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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. भारत में मृदा अपरदन के प्रमुख प्रकार एवं कारण क्या हैं? इसका भारत के पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है? (150 शब्द)

    26 Jun, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • मृदा अपरदन का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • मृदा अपरदन के प्रकार बताते हुए चर्चा कीजिये कि यह पर्यावरण एवं अर्थव्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित करता है।
    • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    मृदा अपरदन का आशय विभिन्न प्राकृतिक या मानव-प्रेरित कारकों द्वारा मृदा की ऊपरी परत का क्षरण होना है। यह एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है जिससे भूमि संसाधनों की गुणवत्ता और उत्पादकता प्रभावित होती है। भारत में इसके मुख्य प्रकार एवं कारण निम्नलिखित हैं:

    मुख्य भाग:

    मृदा अपरदन के प्रकार:

    • जल अपरदन:
      • यह जल की क्रिया के कारण होता है जैसे वर्षा, अपवाह, धाराएँ, नदियाँ आदि।
      • इसके परिणामस्वरूप नालियों, खड्डों आदि का निर्माण होता है।
        • यह भारत में मृदा अपरदन का सबसे व्यापक और गंभीर प्रकार है।
    • वायु अपरदन:
      • यह विशेषकर शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वायु की क्रिया के कारण होता है।
      • इसके परिणामस्वरूप रेत के टीले का निर्माण होता है।
        • यह भारत के पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भागों में अधिक सामान्य है।
    • हिम अपरदन:
      • यह ग्लेशियरों की गति के कारण होता जिसके तहत चट्टानों और मृदा का कटाव एवं विघटन होता है।
      • इसके परिणामस्वरूप U-आकार की घाटियाँ, मोरेन आदि का निर्माण होता है।
        • यह भारत के हिमालयी क्षेत्र में अधिक सामान्य है।
    • तटीय कटाव:
      • यह समुद्र तट पर लहरों, ज्वार-भाटा, धाराओं आदि की क्रिया के कारण होता है।
      • इसके परिणामस्वरूप चट्टानों एवं गुफाओं आदि का निर्माण होता है।
        • यह भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर अधिक सामान्य है।

    कारण:

    • प्राकृतिक कारण:
      • इनमें जलवायु संबंधी कारक (जैसे वर्षा की तीव्रता और वितरण, तापमान, वायु की गति और दिशा आदि) शामिल हैं।
        • स्थलाकृतिक कारक (जैसे ढलान, उच्चावच, जल निकासी पैटर्न, आदि)
        • भूवैज्ञानिक कारक (जैसे चट्टान का प्रकार, संरचना, बनावट, आदि)
        • जैविक कारक (जैसे वनस्पति आवरण, मृदा के जीव, आदि)।
    • मानव-प्रेरित कारण:
      • इनमें वनों की कटाई, अत्यधिक चराई, अविवेकपूर्ण कृषि, अनुचित सिंचाई, खनन, उत्खनन, निर्माण गतिविधियाँ, शहरीकरण, औद्योगीकरण आदि शामिल हैं।

    मृदा अपरदन भारत के पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करता है:

    • पर्यावरणीय प्रभाव:
      • मृदा अपरदन से मृदा की उर्वरता एवं जलधारण क्षमता कम हो जाती है। इससे मृदा से कार्बनिक पदार्थ और पोषक तत्वों की हानि होती है।
      • इससे जल निकायों में गाद और प्रदूषण की समस्या होती है। जिससे बाढ़ और सूखे का खतरा बढ़ जाता है।
      • इससे जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ भी प्रभावित होती हैं।
    • आर्थिक प्रभाव:
      • मृदा अपरदन से भारत की कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है।
        • इससे मृदा संरक्षण और सुधार की लागत बढ़ जाती है।
      • इससे पनबिजली उत्पादन और नदियों की परिवहन क्षमता प्रभावित होती है।
      • इससे समुद्र तट के किनारे बुनियादी ढाँचे और संपत्ति को नुकसान पहुँचता है।
      • इससे ग्रामीण लोगों की आय और आजीविका के अवसरों में कमी आती है।

    निष्कर्ष:

    इस प्रकार मृदा अपरदन भारत के सतत् विकास के लिये एक बड़ा खतरा है। भारत के मृदा संसाधनों के संरक्षण और संवर्धन के लिये उचित रोकथाम और शमन उपायों को अपनाने की आवश्यकता है।

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