नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole- IOD) के बारे में बताते हुए हिंद महासागर क्षेत्र की जलवायु और मौसम प्रतिरूप पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये। IOD के सकारात्मक और नकारात्मक चरणों के संभावित सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरणीय प्रभावों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    29 May, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • परिचय: हिंद महासागर द्विध्रुव एवं इसके चरणों को संक्षेप में परिभाषित करते हुए इसकी प्रासंगिकता का उल्लेख कीजिये।
    • मुख्य भाग: विभिन्न क्षेत्रों और मौसमों में जलवायु तथा मौसम प्रतिरूप पर IOD के प्रभावों की चर्चा कीजिये। IOD के सकारात्मक और नकारात्मक चरणों के संभावित सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय परिणामों के बारे में बताइये।
    • निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को बताते हुए इस संदर्भ में कुछ उपाय सुझाइए।

    परिचय:

    IOD समुद्री सतह के तापमान का एक अनियमित दोलन है, जिसमें पश्चिमी हिंद महासागर की सतह का तापमान पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में क्रमिक रूप से कम एवं अधिक होता रहता है। हिंद महासागर द्विधुव (IOD) को भारतीय नीनो भी कहा जाता है। हिंद महासागर द्विध्रुव भारतीय मानसून को सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार से प्रभावित करता है। हिंद महासागर द्विध्रुव भारतीय मानसून के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया के ग्रीष्मकालीन मानसून को भी प्रभावित करता है।

    मुख्य भाग:

    जलवायु और मौसम प्रतिरूप पर IOD का प्रभाव:

    • IOD का सकारात्मक चरण: IOD के सकारात्मक चरण के दौरान पश्चिमी हिंद महासागर में समुद्र की सतह का तापमान औसत से अधिक हो जाता है जबकि पूर्वी हिंद महासागर में औसत से कम तापमान होता है। यह प्रतिरूप पूरे बेसिन में तापमान प्रवणता को मज़बूत करने के साथ वाकर परिसंचरण को प्रभावित करता है।

    प्रभाव:

    • वर्षा में वृद्धि: IOD के सकारात्मक चरण में पश्चिमी हिंद महासागर में (विशेष रूप से पूर्वी अफ्रीका, अरब प्रायद्वीप और भारत के पश्चिमी तट जैसे क्षेत्रों में) अधिक वर्षा होती है।
    • दक्षिण पूर्व एशिया में सूखा: इसके विपरीत हिंद महासागर के पूर्वी हिस्से में सकारात्मक IOD के दौरान वर्षा कम होती है, जिससे इंडोनेशिया, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में सूखा पड़ता है।
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात: IOD के सकारात्मक चरण में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर सहित पूर्वी हिंद महासागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के विकास को भी बढ़ावा मिल सकता है।

    सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव:

    • कृषि और खाद्य सुरक्षा: पूर्वी अफ्रीका और भारत के कुछ हिस्सों में वर्षा में वृद्धि होने से कृषि क्षेत्र को लाभ हो सकता है जिससे खाद्य सुरक्षा में सुधार हो सकता है। हालाँकि दक्षिण पूर्व एशिया में कम वर्षा होने से फसल की विफलता के कारण आर्थिक नुकसान हो सकता है।
    • मात्स्यिकी: सकारात्मक IOD से समुद्र की धाराओं में परिवर्तन और पोषक तत्वों की उपलब्धता प्रभावित होने से मत्स्यन क्षेत्र प्रभावित हो सकता है जिससे मछलियों की संख्या के साथ इनके प्रवासन प्रतिरूप में परिवर्तन हो सकता है।
    • मानव स्वास्थ्य: बदलते मौसम प्रतिरूप और सकारात्मक IOD के कारण होने वाली वर्षा से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है क्योंकि इससे मलेरिया जैसी जलजनित बीमारियों और वेक्टर जनित बीमारियों के प्रसार में योगदान मिल सकता है।
    • IOD का नकारात्मक चरण: IOD के नकारात्मक चरण के दौरान, पश्चिमी हिंद महासागर में समुद्र की सतह का तापमान औसत से कम होता है जबकि पूर्वी हिंद महासागर में तापमान औसत से अधिक होता है। इस चरण में पूरे बेसिन में ताप प्रवणता कमजोर होती है और सकारात्मक चरण की तुलना में वायुमंडलीय परिसंचरण अलग तरह से प्रभावित होता है।

    प्रभाव:

    • पश्चिमी हिंद महासागर में कम वर्षा होना: IOD के नकारात्मक चरण के परिणामस्वरूप पश्चिमी हिंद महासागर में वर्षा में कमी आती है जिससे पूर्वी अफ्रीका, अरब प्रायद्वीप और भारत के पश्चिमी तट जैसे क्षेत्र प्रभावित होते हैं।
    • दक्षिण पूर्व एशिया में वर्षा में वृद्धि होना: इसके विपरीत IOD के नकारात्मक चरण के दौरान इंडोनेशिया, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों सहित दक्षिण पूर्व एशिया में अधिक वर्षा होती है।
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात: IOD के नकारात्मक चरण के दौरान उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की घटना और तीव्रता प्रभावित होती है जिससे संभावित रूप से बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से संबंधित क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं।

    सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव:

    • कृषि और खाद्य सुरक्षा: पश्चिमी हिंद महासागर में कम वर्षा से सूखा एवं फसल की विफलता के साथ जल की कमी हो सकती है जिससे कृषि और खाद्य सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके विपरीत दक्षिण पूर्व एशिया में वर्षा में वृद्धि से कृषि को लाभ हो सकता है लेकिन अत्यधिक वर्षा भी बाढ़ का कारण बन सकती है और फसलों को नुकसान पहुँचा सकती है।
    • जल संसाधन: नकारात्मक IOD से नदी प्रवाह और जलाशय में जल स्तर सहित जल संसाधन प्रभावित हो सकते हैं जिससे जल विद्युत उत्पादन, सिंचाई प्रणाली के साथ घरेलू उपयोग के लिये जल की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र: नकारात्मक IOD चरण के दौरान वर्षा प्रतिरूप और समुद्र संबंधी स्थितियों में परिवर्तन से समुद्री और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र (जिसमें प्रवाल भित्तियाँ, मैंग्रोव और वन शामिल हैं) प्रभावित हो सकता है जो संभावित रूप से जैव विविधता की हानि और पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान का कारण बन सकता है।

    निष्कर्ष:

    IOD की भारत और उसके पड़ोसी देशों में जलवायु परिवर्तनशीलता में प्रमुख भूमिका रहती है। लाखों लोगों पर इसके सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव होते हैं। इसलिये इससे होने वाले नुकसान की रोकथाम हेतु योजना बनाने के क्रम में विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों पर IOD के प्रभावों को समझना एवं इसकी भविष्यवाणी करना महत्त्वपूर्ण है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow