उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भक्ति आंदोलन का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भक्ति आंदोलन के प्रभावों की विवेचना कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भक्ति आंदोलन एक धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलन था। भक्ति की उत्पत्ति को वेदों में देखा जा सकता है लेकिन इसका वास्तविक विकास 7वीं ईस्वी के बाद हुआ था। इसकी शुरुआत दक्षिण भारत में शैव नयनारों और वैष्णव अलवारों द्वारा की गई थी, जिसका बाद में सभी क्षेत्रों में विस्तार हुआ था। इसका भारतीय समाज और संस्कृति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था।
मुख्य भाग:
भारतीय समाज और संस्कृति पर भक्ति आंदोलन का प्रभाव
- सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव:
- भक्ति आंदोलन ने जाति व्यवस्था को चुनौती दी और सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया।
- इसके तहत हिंदू धर्म की पारंपरिक कर्मकांड प्रथाओं के इतर भगवान की भक्ति के महत्त्व पर जोर दिया गया था।
- इसमें मध्यस्थ की आवश्यकता के बिना भगवान के साथ लोगों के प्रत्यक्ष जुड़ाव को प्रोत्साहित किया गया था।
- भक्ति संतों ने अपने संदेश को संप्रेषित करने के लिये स्थानीय भाषाओं का उपयोग किया, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं के प्रसार में मदद मिली थी।
- भक्ति आंदोलन ने जाति, लिंग और धार्मिक सीमाओं को तोड़ते हुए लोगों में अपनेपन की भावना विकसित की थी।
- राजनीतिक प्रभाव:
- भक्ति संतों ने शासक वर्ग की अन्यायपूर्ण प्रथाओं की आलोचना की थी, जिससे लोगों के मन में इनके प्रति प्रतिरोध की भावना विकसित हुई।
- भक्ति आंदोलन ने भक्ति संतों के विचारों को आकार देने में मदद की, जिन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं और साहित्य के विकास में योगदान दिया था।
- आर्थिक प्रभाव:
- भक्ति आंदोलन ने उन लोगों के लिये आजीविका का एक वैकल्पिक स्रोत प्रदान किया जो जीविकोपार्जन की पारंपरिक व्यवस्था के अनुकूल नहीं थे।
- भक्ति संत स्थानीय कला और शिल्प के संरक्षक थे, जिससे क्षेत्रीय कला और हस्तशिल्प को बढ़ावा देने में मदद मिली थी।
- धार्मिक प्रभाव:
- भक्ति आंदोलन से हिंदू धर्म के तहत नए संप्रदायों और उप-संप्रदायों का उदय हुआ, जिससे एक विविध और बहुलवादी धार्मिक संस्कृति का विकास हुआ था।
- इससे गुरु के विचार और गुरु-शिष्य परंपरा के पुनरुद्धार में मदद मिली थी।
- भक्ति संतों ने क्षेत्रीय धार्मिक प्रथाओं और अनुष्ठानों के विकास में योगदान दिया था।
निष्कर्ष:
भक्ति आंदोलन का भारतीय समाज और संस्कृति पर दूरगामी प्रभाव पड़ा था। इसने भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक परिदृश्य को आकार देने में मदद की थी। यह आंदोलन आज भी भारत और विश्व के लोगों को प्रेरित करता है।