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प्रश्न :
सुकरात की मुख्य शिक्षाएँ क्या हैं। लोक सेवा में नैतिक निर्णय लेने के क्रम में यह शिक्षाएँ किस प्रकार प्रासंगिक हैं? उदाहरणों के साथ समझाइए। (150 शब्द)
01 Jun, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: सुकरात के बारे में बताते हुए उल्लेख कीजिये कि लोक सेवा में नैतिक निर्णय लेने के संदर्भ में उनकी शिक्षाओं की महत्त्वपूर्ण प्रासंगिकता है।
- मुख्य भाग: सुकरात की प्रमुख शिक्षाओं एवं लोक सेवा में नैतिक निर्णय लेने के संदर्भ में इन शिक्षाओं की प्रासंगिकता बताते हुए सुकरात की शिक्षाओं के अनुप्रयोग से संबंधित उदाहरण प्रस्तुत कीजिये।
- निष्कर्ष: लोक सेवा में नैतिक निर्णय लेने के संदर्भ में सुकरात की शिक्षाओं के महत्त्व को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
सुकरात ग्रीक दार्शनिक थे जिन्हें पश्चिमी दर्शन के संस्थापक तथा विचारों की नैतिक परंपरा को अपनाने वाले पहले नैतिक विचारकों में से एक के रूप में संदर्भित किया जाता है। उन्होंने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा था बल्कि उनकी शिक्षाओं को उनके छात्रों प्लेटो और जेनोफन द्वारा संकलित किया गया था। लोक सेवा में नैतिक निर्णय लेने के संदर्भ में उनकी शिक्षाएँ अत्यधिक प्रासंगिक हैं।
उनकी कुछ मुख्य शिक्षाएँ:
- सुकरात पद्धति: यह सीखने और सिखाने का एक ऐसा तरीका है जिसमें सोच और समझ को बेहतर बनाने के लिये प्रश्नों और उत्तरों का उपयोग किया जाता है। सुकरात ने सदाचार, न्याय, साहस आदि जैसे विषयों के संदर्भ में इस तरीके का इस्तेमाल किया था। उनका मानना था कि स्वयं से सवाल करके कोई व्यक्ति सच्चाई का पता लगाने के साथ बेहतर इंसान बन सकता है।
- सुकरात का विरोधाभासी सिद्धांत: ये ऐसे कथन हैं जो विरोधाभासी प्रतीत होते हैं लेकिन इनसे गहन अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है। उनमें से कुछ निम्न हैं जैसे: "केवल एक चीज जो मैं जानता हूँ वह यह है कि मैं कुछ नहीं जानता", "कोई भी स्वेच्छा से गलत नहीं करता है", "सद्गुण ही ज्ञान है" आदि। ये विरोधाभास पारंपरिक ज्ञान को चुनौती देने के साथ किसी को अपने मूल्यों और कार्यों पर पुनर्विचार करने हेतु प्रेरित करते हैं।
- सुकरात की नैतिकता: इसके अनुसार सद्गुण सबसे उच्च मूल्य है और इससे खुशी का मार्ग प्रशस्त होता है। सुकरात के अनुसार सद्गुण को प्रश्न पूछकर तथा उत्तर देकर सीखा जा सकता है। उनके अनुसार व्यक्ति को अपने तर्क और विवेक से कार्य करना चाहिये न कि दूसरों के अनुसार।
ये शिक्षाएँ लोक सेवा में नैतिक निर्णय लेने के क्रम में प्रासंगिक हैं क्योंकि इससे व्यक्ति निम्नलिखित के लिये प्रोत्साहित होता है:
- कोई भी कार्रवाई करने से पहले मुद्दों की स्पष्टता और उन्हें समझने पर बल देना।
- अपने स्वयं के पूर्वाग्रहों और उद्देश्यों पर सवाल उठाने के साथ विभिन्न दृष्टिकोणों और तर्कों पर विचार करना।
- अपने आचरण में उत्कृष्टता और सत्यनिष्ठा को महत्त्व देने के साथ भ्रष्टाचार से दूर रहना।
- दूसरों की प्रतिष्ठा और अधिकारों का सम्मान करने के साथ करुणा और समानुभूति के साथ कार्य करना।
- लोकतंत्र, न्याय, समानता और लोक हित के मूल्यों पर बल देना।
लोक सेवा में इन शिक्षाओं के अनुप्रयोग से संबंधित कुछ उदाहरण:
- विभिन्न नीतियों, कार्यक्रमों और परियोजनाओं के संबंध में सार्वजनिक परामर्श, विचार-विमर्श और मूल्यांकन करने के क्रम में सुकरात की पद्धति का उपयोग किया जाना।
- अहंकार, अज्ञानता एवं हठधर्मिता को दूर करने तथा विनम्रता, जिज्ञासा, समालोचनात्मक विचार एवं आत्म-सुधार को बढ़ावा देने के लिये सुकरात के विरोधाभासी सिद्धांतों का पालन करना।
- आचार संहिता, नैतिकता और लोक सेवा से संबंधित मूल्यों का पालन करने और इनसे समझौता करने वाले किसी भी प्रलोभन या दबाव का प्रतिरोध करने हेतु सुकरात के नैतिकता संबंधी सिद्धांतों का पालन किया जाना।
निष्कर्ष:
समालोचनात्मक विचार, ज्ञान की खोज, नैतिकता और लोक कल्याण को प्राथमिकता देने से संबंधित सुकरात की शिक्षाएँ लोक सेवा में नैतिक निर्णय लेने के क्रम में सहायक होती हैं। जो लोक सेवक इन शिक्षाओं को अपनाते हैं वे तार्किक एवं नैतिक रूप से उचित निर्णय ले सकते हैं जिससे अंततः समाज के सर्वोत्तम हितों को बढ़ावा मिलता है।
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