हाल के वर्षों में भारत में उच्च मुद्रास्फीति दर का अनुभव किया गया है। भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के प्रमुख कारणों पर चर्चा करते हुए इसे नियंत्रित करने के लिये सरकार द्वारा किये गए उपायों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- हाल के वर्षों में हुई मुद्रास्फीति और उसके स्तरों का उल्लेख करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- मुद्रास्फीति को कम करने के सरकार के प्रयासों और मुद्रास्फीति पर उन प्रयासों के प्रभावों की चर्चा कीजिये।
- कुछ सुझाव देते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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उत्तर:
मुद्रास्फीति एक ऐसी आर्थिक घटना है जो समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य स्तर में सामान्य वृद्धि का कारण बनती है। भारत में हाल के वर्षों में उच्च मुद्रास्फीति दर्ज की गई है जहाँ उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति (Consumer Price Inflation -CPI) औसतन 6% से अधिक है। पिछले वर्ष यह 7.5% से भी अधिक थी।
भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के प्रमुख कारण:
- रूस-यूक्रेन तनाव: रूस और यूक्रेन जैसे दो प्रमुख व्यापार मार्गों के बाधित होने और रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों से वैश्विक आपूर्ति शृंखला गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। नतीजतन तेल की कीमतें सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गईं, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ गई। स्पिलओवर प्रभाव से भारत भी प्रभावित हुआ है।
- उच्च खाद्य मुद्रास्फीति: उच्च खाद्य मुद्रास्फीति (विशेष रूप से गेहूँ और मक्का जैसी अनाज फसलों की कीमतों में वृद्धि) से भारत में मुद्रास्फीति के स्तर में वृद्धि हुई है।
- कोर मुद्रास्फीति: एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2022 के अंत तक कोर मुद्रास्फीति दर 6.1% से बढ़कर 6.2% हो गई।
- फर्मों द्वारा उच्च उत्पादन लागत को उपभोक्ताओं पर भारित किया जाना: इस वजह से मुख्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति साल दर साल बढ़ती जा रही है, जबकि सेवा क्षेत्र में मुद्रास्फीति कम हो रही है।
महँगाई को नियंत्रित करने के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- RBI द्वारा रेपो दर में वृद्धि करना: RBI की मौद्रिक नीति समिति द्वारा समय-समय पर रेपो दरों में वृद्धि की जाती है।
- दलहन पर आयात शुल्क में कमी करना: भारत में दालों को अधिक किफायती बनाने के लिये सरकार ने दालों पर आयात शुल्क में कटौती की है या इसे समाप्त कर दिया है।
- सरकार ने किसानों को दलहन की फसल बोने के लिये प्रोत्साहित करने की दिशा में भी कदम उठाए हैं ताकि भारत में दालों का उत्पादन बढ़ सके।
- खाद्य तेल के आयात को ‘कर मुक्त’ बनाना :पिछले तीन वर्षों से लगातार खाद्य तेल के आयात को लगभग कर मुक्त कर दिया गया है ताकि खाद्य तेल की आपूर्ति आसान हो सके।
- पेट्रोल और डीजल के उत्पाद शुल्क में कटौती करना: पिछले वर्ष सरकार ने वस्तुओं और रसद की कीमतों में कमी लाने के लिये पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर उत्पाद शुल्क में कटौती करने की घोषणा की थी।
- चीनी के निर्यात को सीमित करना: पिछले वर्ष सरकार ने देश में पर्याप्त स्टॉक बनाए रखने और चीनी की अप्रत्याशित कीमतों से बचने तथा इथेनॉल उत्पादन बढ़ाकर कच्चे तेल पर निर्भरता कम करने के लिये चीनी के निर्यात को सीमित कर दिया है। यह सीमा अक्टूबर 2023 तक बढ़ा दी गई है।
- गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना: सरकार ने बढ़ती घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने के उपायों के तहत मई 2022 में तत्काल प्रभाव से गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
महँगाई पर काबू पाने में ये कदम कितने प्रभावी रहे हैं?
उपर्युक्त उपायों के परिणामस्वरूप, मुद्रास्फीति के स्तर में काफी कमी आई है:
- विनिर्मित वस्तुओं, ईंधन और बिजली की कीमतों में कमी के कारण थोक मूल्य मुद्रास्फीति जनवरी में लगभग 4.5 प्रतिशत तक गिरकर, 2 वर्षों के निम्न स्तर पर आ गई।
- खुदरा मुद्रास्फीति भी मार्च में लगभग 5.5 प्रतिशत तक गिरकर, 16 महीने के निचले स्तर पर आ गई क्योंकि इस दौरान खाद्य कीमतों में कमी देखी गई।
निष्कर्ष:
भारत में मुद्रास्फीति बढ़ती उत्पादन लागत और उपभोक्ता मांग सहित आंतरिक एवं बाह्य कारकों से प्रभावित होती है। सरकार द्वारा महंगाई को नियंत्रित करने के लिये किये गए उपाय कुछ हद तक सफल साबित हुए हैं। लेकिन संरचनात्मक सुधारों को लागू करने, कृषि विविधीकरण पर बल देने, जलवायु अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के रूप में इस दिशा में अभी भी बहुत से प्रयास किये जाने बाकी हैं।