सार्वजनिक सेवा वितरण के लिये सोशल मीडिया के उपयोग में कौन-से नैतिक मुद्दे शामिल हैं? उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये और उनके समाधान के उपाय सुझाइये।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सोशल मीडिया और सार्वजनिक सेवा वितरण का संक्षिप्त में परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरूआत कीजिये।
- नैतिक मुद्दे को उदाहरण सहित समझाइये।
- तदनुसार निष्कर्ष लिखिये।
- भूमिका:
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सोशल मीडिया उन प्लेटफार्मों को संदर्भित करता है जो उपयोगकर्त्ताओं को एक सार्वजनिक प्रोफाइल बनाने और साझा करने या सोशल नेटवर्किंग सहभागिता करने की अनुमति को सक्षम बनाता है तथा सार्वजनिक सेवा वितरण के अंतर्गत सरकार या उसकी एजेंसियों द्वारा नागरिकों को स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता आदि जैसी आवश्यक सेवाओं का प्रावधान शामिल है।
सोशल मीडिया का उपयोग सार्वजनिक सेवा वितरण के लिये विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है, जैसे सूचना प्रसारित करना, फीडबैक मांगना, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना, नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देना आदि।
मुख्य भाग:
सार्वजनिक सेवा वितरण के लिये सोशल मीडिया के उपयोग में शामिल कुछ नैतिक मुद्दे:
- गोपनीयता और डेटा सुरक्षा:
- सोशल मीडिया प्लेटफार्म उपयोगकर्त्ताओं के व्यक्तिगत और संवेदनशील डेटा को बड़ी मात्रा में एकत्र और संग्रहीत करते हैं, जिसका तीसरे पक्ष, हैकर्स और यहाँ तक कि सरकार द्वारा भी दुरुपयोग या उल्लंघन किया जा सकता है।
- यह नागरिकों की निजता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन कर सकता है और उन्हें पहचान की चोरी (आइडेंटिटी थेफ्ट), साइबर अपराध, निगरानी आदि जैसे खतरे में डाल सकता है।
- उदाहरण के लिये आधार डेटा लीक से लाखों भारतीयों की निजी जानकारी प्रभावित हो सकती है।
- फेक न्यूज़ और गलत सूचना:
- सोशल मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग झूठी या भ्रामक जानकारी फैलाने के लिये भी किया जा सकता है, जो जनता के बीच तनाव, भ्रम, घृणा, हिंसा या अविश्वास पैदा कर सकता है।
- यह सार्वजनिक सेवा वितरण की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता को कमज़ोर कर सकता है और सार्वजनिक हित को नुकसान पहुँचा सकता है।
- उदाहरण के लिये COVID-19 महामारी के कारण, बीमारी के कारणों, लक्षणों, रोकथाम और उपचार के संबंध में सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ और गलत सूचनाओं में वृद्धि देखी गई।
- डिजिटल डिवाइड और उसके प्रभाव:
- सोशल मीडिया प्लेटफार्मों तक पहुँच के लिये इंटरनेट कनेक्टिविटी, डिजिटल उपकरणों और डिजिटल साक्षरता की आवश्यकता होती है, जो समाज के सभी वर्गों के लिये समान रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
- यह एक ‘डिजिटल डिवाइड’ उत्पन्न कर सकता है और उन लोगों को सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक सेवा वितरण तक पहुँचने या लाभ उठाने से बाहर कर सकता है जो गरीब, ग्रामीण, अशिक्षित, बुजुर्ग, विकलांग आदि हैं।
- उदाहरण के लिये कोविड-19 के कारण लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन शिक्षा उन कई छात्रों के लिये दुर्गम थी जिनके पास इंटरनेट तक पहुँच या उपकरणों की कमी थी।
- नैतिक दुविधाएँ और संघर्ष:
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उन लोक सेवकों के लिये नैतिक दुविधाएँ और संघर्ष पैदा कर सकता हैं, जिन्हें अपनी व्यक्तिगत और व्यावसायिक पहचान, मूल्यों और ज़िम्मेदारियों को संतुलित करना होता है।
- सार्वजनिक सेवा वितरण के लिये सोशल मीडिया का उपयोग करते समय उन्हें गोपनीयता, निष्पक्षता, सत्यनिष्ठता, जवाबदेही आदि बनाए रखने जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ सकता है।
- उदाहरण के लिये एक लोक सेवक को ऑनलाइन उत्पीड़न, ट्रोलिंग, आलोचना या विभिन्न हितधारकों के दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
निष्कर्ष:
- हालाँकि, सोशल मीडिया एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है, लेकिन यह कुछ नैतिक चुनौतियाँ भी उत्पन्न करता है, जिन्हें उचित उपाय अपनाकर संबोधित करने की आवश्यकता है:.
- लोक सेवकों और नागरिकों के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश और आचार संहिता विकसित करना, डेटा सुरक्षा, गोपनीयता, साइबर सुरक्षा आदि के लिये कानूनी और संस्थागत ढाँचे को मज़बूत करना, फेक न्यूज़ और गलत सूचना का सामना करना, डिजिटल डिवाइड का निपटान करना तथा समाज के सभी वर्गों को सस्ती और सुलभ इंटरनेट कनेक्टिविटी, उपकरण और साक्षरता प्रदान करके डिजिटल समावेश सुनिश्चित करना।