वनाग्नि की घटना एक क्रमिक पर्यावरणीय समस्या बन गई है जिसके गंभीर प्रभाव होते हैं। वनाग्नि के कारणों और प्रभावों को बताते हुए इस प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के उपायों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपने उत्तर की शुरुआत वनाग्नि और उसके पीछे निहित कारणों को परिभाषित करते हुए कीजिये
- मुख्य भाग में, वनाग्नि के प्रभावों और उन्हें न्यूनतम करने के उपायों का उल्लेख कीजिये
- निष्कर्ष में आगे की राह बताते हुए उत्तर को सारांशित कीजिये
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परिचय:
- वनाग्नि गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली एक पुनरावर्ती पर्यावरणीय समस्या है। हाल ही में गोवा के वनों में वनाग्नि की घटना सामने आई है। ISFR 2021 का अनुमान है कि देश के 36% से अधिक वन क्षेत्र पुनरावर्ती वनाग्नि का खतरा रखते हैं जबकि देश में 6% वन 'अत्यधिक' वनाग्नि-प्रवण है और लगभग 4% वन 'अत्यंत' वनाग्नि प्रवण है। वनाग्नि की घटनाएँ व्यापक स्तर पर संपत्ति, बुनियादी ढाँचे एवं पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचा सकने की क्षमता रखती हैं। यह वातावरण में हानिकारक प्रदूषकों को भी उन्मुक्त कर सकतीं हैं जो कि मानवीय स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।
वनाग्नि के पीछे निहित कारण:
- प्राकृतिक: तड़ित/आकाशीय बिजली वनाग्नि का सबसे प्रमुख कारण है जो वृक्षों में अग्नि का कारण बनती है। शुष्क वनस्पतियों के स्वतःस्फूर्त दहन और ज्वालामुखीय गतिविधियाँ भी वनाग्नि के प्रमुख प्राकृतिक कारण है।
- मानवजनित: खुले में किसी प्रकार कि लौ जलाने, सिगरेट अथवा बीड़ी या इलेक्ट्रिक चिंगारी या प्रज्वलन के किसी स्रोत के ज्वलनशील सामग्री के संपर्क में आने से एवं इसके प्रसार से भी वनाग्नि की घटना हो सकती है।
मुख्य भाग:
वनाग्नि के प्रभाव विनाशकारी हो सकते हैं, जिनके कारण:-
- संपत्ति का नुकसान: वनाग्नि घरों, व्यवसायों और अन्य संरचनाओं को नष्ट कर सकती है।
- अवसंरचनात्मक क्षति: वनाग्नि सड़कों, पुलों और अन्य बुनियादी ढाँचे को क्षति पहुँचा सकती है।
- पारिस्थितिकी तंत्र की क्षति: वनाग्नि वन्यजीवों के आवास को क्षति पहुँचाती है, जिससे वे शहरों की ओर पलायन करते हैं जिसके परिणामस्वरूप मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त कई वन्यजीव जो वनाग्नि से बचने में असमर्थ होते हैं, इसका ग्रास बन जाते हैं ।
- वायु प्रदूषण: वनाग्नि हानिकारक प्रदूषकों जैसे धुआँ और राख को वातावरण में उन्मुक्त कर सकती है। यह प्रदूषक, श्वास की समस्या उत्पन्न कर सकते हैं और कई स्थितियों में जानलेवा भी हो सकते हैं।
- मानव स्वास्थ्य जोखिम: धुएँ और जहरीली गैसों के उत्सर्जन से मनुष्यों में कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
वनाग्नि की घटनाओं को न्यूनतम करने के उपाय:
- खुले में किसी प्रकार के ज्वलन से बचाव : वनाग्नि के प्रभावों को न्यूनतम करने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि उन्हें घटित होने से पूर्व ही रोक लिया जाए । यह शुष्क दिनों में खुले में ज्वलन से बचाव, सिगरेट/बीड़ी का उचित निपटान और विद्युत लाइनों की निगरानी तथा उचित देखभाल के माध्यम से किया जा सकता है।
- यदि खुले में ज्वाला के माध्यम से अपशिष्ट निपटान आवश्यक हो तो यह योग्य पेशेवर कंपनियों द्वारा ही किया जाना चाहिये जो सभी सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करती हों।
- अग्निरोधकों का निर्माण: अग्निरोधक ऐसे क्षेत्र होते हैं जहाँ से वनस्पति को हटा दिया जाता है, जिससे एक प्रकार की खाई निर्मित हो जाती है जो वनाग्नि के प्रसार को धीमा कर सकती है या रोक भी सकती है।
- वनों की उचित निगरानी और प्रबंधन: वनों की उचित निगरानी और प्रबंधन वनाग्नि को शुरू होने या फैलने से रोकने में मदद कर सकता है।
- शुरुआती पहचान और त्वरित प्रतिक्रिया: प्रभावी शमन के लिये वनाग्नि का जल्द पता लगाना महत्त्वपूर्ण है।
- इस हेतु भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) वनाग्नि से प्रभावित क्षेत्रों का विश्लेषण करने और रोकथाम को बढ़ावा देने के लिये उपग्रह इमेजिंग तकनीक (जैसे MODIS) का उपयोग कर रहा है।
- ईंधन का उचित प्रबंधन: उचित प्रबंधन तकनीकों और उपकरणों के माध्यम से मृत वृक्षों, शुष्क वनस्पतियों और अन्य ज्वलनशील सामग्रियों के संचय को कम करना।
- वनों के निकटवर्ती क्षेत्रों में सुरक्षित अग्नि प्रथाओं को अपनाना: वनों के निकटवर्ती ऐसे क्षेत्रों जिनमें कारखाने, कोयले की खान, तेल भंडार, रासायनिक संयंत्र और घरेलू रसोई में आदि में आवश्यक रूप से सुरक्षित प्रथाओं को अपनाया जाना चाहिये। ।
- नियंत्रित दहन का अभ्यास करना: इसके अंतर्गत नियंत्रित वातावरण में छोटे स्तर पर दहन के क्रियाकलाप शामिल हैं।
- शिविरार्थियों के मध्य जागरूकता एवं प्रशिक्षण: आगंतुकों और शिविरार्थियों को भी वनाग्नि पर शिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे अवांछित स्थितियों के जोखिम को कम कर सकें।
निष्कर्ष:
वनाग्नि प्राकृतिक या मानवीय कारकों के कारण गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली एक पुनरावर्ती पर्यावरणीय समस्या है। इसके प्रभावों में जैव विविधता की क्षति, वायु प्रदूषण, मृदा का क्षरण तथा जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। रोकथाम के उपाय और प्रभावी अग्निशमन साथ ही वनों की कटाई और स्थायी वन प्रबंधन प्रथाएँ इसके प्रभावों के न्यूनीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनके दीर्घकालिक प्रभावों को न्यून करने के लिये जलवायु परिवर्तन को संबोधित करना भी महत्त्वपूर्ण है।