स्वदेशी आंदोलन के उद्देश्यों एवं तरीकों को बताते हुए भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन पर इसके प्रभावों का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: स्वदेशी आंदोलन का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- मुख्य भाग: स्वदेशी आंदोलन के मुख्य उद्देश्यों एवं इसमें प्रयुक्त विधियों को बताते हुए इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये।
- निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में बताने के साथ स्वदेशी आंदोलन के महत्त्व को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
स्वदेशी आंदोलन, आत्मनिर्भरता पर आधारित आंदोलन था जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख भाग था। इसने भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में प्रमुख योगदान दिया था। इसकी शुरुआत वर्ष 1905 के बंगाल के विभाजन के फैसले की प्रतिक्रिया के रूप में हुई थी। विभाजन के फैसले को राष्ट्रवादी आंदोलन/स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर करने के क्रम में फूट डालो और राज करो की नीति के रूप में देखा गया था।
मुख्य भाग:
स्वदेशी आंदोलन के मुख्य उद्देश्य:
- विदेशी वस्तुओ (विशेषकर ब्रिटिश निर्मित कपड़े और नमक का बहिष्कार करना) और इसके स्थान पर घरेलू उत्पादों का उपयोग करना।
- स्वदेशी उद्योगों, शिक्षा, साहित्य, कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देना।
- भारतीयों में एकता, आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता की भावना को बढ़ावा देना।
स्वदेशी आंदोलन में प्रयुक्त विधियाँ:
- स्वदेशी और बहिष्कार का संदेश प्रसारित करने हेतु सार्वजनिक बैठकों, रैलियों, जुलूस और प्रदर्शन का सहारा लेना।
- जनता को संगठित करने और सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने हेतु बारीसाल में स्वदेश बांधव समिति जैसे संगठनों का गठन करना।
- एकजुटता हेतु महाराष्ट्र में शिवाजी और गणपति के प्रतीकों पर आधारित त्योहारों का आयोजन किया जाना।
- वैकल्पिक शिक्षा प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय स्कूल और कॉलेज का निर्माण किया जाना जैसे कि नेशनल कॉलेज ऑफ़ बंगाल, जिसके प्रिंसिपल अरबिंदो थे।
- स्वदेशी उद्योगों को समर्थन देने के लिये स्वदेशी उद्यमों (जैसे कपड़ा मिलें, साबुन कारखाने, बैंक और बीमा कंपनियों आदि) को प्रोत्साहन देना।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव:
- इससे स्वतंत्रता आंदोलन के लिये व्यापक जन आधार तैयार हुआ और इसमें विभिन्न क्षेत्रों, वर्गों, जातियों और धर्मों के लोग शामिल हुए।
- इससे ब्रिटिशों के आर्थिक और राजनीतिक प्रभुत्व को चुनौती मिली तथा स्व-शासन या स्वराज के अधिकार को प्रोत्साहन मिला।
- इससे भारतीय उद्योगों, शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के विकास को प्रोत्साहन मिलने के साथ राष्ट्रीय पहचान की भावना को बल मिला।
- इससे होमरूल आंदोलन एवं असहयोग आंदोलन जैसे अन्य आंदोलनों को प्रेरणा मिली, जिनमें स्वदेशी और बहिष्कार के समान रणनीतियों को अपनाया गया।
- इस आंदोलन में बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय जैसे नए नेताओं का भी उदय हुआ, जिन्होंने आगे चलकर स्वतंत्रता संघर्ष में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
निष्कर्ष:
स्वदेशी आंदोलन का उद्देश्य आत्मनिर्भरता एवं एकजुटता को बढ़ावा देने के साथ बहिष्कार जैसे तरीकों को अपनाना एवं स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देना था। इससे ब्रिटिशों के आर्थिक प्रभुत्व को चुनौती मिली, राष्ट्रीय चेतना को प्रोत्साहन मिला और इसके बाद होने वाले राष्ट्रवादी आंदोलनों का आधार तैयार हुआ।