भारत में जनजातीय समुदायों पर विकास परियोजनाओं और नीतियों के प्रभावों का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- जनजातीय समुदायों से संबंधित डेटा देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- जनजातीय समुदायों पर विकास परियोजनाओं के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अनुसार भारत की आबादी में जनजातीय लोगों की हिस्सेदारी 8.6% और कुल गरीबी में 46% की हिस्सेदारी है।
- भारत की विकास परियोजनाओं और नीतियों का दूरस्थ एवं पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय समुदायों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
जनजातीय समुदायों पर विकास परियोजनाओं और नीतियों का प्रभाव:
सकारात्मक प्रभाव:
- सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों जैसे कि वन अधिकार अधिनियम (FRA), पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (PESA) और जनजातीय उपयोजना का उद्देश्य जनजातीय समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और उनके अधिकारों की रक्षा करना है।
- FRA और PESA द्वारा जनजातीय लोगों के भूमि अधिकारों को कानूनी मान्यता मिलती है।
- जनजातीय उप-योजना दृष्टिकोण का आशय जनजातीय उप-योजनाओं के लिये उनकी जनसंख्या के अनुपात में योजना निधि का निर्धारण सुनिश्चित करना है।
- एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, जनजातीय समुदायों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने में सहायक हैं।
- PESA अधिनियम, आदिवासी समुदायों को अपने स्वयं के मामलों को नियंत्रित करने और स्थानीय स्वशासन को मज़बूत करने का अधिकार देता है।
नकारात्मक प्रभाव:
- बलपूर्वक विस्थापन होना:
- खनन, बाँध निर्माण और औद्योगीकरण जैसी विकास परियोजनाओं के लिये अक्सर अधिक भूमि की आवश्यकता होती है जिसके परिणामस्वरूप जनजातीय समुदायों का बलपूर्वक विस्थापन होता है।
- ओडिशा की पवित्र नियामगिरि पहाड़ियों में वेदांता समूह की खनन परियोजना पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी क्योंकि वहाँ रहने वाली जनजाति (डोंगरिया कोंध) ने इस संदर्भ में अपनी सहमति नहीं दी थी।
- आजीविका का नुकसान:
- विकास परियोजनाओं से अक्सर आदिवासी समुदायों की पारंपरिक आजीविका का नुकसान होता है। वर्जिनियस शाशा समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि अधिग्रहण और विस्थापन के कारण आदिवासियों को उनके पारंपरिक आवास से बाहर कर दिये जाने के कारण उनकी कृषि और वन-आधारित आजीविका प्रभावित हुई है।
- सरदार सरोवर बाँध का निर्माण इसका प्रमुख उदाहरण है। गुजरात में नर्मदा नदी पर बाँध निर्माण के परिणामस्वरूप 100,000 से अधिक लोगों का विस्थापन हुआ, जिनमें से अधिकांश आदिवासी समुदाय के थे। इस परियोजना के कारण उपजाऊ कृषि भूमि जलमग्न हो गई और लोगों की आजीविका का नुकसान हुआ था।
- सांस्कृतिक विरासत का नुकसान होना:
- विकास परियोजनाओं और अनुचित बाहरी हस्तक्षेप से आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक विरासत का भी नुकसान हो सकता है जो जवाहर लाल नेहरू द्वारा प्रचारित 'आदिवासी पंचशील' के विचार के विपरीत है।
- भूमि और जल अधिकारों की मान्यता का अभाव:
- आदिवासी समुदाय पीढ़ियों से अपने आसपास की भूमि और जल संसाधनों का उपयोग करते आ रहे हैं लेकिन विकास परियोजनाओं द्वारा अक्सर इनके इन अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है।
निष्कर्ष:
- विकास परियोजनाओं और नीतियों से भारत के जनजातीय समुदायों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव हुए हैं।
- इस संदर्भ में निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में जनजातीय समुदायों की भागीदारी और परामर्श सुनिश्चित करने के साथ समाज की मुख्यधारा में इनके समावेश और सशक्तिकरण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।