पक्ष और आपूर्ति-पक्ष जैसे कारकों में वर्गीकृत किया जा सकता है। आपूर्ति पक्ष से संबंधित कारकों में से एक, आपूर्ति श्रृंखला का व्यवधान होना है।
मुख्य भाग:
भारत में आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान के मुख्य कारण:
- खंडित आपूर्ति श्रृंखला: जटिल और खंडित आपूर्ति श्रृंखला के परिणामस्वरूप खाद्य पदार्थों की बर्बादी होने के साथ कीमत में वृद्धि होती है। इसका कारण आपूर्ति शृंखला में अनौपचारिकता की व्यापकता के साथ व्यवहारिकता का न होना है।
- अपर्याप्त कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउसिंग सुविधाएँ: समग्र आपूर्ति श्रृंखला में वेयरहाउसिंग एक प्रमुख आवश्यकता होती है, इसमें ज्यादातर अनौपचारिक भागीदारों का वर्चस्व बना हुआ है। वर्तमान में केवल 20% वेयरहाउस संगठित हैं और उनमें से 70% सरकार द्वारा नियंत्रित हैं।
- पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की कमी के कारण फल, सब्जियाँ, डेयरी, माँस आदि जैसी वस्तुओं का नुकसान होता है।
- जलवायु संबंधी कारक: अत्यधिक तापमान और वर्षा से खाद्यान्न के उत्पादन और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- वैश्विक कारक: खाद्य मुद्रास्फीति वैश्विक कारकों से भी प्रभावित होती है जैसे कि COVID-19 महामारी,रूस-यूक्रेन युद्ध एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि से आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान होना।
- इन कारकों से लागत में वृद्धि होने के साथ खाद्य तेल, अनाज और चीनी जैसे खाद्य पदार्थों की उपलब्धता में कमी आ जाती है।
- आवागमन संबंधी मुद्दे: भारत में लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में अभी भी गुणवत्ता और कनेक्टिविटी संबंधित चुनौतियाँ बनी हुई हैं। कुल सड़क नेटवर्क में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग की केवल 2% हिस्सेदारी है लेकिन इनके द्वारा कुल वस्तुओं के 40% का परिवहन होता है। बंदरगाहों की क्षमता में वृद्धि के बावजूद इन बंदरगाहों से कनेक्टिविटी की कमी के कारण लागत में वृद्धि होती है और वस्तुओं के परिवहन में देरी होती है।
आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं को दूर करने के तरीके:
- बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: सड़क कनेक्टिविटी, रेल नेटवर्क, बिजली आपूर्ति, सिंचाई सुविधाओं आदि में सुधार हेतु निवेश करने की आवश्यकता है जिससे खाद्य उत्पादों की सुचारू आवाजाही की सुविधा प्राप्त होगी।
- इसके साथ ही कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउसिंग क्षमता को बढ़ाने और उनके गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है।
- संरचनात्मक बाधाओं को दूर करना: भारत को ऐसे लंबित कानूनों को लागू करने की जरूरत है जिनका उद्देश्य संरचनात्मक बाधाओं (जैसे भूमि, श्रम, कानून, आवागमन से संबंधित) को हल करना है।
- बाज़ार एकीकरण को बढ़ावा देना: किसानों और उपभोक्ताओं के बीच सीधे संबंधों को बढ़ावा देकर खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में बिचौलियों को कम करने की आवश्यकता है।
- ऐसा किसान उत्पादक संगठनों (FPOs), अनुबंध कृषि, e-NAM (इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार) आदि को प्रोत्साहित करके किया जा सकता है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन को बढ़ाना: जलवायु-स्मार्ट कृषि पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता है जिससे किसानों को मौसम की परिवर्तनशीलता से निपटने और फसल के नुकसान को कम करने में मदद मिल सकती है।
- इसमें फसल विविधीकरण, उन्नत बीज, जल संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन आदि शामिल हो सकते हैं।
- खाद्य पदार्थों की टोकरी में विविधता लाना: दूध, दालें, अंडे, फल और सब्जियों जैसे प्रोटीन युक्त और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ाकर भारतीयों के भोजन उपभोग प्रतिरूप में विविधता लाने की आवश्यकता है।
- इससे अनाज और खाद्य तेलों पर निर्भरता कम करने के साथ पोषण सुरक्षा में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
निष्कर्ष:
भारत में खाद्य मुद्रास्फीति का कारण बनने वाली आपूर्ति श्रृंखला संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसमें ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में निवेश, बेहतर भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं के माध्यम से फसल के बाद के नुकसान को कम करना, परिवहन प्रणालियों को उन्नत करना और किसानों के लिये बाजार पहुँच बढ़ाना शामिल है। इन उपायों को लागू करके भारत अपनी आपूर्ति श्रृंखला दक्षता में उल्लेखनीय सुधार कर सकता है, भोजन की बर्बादी को कम कर सकता है और खाद्य कीमतों पर मुद्रास्फीति के प्रभाव को कम कर सकता है।