पूर्वोत्तर भारत में क्रमिक रूप से उत्पन्न होने वाले आंतरिक सुरक्षा खतरों हेतु उत्तरदायी कारकों पर चर्चा कीजिये? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- हाल के संदर्भ में पूर्वोत्तर भारत से संबंधित आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- इन चुनौतियों हेतु उत्तरदायी कारकों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
पूर्वोत्तर भारत (जिसमें आठ राज्य शामिल हैं) कई दशकों से आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस क्षेत्र में उग्रवाद, जातीय संघर्ष, आर्थिक पिछड़ापन और सीमा पार घुसपैठ सहित कई समस्याएँ बनी हुई हैं।
मणिपुर में कुकियों, नगाओं और मैतेई के बीच जातीय हिंसा की हाल की घटनाओं के कारण एक बार फिर से यह मुद्दा प्रकाश में आ गया है।
मुख्य भाग:
इस संदर्भ में पूर्वोत्तर भारत में आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों हेतु उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं:
1. ऐतिहासिक कारक:
- औपनिवेशीकरण, सीमा विवाद और जनसांख्यिकीय परिवर्तन जैसे ऐतिहासिक कारकों की जटिल परस्पर क्रिया ने इस क्षेत्र में आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में योगदान दिया है।
- यहाँ पर ब्रिटिशों द्वारा इनर लाइन परमिट (ILP) प्रणाली लागू करने से भी जातीय तनाव और संघर्ष हुए हैं।
2. जातीय विविधता:
- पूर्वोत्तर भारत विभिन्न जनजातीय समूहों के लगभग 40 मिलियन लोगों का आवास स्थल है। इन जनजातियों की अलग संस्कृति और भाषाएँ हैं।
- इस जातीय विविधता के कारण यहाँ अपने संबंधित समुदायों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले कई विद्रोही समूहों का गठन हुआ है। ये समूह राज्य के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में शामिल रहे हैं जिससे यहाँ हिंसा, विस्थापन और मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
- उदाहरण के लिये असम का ULFA और नागालैंड का NSCN पूर्वोत्तर क्षेत्र के कुछ सक्रिय विद्रोही समूहों में शामिल हैं।
3. सीमा संबंधी मुद्दे:
- पूर्वोत्तर भारत की सीमा चीन, बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार सहित कई देशों के साथ संलग्न है। खंडित सीमाओं ने इस क्षेत्र को सीमापार घुसपैठ तथा हथियारों, ड्रग्स एवं वर्जित वस्तुओं की तस्करी हेतु संवेदनशील बना दिया है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र, भौगोलिक रूप से स्वर्णिम त्रिभुज (म्यांमार, थाईलैंड, लाओस) के अफीम उत्पादक क्षेत्र के निकट स्थित है।
- पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद ने भी तनाव और संघर्ष को जन्म दिया है (खासकर चीन और बांग्लादेश के साथ)।
4. आर्थिक पिछड़ापन:
- पूर्वोत्तर भारत को भारत के आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में से एक माना जाता है। इस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय कम होना, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा होना और सीमित रोज़गार के अवसर जैसी समस्याएँ बनी हुई हैं।
- आर्थिक पिछड़ापन से बेरोज़गारी और गरीबी को जन्म मिला है, जिससे यह विद्रोही समूहों में शामिल होने के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
5. प्राकृतिक संसाधनों का अधिक दोहन होना:
- पूर्वोत्तर भारत तेल, गैस, कोयला और खनिजों सहित अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न है। इन संसाधनों के दोहन से पर्यावरण का क्षरण हुआ है और स्थानीय समुदायों का विस्थापन हुआ है।
- इस विस्थापन से स्थानीय समुदायों के बीच असंतोष पैदा हुआ है और विद्रोही समूहों के विकास के लिये अनुकूल माहौल विकसित हुआ है।
6. अलगाव होने के साथ तुलनात्मक अभावों का होना:
- नई दिल्ली से पूर्वोत्तर क्षेत्र की दूरी अधिक होने के साथ लोकसभा में इस क्षेत्र का सीमित प्रतिनिधित्व होने के कारण सत्ता में इनका प्रभाव सीमित रहता है।
- इससे प्रशासनिक क्षेत्र में वार्ता प्रक्रिया में गिरावट आने के कारण हिंसा के उपयोग को अधिक महत्त्व मिला है तथा उग्रवाद अधिक आकर्षक विकल्प बना गया है।
7. राज्य और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं की भूमिका:
- पूर्वोत्तर भारत का उग्रवाद 1950 के दशक के अंत में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान द्वारा समर्थित था; और 1960 के दशक की शुरुआत में नागा सैन्य कर्मियों के प्रशिक्षण और उन्हें हथियार देने के रूप में इसे समर्थन मिला।
- आगे चलकर चीन ने भी विद्रोहियों और माओवादियों को हथियार देने के माध्यम से इसको प्रेरित किया था।
आगे की राह:
- सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA) को क्रमिक रूप से उन क्षेत्रों से हटाया जाना चाहिये जहाँ स्थिति बेहतर है।
- नागरिक समाज द्वारा निरंतर प्रयास किया जाना: शांति वार्ता में प्रगति के बावजूद, विद्रोही संगठनों के साथ समन्वय के लिये नागरिक समाज द्वारा प्रयास जारी रखना चाहिये। इससे विद्रोही नेता इससे निकलने हेतु प्रोत्साहित होंगे तथा यह सभी हितधारकों के लिये अनुकूल होगा।
- इन राज्यों में विभिन्न जातीय समूहों के बीच संघर्ष को रोकने के लिये राज्यों के बीच सीमाओं का स्पष्ट सीमांकन होना चाहिये।
- उदाहरण के लिये असम-मेघालय और असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा समझौता।
- घुसपैठ, मनी लॉन्ड्रिंग, हथियारों की तस्करी से बचने के लिये सीमाओं पर सुरक्षा को मजबूत करना चाहिये।
इन मुद्दों को हल करने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जिसमें राजनीतिक संवाद, आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता शामिल है। उत्तर पूर्व क्षेत्र की शांति और सुरक्षा के लिये रक्षा, संवाद और विकास पर आधारित तीन आयामी रणनीति अपनाना महत्त्वपूर्ण है।