वैश्विक जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों पर पर्माफ्रॉस्ट विगलन (Permafrost thawing) की भूमिका की चर्चा कीजिये। पर्माफ्रॉस्ट विगलन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के सुझाव दीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- पर्माफ्रॉस्ट और पर्माफ्रॉस्ट विगलन का वर्णन करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- इसके प्रभावों को बताते हुए इसके शमन के उपायों का उल्लेख कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- पर्माफ्रॉस्ट का आशय किसी ऐसे स्थल से है जो कम से कम दो वर्ष तक पूरी तरह से जमा हुआ (0 डिग्री सेल्सियस या कम) की स्थिती में रहता है। इसके अंतर्गत पृथ्वी का लगभग 25% भूमि क्षेत्र आता है (ज्यादातर आर्कटिक और उप-आर्कटिक क्षेत्रों जैसे उच्च अक्षांश क्षेत्रों में)। पर्माफ्रॉस्ट में बड़ी मात्रा में कार्बन,सूक्ष्म जीव और वायरस होते हैं, जो इन स्थलों पर हजारों वर्षों तक संरक्षित रहते हैं।
- पर्माफ्रॉस्ट विगलन, पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने और उसके पदार्थों के पर्यावरण में निष्कासन की प्रक्रिया से संबंधित है। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और वर्षा से पर्माफ्रॉस्ट विगलन होता है।
पर्माफ्रॉस्ट विगलन का वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है और इसके विभिन्न प्रभाव होते हैं जैसे:
- इससे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों का वायुमंडल में उत्सर्जन होता है जिससे ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा मिलता है।
- इससे प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन होता है जैसे मृदा के कटाव और भूस्खलन को बढ़ावा मिलने के साथ पौधों और जानवरों के आवासों का बाधित होना।
- इससे मानव स्वास्थ्य और आजीविका पर प्रभाव पड़ता है जैसे बुनियादी ढाँचे और इमारतों को नुकसान पहुँचना,रोगाणुओं और विषाणुओं से संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ना और स्वदेशी समुदायों के लिये खाद्य सुरक्षा तथा जल की गुणवत्ता के संबंध में जोखिम उत्पन्न होना।
- इससे वातावरण में बैक्टीरिया और वायरस (जो बर्फ और मृदा में जमे हुए थे) के निष्कासित होने से मानव और पशु स्वास्थ्य के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है।
पर्माफ्रॉस्ट विगलन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं:
- पर्माफ्रॉस्ट विगलन और ग्लोबल वार्मिंग की दर को सीमित करने के लिये विश्व स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना।
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC), पेरिस समझौते और क्योटो प्रोटोकॉल जैसी पर्यावरणीय संधियों को लागू करना।
- पर्माफ्रॉस्ट गतिशीलता और प्रतिक्रिया की समझ तथा इसकी भविष्यवाणी में सुधार के लिये पर्माफ्रॉस्ट निगरानी और अनुसंधान को बढ़ावा देना।
- इस संदर्भ में इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करना जैसे कि पाले के प्रति संवेदनशील मृदा को मोटे दाने वाले पदार्थ से बदलना, थर्मल इन्सुलेशन या वेंटिलेशन परतों का उपयोग करना या मृदा के गुणों को संशोधित करने के लिये एडिटिव्स का उपयोग करना।
निष्कर्ष:
पर्माफ्रॉस्ट विगलन तथा वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर इसके प्रभावों को कम करने के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होती है जिसमें इस संदर्भ में लचीलापन बढ़ाने के लिये अनुकूलन रणनीतियों के साथ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हेतु शमन प्रयास शामिल हैं। इन उपायों को लागू करके हम पर्माफ्रॉस्ट विगलन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने की दिशा में कार्य कर सकते हैं।