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प्रश्न :
द्रविड़ मंदिर वास्तुकला की विशिष्ट विशेषताओं पर प्रकाश डालिये और इस स्थापत्य शैली को आकार देने में चोल राजवंश द्वारा निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिका का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
05 Jun, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: द्रविड़ वास्तुकला शैली के बारे में बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये
- मुख्य भाग: द्रविड़ वास्तुकला शैली की विशेषताओं को बताते हुए इसमें चोल राजवंश के योगदान का उल्लेख कीजिये।
- निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को सारांशित करते हुए निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
द्रविड़ मंदिर वास्तुकला शैली का विकास भारत के दक्षिणी क्षेत्रों (मुख्य रूप से तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश राज्यों) में हुआ है। इसकी कुछ विशेषताएँ इसे भारत की अन्य स्थापत्य शैली से अलग करती हैं। चोल राजवंश (जिसने 9वीं से 13वीं शताब्दी तक दक्षिणी भारत के काफी बड़े हिस्से पर शासन किया था) ने द्रविड़ मंदिर वास्तुकला शैली को आकार देने और लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मुख्य भाग:
द्रविड़ मंदिर वास्तुकला शैली की विशेषताएँ:
- विमान: द्रविड़ मंदिर वास्तुकला के प्रमुख तत्त्वों में से एक विमान है, जिसे गोपुरम या शिखर के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर के गर्भगृह के ऊपर विशाल, पिरामिड जैसी संरचना के रूप में होता है। विमान आमतौर पर जटिल नक्काशी, मूर्तियों से सुशोभित होने के साथ कई संस्तरों वाले होते हैं।
- मंडप: द्रविड़ मंदिरों में स्तंभों वाले कक्ष होते हैं जिन्हें मंडप कहा जाता है। इनका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों, सभाओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिये किया जाता था। मंडपों के खंभे और छतों पर हिंदू पौराणिक कथाओं के दृश्यों को प्रदर्शित करने वाली जटिल नक्काशी देखने को मिलती है।
- शिखर: शिखर नुकीली, पिरामिडनुमा छत के रूप में विमान के शीर्ष पर होते हैं। यह अक्सर मूर्तियों और कलशों जैसे सजावटी तत्त्वों से सुशोभित होता है।
- गोपुरम: द्रविड़ मंदिरों को बड़े प्रवेश द्वारों के लिये जाना जाता है, जिन्हें गोपुरम कहा जाता है। ये विशाल संरचनाएँ देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं एवं हिंदू महाकाव्यों के दृश्यों को चित्रित करने वाली आकृतियों से अलंकृत होती हैं।
- गोष्टम: गोष्टम, गर्भगृह की बाहरी दीवारों पर उकेरे गए देवता को कहा जाता है। ये आमतौर पर मंदिर के मुख्य देवता से संबंधित होते हैं जो भगवान् के विभिन्न पहलुओं या रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
द्रविड़ मंदिर वास्तुकला को आकार देने में चोल राजवंश की भूमिका:
- संरक्षण और निर्माण: चोल राजवंश ने कई भव्य मंदिरों को संरक्षण देने के साथ इनके निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस प्रकार इस राजवंश ने द्रविड़ मंदिर वास्तुकला के विकास और प्रसार में योगदान दिया था। चोल वंश के शासकों, विशेष रूप से राजराज चोल I और उनके उत्तराधिकारी राजेंद्र चोल I ने, बृहदेश्वर मंदिर और गंगईकोंडचोलपुरम मंदिर जैसे विशाल मंदिरों का निर्माण कराया था।
- वास्तुकला शैली में नवाचार लाना: चोल राजवंश ने वास्तुकला शैली से संबंधित कई नवाचारों को अपनाया था जो द्रविड़ मंदिर वास्तुकला की पहचान बन गए। उन्होंने बड़ी और अधिक विस्तृत संरचनाओं को शुरू करके विमानों की अवधारणा का विस्तार किया था। राजराज चोल I द्वारा निर्मित बृहदेश्वर मंदिर, चोल राजवंश की वास्तुकला शैली की प्रतिभा का परिचायक है। एकाश्म ग्रेनाइट चट्टान से निर्मित इसका विशाल विमान, अपने समय की महत्त्वपूर्ण विनिर्माण उपलब्धियों में से एक है।
- मूर्तिकला पर बल: चोल, कला के महान संरक्षक थे और उन्होंने द्रविड़ मंदिरों में जटिल मूर्तियों और नक्काशियों के प्रसार पर बल दिया था। उन्होंने अपने मंदिरों में विभिन्न देवताओं के साथ पौराणिक दृश्यों से संबंधित चित्रण को प्रोत्साहित किया था। चोल मंदिरों से संबंधित मूर्तियों (जैसे नटराज) से असाधारण कलात्मकता और भक्ति भाव का प्रदर्शन होता है।
- मंदिर प्रशासन और अनुष्ठान: चोल राजवंश ने एक सुव्यवस्थित मंदिर प्रशासन प्रणाली की स्थापना की थी। उन्होंने द्रविड़ मंदिरों से जुड़ी स्थापत्य और सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
निष्कर्ष:
द्रविड़ मंदिर वास्तुकला शैली की विमान, मंडप, गोपुरम, जटिल नक्काशी और मूर्तियों के रूप में प्रमुख विशेषताएँ हैं। चोल राजवंश ने मंदिरों के संरक्षण, भव्य मंदिरों के निर्माण, स्थापत्य शैली में नवाचार, मूर्तिकला को प्रोत्साहन देने एवं एक व्यवस्थित मंदिर प्रशासन की स्थापना के माध्यम से इस वास्तुकला शैली को प्रभावित किया था। इस वंश के योगदान ने द्रविड़ मंदिर वास्तुकला को आकार देने तथा लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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