सिविल सेवकों हेतु उपयुक्त चाणक्य के दर्शन के मुख्य सिद्धांतों की चर्चा कीजिये तथा बताइये कि समकालीन भारतीय प्रशासन हेतु ये सिद्धांत किस प्रकार प्रासंगिक हैं। (150 शब्द)
उत्तर :
परिचय:
प्राचीनकाल में चाणक्य एक भारतीय शिक्षक और दार्शनिक थे। इन्होंने अर्थशास्त्र नामक प्रमुख पुस्तक लिखी थी जो तत्कालीन प्रशासन, अर्थव्यवस्था और नैतिकता के विभिन्न पहलुओं से संबंधित है। सिविल सेवकों के लिये चाणक्य की अर्थशास्त्र और उनके अन्य संग्रहों से संबंधित दर्शन प्रासंगिक हैं।
मुख्य भाग:
उनके दर्शन के कुछ मुख्य सिद्धांत:
- धर्म (कर्त्तव्य): चाणक्य का मानना था कि सिविल सेवक को नैतिक विधि के साथ न्याय तथा धार्मिकता के सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना चाहिये। इन्हें कमजोरों की रक्षा करने के साथ दुष्टों को दंड देने और लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने पर बल देना चाहिये।
- वफादारी: चाणक्य ने इस बात पर जोर दिया कि सिविल सेवक को अपने राजा और अपने देश के प्रति वफादार होना चाहिये, न कि व्यक्तिगत हितों या बाहरी प्रभावों से प्रभावित होना चाहिये। इन्हें ईमानदारी, निष्ठा और समर्पण के साथ सेवा करनी चाहिये।
- विवेक: चाणक्य ने कहा कि सिविल सेवक को अपने निर्णयों और कार्यों में विवेकपूर्ण रहने के साथ बुद्धिमानी का परिचय देना चाहिये। इन्हें फिजूलखर्ची, अनावश्यक झगड़ों और नकारात्मक गठजोड़ से बचना चाहिये। इन्हें बदलती परिस्थितियों से अवगत रहने के साथ उसके अनुसार अनुकूलन करना चाहिये।
- सक्षमता: चाणक्य ने इस बात पर बल दिया कि सिविल सेवक को अपने कार्यक्षेत्र में कुशल और सक्षम होना चाहिये। उसे राज्य के कानूनों, नीतियों और प्रक्रियाओं का गहन ज्ञान होना चाहिये। उसे प्रभावी ढंग से संवाद करने, संसाधनों का कुशलता से प्रबंधन करने और समस्याओं को रचनात्मक रूप से हल करने में भी सक्षम होना चाहिये।
ये सिद्धांत समकालीन भारतीय नौकरशाही के लिये प्रासंगिक हैं क्योंकि इनसे सुशासन और नैतिक आचरण के लिये व्यापक रूपरेखा मिलती है। यह निम्नलिखित रूपों में सिविल सेवकों के लिये सहायक हो सकते हैं जैसे:
- संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के साथ लोगों का कल्याण करना: चाणक्य के सिद्धांत, सिविल सेवकों को लोगों के कल्याण को प्राथमिकता देने तथा लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, न्याय और समानता जैसे संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने हेतु मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इनका अनुसरण कर सिविल सेवक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज सुनिश्चित करने हेतु प्रेरित हो सकते हैं।
- दक्षता और प्रभावशीलता में वृद्धि होना: क्षमता, वफादारी, ईमानदारी और परिश्रम जैसे चाणक्य के सिद्धांत भारतीय नौकरशाही के लिये प्रासंगिक हैं। सिविल सेवक इन सिद्धांतों का पालन करके अपने कौशल को बढ़ाने एवं सत्यनिष्ठा बनाए रखने के साथ नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं।
- जटिल और गतिशील स्थितियों से निपटना: वैश्वीकरण, प्रौद्योगिकीकरण, विविधता और विकास जैसे क्षेत्रों में उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने तथा इससे संबंधित अवसरों का लाभ उठाने के लिये समकालीन सिविल सेवकों के लिये व्यवहारिकता और अनुकूलनशीलता से संबंधित चाणक्य के सिद्धांत महत्त्वपूर्ण हैं। ये सिद्धांत उन्हें नवोन्मेषी समाधान विकसित करने, विविध उपकरणों और विधियों को नियोजित करने तथा अपने लक्ष्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं।
- नैतिकता की संस्कृति को बढ़ावा मिलना: चाणक्य के नैतिकता और आध्यात्मिकता संबंधी सिद्धांतों का पालन करके, सिविल सेवक भ्रष्टाचार को रोकने एवं समाज में सकारात्मक मूल्यों को बढ़ावा दे सकते हैं तथा अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में शांति और खुशी प्राप्त कर सकते हैं।
निष्कर्ष:
सिविल सेवकों के लिये चाणक्य का दर्शन (जो नैतिक शासन, कुशल संसाधन प्रबंधन, रणनीतिक सोच और निरंतर सीखने की प्रक्रिया पर केंद्रित है) अत्यधिक प्रासंगिक है। इन सिद्धांतों को शामिल करने से सिविल सेवकों की प्रभावशीलता और सत्यनिष्ठा में वृद्धि हो सकती है तथा राष्ट्र के समग्र विकास में योगदान मिल सकता है।