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प्रश्न :
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) विभिन्न कारकों के कारण विश्वसनीयता और भरोसे के संकट का सामना कर रहा है। इस संकट के कारणों और परिणामों का विश्लेषण कीजिये तथा CBI के संदर्भ में सार्वजनिक विश्वास एवं प्रतिष्ठा को बहाल करने के उपायों का सुझाव दीजिये। (250 शब्द)
20 Jun, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के परिचय के साथ अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- विश्वसनीयता एवं भरोसे के संकट के कारण लिखिये।
- संकट के परिणामों का विश्लेषण कीजिये।
- जनता के विश्वास और प्रतिष्ठा को बहाल करने के उपाय सुझाइए।
- तदनुसार निष्कर्ष लिखिये ।
भूमिका:
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) भारत की प्रमुख जाँच एजेंसी है जिसे भ्रष्टाचार निवारण हेतु संथानम समिति की सिफारिश पर स्थापित किया गया था। यह भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराधों, विशेष अपराधों आदि के मामलों का निवारण करती है। वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने कहा कि सीबीआई ‘’पिंजरे में बंद ऐसा तोता बन गई है जो अपने मालिक की बोली बोलता है।
मुख्य भाग:
संकट के कारण:
- राजनीतिक हस्तक्षेप:
- सीबीआई को अक्सर अपने राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने या अपने सहयोगियों का पक्ष लेने के लिये केंद्र सरकार के एक उपकरण के रूप में देखा जाता है।
- सीबीआई की जाँच सत्ताधारी दल या गठबंधन के राजनीतिक विचारों और दबावों से प्रभावित होती है। यह इसकी निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता को प्रभावित करता है तथा सार्वजनिक छवि को खराब करता है।
- आंतरिक संघर्ष:
- नियुक्तियों, स्थानांतरण, पदोन्नति, जाँच आदि जैसे विभिन्न मुद्दों पर अपने शीर्ष अधिकारियों के बीच आंतरिक संघर्ष और दरार जैसे कई उदाहरण सीबीआई के समक्ष आए है।
- ये संघर्ष संगठन के भीतर समन्वय, सहयोग और विश्वास की कमी को दर्शाते हैं तथा इसके कामकाज और मनोबल को बाधित करते हैं।
- पारदर्शिता की कमी:
- सीबीआई गोपनीय और अपारदर्शी तरीके से कार्य करती है यह जनता या मीडिया के सामने अपने मामलों, प्रक्रियाओं, परिणामों आदि के बारे में अधिक जानकारी का खुलासा नहीं करती है।
- पारदर्शिता की कमी सीबीआई के चारों ओर रहस्य और संदेह की धारणा विकसित करती है तथा इसकी जवाबदेही एवं सत्यनिष्ठा पर संदेह पैदा करती है।
संकट के परिणाम:
- सार्वजनिक विश्वास का नुकसान:
- हाल ही के वर्षों में कई विवादों और घोटालों में घिरे होने के कारण सीबीआई की विश्वसनीयता और विश्वास में गंभीर रूप से कमी आई है।
- एक स्वतंत्र और पेशेवर एजेंसी के रूप में सीबीआई, जो न्याय प्रदान कर सकती है और भ्रष्टाचार से लड़ सकती हैं , के प्रति जनता का विश्वास और सम्मान खो गया है।
- न्यायिक हस्तक्षेप:
- सीबीआई के संकट ने सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों, केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC), आदि द्वारा लगातार न्यायिक हस्तक्षेप और जाँच को आमंत्रित किया है।
- न्यायपालिका द्वारा अक्सर विभिन्न मामलों में सीबीआई के कार्यों और निर्णयों की आलोचना, निंदा की गई है।
- यह जनहित और कानून के अनुसार अपने कर्त्तव्यों को निभाने में सीबीआई की विफलता को दर्शाता है।
- शासन पर प्रभाव:
- सीबीआई के संकट ने देश के शासन और प्रशासन को भी प्रभावित किया है।
- सीबीआई की जाँचों ने लोक सेवकों, राजनेताओं, व्यापारियों आदि, जो विभिन्न मामलों में शामिल हैं या उन पर आरोप लगाएँ गए हैं, के बीच भय और अनिश्चितता का माहौल पैदा कर दिया है।
- यह उनकी दक्षता और प्रभावशीलता को बाधित करता है तथा उनके मनोबल और प्रेरणा को कम करता है।
सीबीआई के सार्वजनिक विश्वास और प्रतिष्ठा को बहाल करने के उपाय:
- वैधानिक स्थिति:
- एक अलग कानून बनाकर सीबीआई को वैधानिक दर्जा प्रदान किया जाना चाहिये, जो इसकी शक्तियों, कार्यों, अधिकार क्षेत्र और सीमाओं को परिभाषित करता हो।
- यह इसके अस्तित्व और संचालन के लिये एक कानूनी आधार प्रदान कर इसे राजनीतिक हस्तक्षेप से अलग करेगा।
- चयन समिति:
- सीबीआई निदेशक और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति एक उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति, जिसमें कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के प्रतिनिधि शामिल हों, द्वारा की जानी चाहिये।
- यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के अनुरूप एक व्यापक-आधारित और पारदर्शी चयन प्रक्रिया सुनिश्चित करेगा।
- निश्चित कार्यकाल:
- सीबीआई निदेशक और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को मनमाने स्थानांतरण या निष्कासन से सुरक्षा प्रदान कर कम से कम पाँच वर्ष का निश्चित कार्यकाल सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- यह उनकी स्थिरता और सेवा की सुरक्षा को बढ़ाएगा और उन्हें बिना किसी भय या पक्षपात के अपने कर्त्तव्यों का पालन करने में सक्षम बनाएगा।
- वित्तीय स्वायत्तता:
- संसद द्वारा अनुमोदित अपना बजट प्रस्तुत करने की अनुमति देकर सीबीआई को वित्तीय स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिये।
- इससे वित्त और संसाधनों हेतु केंद्र सरकार पर इसकी निर्भरता कम हो जाएगी और यह अपनी गतिविधियों की योजना बनाने और कुशलता से निष्पादित करने में सक्षम होगा।
- निगरानी निकाय:
- सीबीआई को एक स्वतंत्र निगरानी निकाय के प्रति जवाबदेह होना चाहिये, जो नियमित आधार पर उसके प्रदर्शन और आचरण की निगरानी करता हो।
- यह निकाय एक संसदीय समिति या एक वैधानिक प्राधिकरण हो सकता है जिसमें विभिन्न पृष्ठभूमि और विशेषज्ञता के सदस्य होते हो।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि सीबीआई कानून और जनहित के अनुसार कार्य करे और किसी भी चूक या उल्लंघन के लिये जवाबदेह हो।
निष्कर्ष:
सीबीआई भ्रष्टाचार से लड़ने, जवाबदेही सुनिश्चित करने और न्याय देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालाँकि, सीबीआई विभिन्न कारकों के कारण विश्वसनीयता और आत्मविश्वास के संकट का सामना कर रही है, जिसने इसकी स्वतंत्रता, व्यावसायिकता और अखंडता को कमज़ोर कर दिया है। इसलिये इस संकट के कारणों और परिणामों को संबोधित करते हुए ऊपर सुझाए गए उपायों को लागू कर सीबीआई में सुधार करने की आवश्यकता है। यह सीबीआई के सार्वजनिक विश्वास और प्रतिष्ठा को बहाल करेगा और इसे अपने जनादेश तथा मिशन को प्रभावी ढंग एवं कुशलता से पूरा करने को सक्षम बनाएगा।
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