भारत में डिजिटलीकरण से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं? डिजिटल अर्थव्यवस्था में सुचारू और समावेशी परिवर्तन सुनिश्चित करने में विभिन्न हितधारकों की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- डिजिटलीकरण का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- डिजिटलीकरण के लाभ बताइये।
- डिजिटलीकरण की चुनौतियाँ बताइये।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था में सुचारू और समावेशी परिवर्तन सुनिश्चित करने में विभिन्न हितधारकों की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
डिजिटलीकरण से तात्पर्य अर्थव्यवस्था और समाज के विभिन्न क्षेत्रों की दक्षता, उत्पादकता, नवाचार और प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं को अपनाने से है।
मुख्य भाग:
डिजिटलीकरण के कई लाभ हैं जैसे:
- इससे नागरिकों, व्यवसायों और सरकार के लिये सूचना, सेवाओं, बाज़ारों तथा अवसरों तक पहुँच में बढ़ावा मिल सकता है।
- इससे लागत में कमी एवं गुणवत्ता में सुधार होने के साथ पारदर्शिता और जवाबदेहिता एवं नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा मिल सकता है।
- इससे स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक कल्याण, ई-गवर्नेंस आदि जैसी सार्वजनिक सेवाओं की बेहतर डिलीवरी सक्षम हो सकती है।
- इससे विशेष रूप से युवाओं, महिलाओं और हाशिये पर रहने वाले समूहों के लिये राजस्व और रोज़गार के नए स्रोत पैदा हो सकते हैं।
- इससे पर्यावरणीय स्थिरता, आपदा प्रबंधन, राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में समर्थन मिल सकता है।
हालाँकि डिजिटलीकरण से संबंधित कई चुनौतियाँ भी हैं जैसे:
- इससे उन लोगों के बीच डिजिटल अंतराल के साथ असमानता हो सकती है जिनकी डिजिटल बुनियादी ढाँचे, उपकरणों, कौशल एवं साक्षरता तक पहुँच नहीं है।
- इससे डेटा गोपनीयता, सुरक्षा, नैतिकता और शासन संबंधी मुद्दों को जन्म मिल सकता है (विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉकचेन, बायोमेट्रिक्स आदि जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के संदर्भ में)।
- इससे मौजूदा व्यवसाय मॉडल, श्रम बाज़ार और सामाजिक मानदंड बाधित हो सकते हैं, जिससे नौकरियों की हानि एवं कौशल अंतराल के साथ सामाजिक अशांति को बढ़ावा मिल सकता है।
- इससे साइबर खतरों, साइबर अपराधों और साइबर युद्ध के खतरों को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे राष्ट्र की संप्रभुता, अखंडता और स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
इसलिये डिजिटल अर्थव्यवस्था में सुचारू और समावेशी परिवर्तन सुनिश्चित करने में विभिन्न हितधारकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है जैसे:
- सरकार को डिजिटलीकरण के लिये एक सक्षम नीतिगत ढाँचा, विनियामक वातावरण प्रदान करने के साथ संस्थागत समर्थन प्रदान करना चाहिये। इसे डिजिटल बुनियादी ढाँचे, क्षमता निर्माण, नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र और सार्वजनिक जागरूकता में भी निवेश करना चाहिये।
- निजी क्षेत्र को अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता, दक्षता के साथ ग्राहक संतुष्टि बढ़ाने के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना चाहिये। उन्हें डिजिटलीकरण के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों को हल करने के लिये सरकार और नागरिक समाज के साथ भी सहयोग करना चाहिये।
- नागरिक समाज को डिजिटलीकरण के प्रहरी और सुविधाप्रदाता के रूप में कार्य करना चाहिये। उन्हें नागरिकों को डिजिटल कौशल, साक्षरता और जागरूकता के माध्यम से सशक्त बनाना चाहिये। उन्हें डिजिटल समावेशन एवं इसमें भागीदारी को भी बढ़ावा देना चाहिये।
- शिक्षा जगत और अनुसंधान संस्थानों को डिजिटलीकरण के लिये ज्ञान एवं नवाचार को बढ़ावा देना चाहिये। उन्हें वर्तमान और भविष्य के कार्यबल हेतु शिक्षा, प्रशिक्षण और मार्गदर्शन भी प्रदान करना चाहिये।
- मीडिया को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का प्रसार करना चाहिये। इसे डिजिटल क्षेत्र में सटीकता, विश्वसनीयता और जिम्मेदारी के मूल्यों को भी बनाए रखना चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को डिजिटल परिवर्तन से संबंधित वैश्विक मुद्दों पर सहयोग और समन्वय करना चाहिये। उन्हें डिजिटल क्षेत्र में विभिन्न देशों की संप्रभुता, विविधता और हितों का भी सम्मान करना चाहिये।
निष्कर्ष:
इस प्रकार डिजिटलीकरण एक जटिल और गतिशील प्रक्रिया है जिसके लिये सभी हितधारकों से समग्र और सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। इसमें भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलने की क्षमता है।