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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारतीय मंदिर परंपरा में चौसठ योगिनी वास्तुकला के महत्त्व की चर्चा कीजिये। इस वास्तुकला से तत्कालीन समाज के सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक पहलू किस प्रकार परिलक्षित होते हैं? (150 शब्द)

    29 May, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • परिचय: चौसठ योगिनी वास्तुकला और इसकी मुख्य विशेषताओं को परिभाषित कीजिये।
    • मुख्य भाग: चौसठ योगिनी वास्तुकला के महत्त्व की व्याख्या करते हुए बताइये कि इससे उस समय के सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक पहलू किस प्रकार परिलक्षित होते हैं।
    • निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    चौसठ योगिनी वास्तुकला 9वीं और 11वीं शताब्दी के दौरान निर्मित मंदिर वास्तुकला की एक विशिष्ट शैली है। इन मंदिरों में 64 योगिनियों (योग करती हुई महिलाओं) के संकुल होने से इन्हें चौसठ योगिनी मंदिर कहा जाता है। ये मंदिर आमतौर पर शिव या भैरव को समर्पित होते हैं जिन्हें मंदिर परिसर के केंद्र में स्थापित किया जाता है। इन योगिनियों को शक्तिशाली दिव्य स्त्री स्वरूप में दर्शाया गया है जो अक्सर तांत्रिक प्रथाओं और अनुष्ठानों से जुड़ी प्रतीत होती हैं।

    मुख्य भाग:

    चौसठ योगिनी वास्तुकला का महत्त्व:

    भारतीय मंदिर परंपरा में चौसठ योगिनी वास्तुकला का महत्त्व ब्रह्मांडीय ऊर्जा और शिव तथा शक्ति के बीच गतिशील संबंधों के प्रतिनिधित्व में निहित है। इन मंदिरों का गोलाकार आकार समय की चक्रीय प्रकृति और लौकिक व्यवस्था का प्रतीक है। इन योगिनियों को शक्ति की अभिव्यक्ति के रूप में दिखाया गया है। इन योगिनियों से मानव व्यक्तित्व, भावनाओं, इच्छाओं और शक्तियों के विभिन्न पहलुओं का भी प्रतिनिधित्व होता है।

    इन योगिनियों की पूजा द्वारा भक्त आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त करने के क्रम में अपने आंतरिक और बाहरी स्तर पर सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करते हैं।

    चौसठ योगिनी वास्तुकला उस युग (जिसमें इसे बनाया गया था) की कई सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं को दर्शाती है जिससे उस समय की प्रचलित मान्यताओं, प्रथाओं और सामाजिक गतिशीलता के बारे में अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है जैसे:

    • देवी पूजा: चौसठ योगिनी मंदिर उस युग के दौरान देवी पूजा का परिचायक हैं और यह मंदिर देवी दुर्गा की 64 महिला अनुयायियों को समर्पित हैं, जिन्हें योगिनियों के रूप में जाना जाता है। इन शक्तिशाली प्रतिमाओं द्वारा दिव्य शक्ति के रूप में देवी की शक्ति की अवधारणा पर जोर देने के साथ इनकी आध्यात्मिक शक्ति और प्रभाव को महत्त्व दिया गया है।
    • योगिक और तांत्रिक प्रभाव: इन योगिनियों को योग मुद्राओं में दर्शाया गया है, जो उस समय की योगिक और तांत्रिक परंपराओं को दर्शाती हैं। उस दौरान योग और ध्यान को आध्यात्मिक ज्ञान तथा श्रेष्ठता प्राप्त करने के साधन के रूप में देखा जाता था।
    • सादगी और तपस्या: चौसठ योगिनी मंदिर सादगी और तपस्वी स्थापत्य शैली के लिये प्रसिद्ध हैं। पहले के समय की मंदिर संरचनाओं की तुलना में इन मंदिरों का डिज़ाइन अधिक विशिष्ठ है। अलंकृत संरचनाओं एवं अत्यधिक सजावट की अनुपस्थिति के कारण इनसे पूजा के अधिक सरलीकृत और आध्यात्मिक रूप के प्रति केंद्रित दृष्टिकोण की ओर बदलाव का संकेत मिलता है।
    • वृत्ताकार वास्तुकला का प्रतीक: चौसठ योगिनी मंदिरों की वृत्ताकार या अष्टकोणीय योजना ब्रह्मांड के लौकिक रूप का प्रतिनिधित्व करती है, जो समय की चक्रीय प्रकृति में विश्वास को दर्शाती है। यह चक्र ऊर्जा के निरंतर प्रवाह का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक गहरी आध्यात्मिक समझ और ब्रह्मांडीय क्रम और संतुलन में निहित विश्वदृष्टि का प्रतीक है।

    निष्कर्ष:

    भारतीय मंदिर परंपरा में चौसठ योगिनी वास्तुकला का अत्यधिक महत्त्व है। इसका अनोखा गोलाकार या अष्टकोणीय लेआउट, योगिनी देवी पर केंद्रित विषय-वस्तु एवं उस काल (जिसमें इसे बनाया गया था) के सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं का प्रतिबिंब जैसी विशेषताएँ इसे एक विशिष्ट और प्रभावशाली स्थापत्य शैली बनाती हैं। चौसठ योगिनी वास्तुकला का प्रभाव बाद की मंदिर शैलियों में देखा जा सकता है।

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