क्या आप इस बात से सहमत हैं कि भारत को NATO+ में शामिल नहीं होना चाहिये? अपने उत्तर के पक्ष में कारण भी दीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: NATO+ समूह के बारे में संक्षिप्त रूप से बताने के साथ इसमें शामिल होने के फायदों का उल्लेख करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- मुख्य भाग: उन कारणों पर चर्चा कीजिये जिनसे भारत को NATO+ समूह में शामिल नहीं होना चाहिये।
- निष्कर्ष: आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
NATO+ के तहत उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) और पाँच देशों अर्थात् ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इज़राइल एवं दक्षिण कोरिया शामिल हैं। इस समूह का प्राथमिक उद्देश्य वैश्विक रक्षा सहयोग को बढ़ाना है। NATO+ में सदस्यता से सदस्यों को कई फायदे मिलते हैं जैसे खुफिया जानकारी साझा करना, अत्याधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी तक पहुँच प्राप्त होना तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मजबूत रक्षा साझेदारी को बढ़ावा मिलना।
मुख्य भाग:
इसके कई फायदे होने के बावजूद, भारत को निम्नलिखित कारणों से NATO+ में शामिल नहीं होना चाहिये:
- कूटनीतिक स्वायत्तता में कमी आना: भारत ने हमेशा से ही अपने विदेश संबंधों में गुटनिरपेक्षता और कूटनीतिक स्वायत्तता की नीति का पालन किया है। NATO+ में शामिल होने से भारत के हितों एवं मूल्यों की स्वतंत्रता से समझौता होगा, क्योंकि इससे इस गठबंधन के सामूहिक निर्णयों और कार्यों से सहमत होना होगा।
- क्षेत्रीय गतिशीलता: भारत अपनी जटिल सुरक्षा चुनौतियों के साथ भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है। NATO+ में शामिल होने से पड़ोसी देशों (विशेषकर चीन) के साथ इसके संबंध जटिल हो सकते हैं जिससे तनाव बढ़ने के साथ क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- विविध सुरक्षा साझेदारियों पर प्रभाव: भारत का विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सुरक्षा साझेदारियों का एक लंबा इतिहास है। NATO+ में शामिल होने से यह धारणा बन सकती है कि भारत पश्चिमी शक्तियों के साथ अधिक निकटता से जुड़ रहा है, जिससे संभावित रूप से रूस जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण साझेदारों के साथ इसके रिश्ते तनावपूर्ण हो सकते हैं।
- इससे भारत अन्य संघर्षों में उलझ सकता है: इससे भारत को वाशिंगटन संधि के अनुच्छेद 5 का भी पालन करना होगा, जिसमें कहा गया है कि इसके किसी सदस्य के खिलाफ सशस्त्र हमला सभी सदस्यों के खिलाफ हमला माना जाएगा। यह भारत को ऐसे संघर्षों में उलझा सकता है जो प्रत्यक्ष रूप से इसकी सुरक्षा या हितों से संबंधित नहीं हैं।
- पारस्परिक लाभ का अभाव: अमेरिका और जापान को छोड़कर भारत NATO+ के अधिकांश सदस्यों के साथ बहुत अधिक समानता नहीं रखता है। भारत की सुरक्षा चिंताएँ और प्राथमिकताएँ यूरोप, इज़राइल या दक्षिण कोरिया से भिन्न हैं।
- यह भारत के लिये बहुत अधिक सार्थक नहीं हो सकता है: पहले से ही इनमें से कई देशों के साथ भारत की द्विपक्षीय या बहुपक्षीय रक्षा साझेदारी है जैसे कि क्वाड, मालाबार अभ्यास और रक्षा व्यापार समझौते। NATO+ में शामिल होने से भारत के मौजूदा रक्षा सहयोग में कोई खास उन्नति नहीं होगी।
निष्कर्ष:
भारत को अपनी कूटनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देनी चाहिये और अपनी गुटनिरपेक्ष विदेश नीति के रुख को बनाए रखना चाहिये। कुछ विशिष्ट मुद्दों पर NATO+ सदस्यों का सहयोग मूल्यवान है लेकिन इसकी पूर्ण सदस्यता से भारत को लाभ की तुलना में अधिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसके बजाय भारत को अपने राष्ट्रीय हितों और उद्देश्यों के आधार पर स्थितियों के अनुसार NATO+ के सदस्यों के साथ समन्वय बनाए रखना चाहिये।