पर्यावरण संरक्षण की तुलना में आर्थिक विकास को अधिक प्राथमिकता देने से संबंधित नैतिक दुविधाएँ क्या हैं? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- पर्यावरण संरक्षण की तुलना में आर्थिक विकास को अधिक प्राथमिकता देने के महत्त्व को समझाते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- पर्यावरण की तुलना में विकास को प्राथमिकता देने से संबंधित नैतिक मुद्दों की व्याख्या कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
पर्यावरण संरक्षण की तुलना में आर्थिक विकास को अधिक प्राथमिकता देने से जटिल नैतिक दुविधा उत्पन्न होती है। आर्थिक विकास, समाज की वृद्धि और प्रगति के लिये आवश्यक है लेकिन अक्सर यह पर्यावरण की कीमत पर होता है। आर्थिक विकास के पर्यावरणीय परिणामों की उपेक्षा करने से पर्यावरण, लोगों और भावी पीढ़ियों पर इसके दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं।
मुख्य भाग:
- पर्यावरणीय क्षरण होना: पूरी तरह से आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने से अक्सर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, प्रदूषण, वनों की कटाई के साथ निवास स्थान का विनाश होता है।
- सतत् विकास पर प्रश्नचिन्ह लगना: पर्यावरण पर दीर्घकालिक प्रभाव पर विचार किये बिना आर्थिक विकास को प्राथमिकता देने से वर्तमान और भावी पीढ़ियों के बीच संसाधनों के अनुचित वितरण को बढ़ावा मिल सकता है। पर्यावरण की कीमत पर अल्पकालिक आर्थिक लाभ को प्राथमिकता देने से अंतर-पीढ़ीगत न्याय पर प्रश्नचिन्ह लगता है।
- पर्यावरणीय न्याय: पर्यावरणीय क्षरण से हाशिये पर रहने वाले समुदायों के साथ कमज़ोर आबादी अधिक प्रभावित होती है जो अक्सर प्रदूषण में वृद्धि और संसाधन की कमी जैसे नकारात्मक परिणामों का खामियाजा भुगतते हैं।
- दीर्घकालिक आर्थिक व्यवहार्यता: पर्यावरण संबंधी चिंताओं को अनदेखा करने से दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता कमज़ोर हो सकती है। पर्यावरण संरक्षण की उपेक्षा से संसाधनों की कमी, पारिस्थितिकी असंतुलन होने के साथ प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो सकती है, जिससे अंततः आर्थिक स्थिरता और विकास को खतरा हो सकता है।
निष्कर्ष:
पर्यावरण संरक्षण की तुलना में आर्थिक विकास को अधिक प्राथमिकता देने से कई नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न होती हैं जिन पर सावधानी से विचार करने की आवश्यकता है। सतत् विकास एवं सभी के लिये न्यायसंगत भविष्य सुनिश्चित करने के लिये पर्यावरण संरक्षण के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करना महत्त्वपूर्ण है। सरकारों और निगमों की जिम्मेदारी है कि वे पर्यावरण की रक्षा करने के साथ सतत् विकास को बढ़ावा दें जिससे वर्तमान और भावी पीढ़ियों को लाभ हो सके।