संसदीय समितियाँ कार्यपालिका पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आप इस तर्क से कहाँ तक सहमत हैं कि भारतीय संसदीय कार्यप्रणाली में संसदीय समितियों की भूमिका घटती जा रही है? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण::
- संसदीय समितियों का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- संसदीय कार्यप्रणाली में इनकी भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- डेटा के साथ इनकी घटती भूमिका के कारणों पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
संसदीय समितियाँ सांसदों का एक पैनल होती हैं जिन्हें सदन द्वारा नियुक्त या निर्वाचित किया जाता है या अध्यक्ष/सभापति द्वारा नामित किया जाता है।
यह समितियाँ अध्यक्ष/सभापति के निर्देशन में कार्य करती हैं और यह अपनी रिपोर्ट सदन या अध्यक्ष/सभापति को प्रस्तुत करती है। ये समितियाँ विधेयकों, बजट और नीतियों की जाँच करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और कार्यपालिका की जवाबदेहिता को सुनिश्चित करती हैं।
संसदीय समितियों की भूमिका
- सरकार पर नियंत्रण प्रदान करना:
- हालाँकि इन समितियों की सिफारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं होती हैं लेकिन उनकी रिपोर्टें उन परामर्शों का एक सार्वजनिक रिकॉर्ड बनाती हैं जो बहस योग्य प्रावधानों पर अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने के लिये सरकार पर दबाव डालती हैं।
- गुप्त होने के कारण इन समितियों की बैठकों में चर्चा अधिक समन्वयकारी होती है, जिसमें सांसद कम दबाव महसूस करते हैं।
- विधायी विशेषज्ञता प्रदान करना:
- अधिकांश सांसद चर्चा किये जा रहे विषयों के विषय विशेषज्ञ नहीं होते हैं। संसदीय समितियाँ सांसदों को विशेषज्ञता प्रदान करने के साथ उन्हें विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से सोचने का समय देती हैं।
- लघु-संसद के रूप में कार्य करना:
- ये समितियाँ लघु-संसद के रूप में कार्य करती हैं क्योंकि इनमें विभिन्न दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद होते हैं।
- विस्तृत जाँच के साधन के रूप में भूमिका निभाना:
- जब इन समितियों को विधेयक भेजे जाते हैं तो उनकी बारीकी से जाँच की जाती है और इसमें लोगों सहित विभिन्न बाहरी हितधारकों से इनपुट मांगे जाते हैं।
संसदीय समितियों की घटती भूमिका
- संसदीय समितियों के पास मामलों को न भेजा जाना: PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के आँकड़ों के अनुसार हाल के वर्षों में विभागों से संबंधित स्थायी समितियों (DRSCs) को भेजे जाने वाले विधेयकों की संख्या में कमी आई है।
- 17वीं लोकसभा के दौरान अब तक केवल 14 विधेयकों को इनके पास आगे की जाँच के लिये भेजा गया है।
- 14वीं लोकसभा में 60% और 15वीं लोकसभा में 71% के मुकाबले 16वीं लोकसभा में सिर्फ 25% विधेयक DRSCs को भेजे गए थे।
- संसद के महत्त्वपूर्ण अधिनियमों (जैसे कृषि विधेयक और अनुच्छेद 370 को रद्द करना) को किसी समिति के पास भेजे जाने के बजाय सरकार द्वारा अपने बहुमत का उपयोग करके पारित किया गया था।
- सांसदों की कम उपस्थिति: कई समितियों में बैठकों के लिये आवश्यक कोरम नहीं हो पाने के कारण विचार-विमर्श में देरी देखने को मिलती है।
- इससे इन समितियों की भावना कमजोर होने के साथ इनकी प्रभावशीलता में कमी आती है।
- बहुत सारे मंत्रालयों का एक ही समिति के दायरे में आना: इससे समिति के सदस्यों के लिये सभी विधेयकों और प्रस्तावों की पर्याप्त रूप से जाँच करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- कार्यकाल कम होना: एक वर्ष के लिये DRSCs के गठन होने से इनमें निरंतरता के अभाव के साथ जाँच प्रक्रिया प्रभावी नहीं हो पाती है।
- दलगत राजनीति: सांसद अक्सर कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराने के बजाय दलगत राजनीति के आधार पर कार्य करते हैं।
- सांसदों से उम्मीद की जाती है कि वे संसदीय समितियों के तहत रचनात्मक जाँच प्रणाली पर ध्यान दें लेकिन दलगत राजनीति प्रभावी होने से इन समितियों की प्रभावशीलता में गिरावट आती है।
संसदीय समितियों को मजबूत करने के उपाय:
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने सुझाव दिया कि संसदीय समितियों को अपना एजेंडा निर्धारित करने में अधिक स्वायत्तता होने के साथ उन्हें पर्याप्त संसाधन और अनुसंधान सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
- राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग (NCRWC) ने भी संसदीय समितियों को मजबूत करने के साथ यह सुनिश्चित करने की सिफारिश की है कि इनकी सिफारिशों का कार्यपालिका द्वारा पालन करने के साथ उन्हें लागू किया जाए।
- संसदीय समितियों में सभी दलों का अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व होने के साथ प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से उनकी कार्यवाहियों को जनता के लिये अधिक सुलभ बनाया जाना चाहिये।