भारत में विकास और उग्रवाद के बीच संबंधों की चर्चा कीजिये। देश की आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौती उत्पन्न करने वाले हिंसक आंदोलनों के मूल कारणों को सरकार किस प्रकार दूर कर सकती है? उपयुक्त उदाहरणों सहित अपने उत्तर की व्याख्या कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: विकास और उग्रवाद जैसे शब्दों को परिभाषित करते हुए उग्रवाद के विभिन्न रूपों का संक्षिप्त विवरण दीजिये।
- मुख्य भाग: विकास और उग्रवाद के बीच संबंधों पर चर्चा करते हुए बताइये कि ऐसे हिंसक आंदोलनों के मूल कारणों को कैसे हल किया जा सकता है।
- निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को बताते हुए अपना दृष्टिकोण बताइये।
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परिचय:
विकास और उग्रवाद आपस में संबंधित हैं। विकास का आशय लोगों के सामाजिक और आर्थिक कल्याण में सुधार होना है जबकि उग्रवाद का आशय राजनीतिक या वैचारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये हिंसा या कट्टरपंथी साधनों का उपयोग करना है। भारत में उग्रवाद के विभिन्न रूप हैं जैसे वामपंथी उग्रवाद (LWE), धार्मिक उग्रवाद, जातीय उग्रवाद और अलगाववादी आंदोलन। ये देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये गंभीर चुनौती उत्पन्न करते हैं।
मुख्य भाग:
विकास और उग्रवाद के बीच संबंध:
- सामाजिक आर्थिक विषमताएँ: किसी क्षेत्र की विकासात्मक चुनौतियों से चरमपंथी विचारधाराओं को आधार मिलता है। समाज के सीमांत वर्ग इन चरमपंथी विचारधाराओं के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं।
- क्षेत्रीय असमानताएँ: विकास के स्तर पर क्षेत्रीय असंतुलन होने से ऐसी समस्याओं को और भी बढ़ावा मिलता है। विकास के संदर्भ में उपेक्षित क्षेत्र उग्रवादी गतिविधियों के प्रमुख केंद्र बन जाते हैं। संसाधनों के असमान वितरण और समावेशी विकास की कमी से भी अलगाव और चरमपंथी विचारधाराओं को बढ़ावा मिलता है।
- पहचान-आधारित संघर्ष: विविधतापूर्ण समाज विभिन्न धार्मिक, जातीय और भाषाई पहचानों से संबंधित होता है। यदि इन्हें पर्याप्त रूप से महत्त्व न देने के साथ विकास प्रक्रिया में समायोजित नहीं किया जाता है तो इससे तनाव को बढ़ावा मिल सकता है जिससे उग्रवादी गतिविधियों का मार्ग प्रशस्त होता है।
- सामाजिक एकता का अभाव: यदि सामाजिक एकता का अभाव है तो केवल विकासात्मक पहलों द्वारा चरमपंथी विचारधाराओं का मुकाबला नहीं किया जा सकता है। पूर्वाग्रह, भेदभाव और सांप्रदायिक तनाव से एकीकृत समाज के निर्माण के प्रयास कमजोर होते हैं। इसीलिये समावेशी विकास को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है जिससे सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा मिलने के साथ हाशिये पर स्थित समुदायों की चिंताओं को दूर करने पर बल दिया जा सके।
इन हिंसक आंदोलनों के मूल कारणों के समाधान हेतु उपाय:
- राजनीतिक संवाद को बढ़ावा देना: सरकार, हिंसा छोड़ने के इच्छुक चरमपंथी समूहों के साथ राजनीतिक बातचीत कर सकती है। इस क्रम में अन्य हितधारक जैसे नागरिक समाज संगठन, मीडिया और शिक्षाविद इस प्रकार के संवाद की सुविधा प्रदान कर सकते हैं। सरकार, लोकतंत्र और संघवाद के ढाँचे के तहत चरमपंथी समूहों की राजनीतिक शिकायतों और मांगों को हल कर सकती है।
- सामाजिक-आर्थिक विकास: सरकार, हाशिये पर स्थित वर्गों को ध्यान में रखते हुए समावेशी और न्यायसंगत विकास को बढ़ावा दे सकती है। सरकार द्वारा उग्रवाद से प्रभावित या इसमें शामिल लोगों के लिये आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ भागीदारी के अवसर प्रदान किये जा सकते हैं।
- सुरक्षा उपाय: सरकार को उग्रवाद को रोकने और उसका मुकाबला करने के लिये सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करना चाहिये। विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय और सहयोग बढ़ाया जाना चाहिये। खुफिया जानकारी एकत्र करने और साझा करने के तंत्र में सुधार किया जाना चाहिये। इसके साथ ही चरमपंथियों का मुकाबला करने के क्रम में मानवाधिकारों के साथ विधि के शासन को सुनिश्चित करना चाहिये।
- सामाजिक एकीकरण: सरकार द्वारा विभिन्न समूहों और समुदायों के बीच सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा देने के साथ संवाद, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से सांप्रदायिक सद्भाव और सहिष्णुता को बढ़ावा दिया जा सकता है। नागरिक समाज संगठन, मीडिया और शिक्षाविद लोगों में जागरूकता, संवेदनशीलता और एकजुटता पैदा कर सकते हैं।
भारत में विकास और उग्रवाद के बीच संबंधों के कुछ उदाहरण:
- वामपंथी उग्रवाद या नक्सलवाद: वामपंथी उग्रवाद की विचारधारा वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी क्षेत्र में विकसित हुई थी। इसके बाद वामपंथी उग्रवाद की विचारधारा का विस्तार पूर्वी भारत के अन्य क्षेत्रों में हुआ था जहाँ आदिवासियों, दलितों और भूमिहीन मजदूरों ने खुद को शोषित और उपेक्षित महसूस किया था। वामपंथी उग्रवाद से अस्थिरता और असुरक्षा होने के साथ विकास प्रभावित होता है। वामपंथी उग्रवाद से निपटने हेतु सरकार ने सुरक्षा और विकासात्मक उपायों को अपनाया है।
- पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद: उग्रवाद एक अलगाववादी आंदोलन है जिसमें जातीय पहचान के आधार पर स्वायत्तता या स्वतंत्रता हेतु संघर्ष किया जाता है। ऐतिहासिक विरासत, सांस्कृतिक विविधता और आर्थिक पिछड़ेपन जैसे विभिन्न कारकों की वजह से पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद को बढ़ावा मिला है। विद्रोहियों द्वारा सुरक्षा बलों के साथ सशस्त्र संघर्ष किये जाने के कारण इससे आंतरिक सुरक्षा को चुनौती उत्पन्न होती है। उग्रवाद से अस्थिरता और असुरक्षा उत्पन्न होने के साथ विकास प्रभावित होता है।
- धार्मिक अतिवाद: धार्मिक अतिवाद एक ऐसी कट्टरपंथी विचारधारा है जिसमें हिंसा या असहिष्णुता को सही ठहराया जाता है। इससे अस्थिरता और असुरक्षा पैदा होने के साथ विकास प्रभावित होता है। सरकार ने इससे निपटने के लिये सुरक्षात्मक, विधिक और सामाजिक उपायों को अपनाया है।
निष्कर्ष:
भारत में विकास और उग्रवाद के बीच प्रमुख संबंध हैं। सामाजिक आर्थिक विषमताएँ, पहचान-आधारित संघर्ष और सामाजिक एकता की कमी से उग्रवाद की विचारधारा को बल मिलता है। सरकार को समावेशी विकास को प्राथमिकता देने के साथ शासन व्यवस्था को मज़बूत करने, विभिन्न समुदायों को मुख्यधारा में शामिल करने, शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देने तथा इन चुनौतियों से निपटने के लिये सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करने पर बल देना चाहिये जिससे हिंसक आंदोलनों के मूल कारणों को प्रभावी ढंग से समाप्त किया जा सके।