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प्रश्न :
भारत में कृषि उत्पादों के उत्पादन, वितरण और विपणन के समक्ष प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा करते हुए बताइये कि कृषि क्षेत्र में सतत् और समावेशी विकास सुनिश्चित करने हेतु इन चुनौतियों का समाधान किस प्रकार से किया जा सकता है? (250 शब्द)
12 Apr, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में कृषि क्षेत्र से संबंधित कुछ डेटा को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- भारत में कृषि उत्पादों के उत्पादन, वितरण और विपणन की प्रमुख चुनौतियों और इन चुनौतियों के संभावित समाधानों पर चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत कृषि अर्थव्यवस्था वाला देश है यहाँ की 54% से अधिक भूमि को कृषि योग्य भूमि के रूप में वर्गीकृत किया गया है और कृषि उद्योग में श्रम बाज़ार का आधा हिस्सा शामिल है। कृषि क्षेत्र, भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे महत्त्वपूर्ण उद्योगों में से एक है।
कृषि क्षेत्र से 151 मिलियन से अधिक लोगों को आजीविका प्राप्त होती है। भारत की लगभग 60% आबादी इसमें संलग्न है जिसका भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 18% का योगदान है। हालाँकि भारत में कृषि उत्पादों के उत्पादन, वितरण और विपणन के समक्ष विभिन्न चुनौतियाँ हैं।
मुख्य भाग:
भारत में कृषि उत्पादों के उत्पादन, वितरण और विपणन से संबंधित चुनौतियाँ:
उत्पादन से संबंधित चुनौतियाँ:
- सिंचाई के लिये मानसून पर निर्भरता:
- भारत की कृषि काफी हद तक मानसून की वर्षा पर निर्भर होने के कारण अनियमित वर्षा के पैटर्न और सूखे के कारण खराब हो जाती है, जिससे कृषि उत्पादकता में असंतुलन हो जाता है।
- क्रेडिट और प्रौद्योगिकी तक अपर्याप्त पहुँच:
- कई किसान औपचारिक वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं।
- इसके अतिरिक्त इनका आधुनिक तकनीकों जैसे सिंचाई प्रणाली, उच्च उपज देने वाले बीज और आधुनिक कृषि मशीनरी तक पहुँच का अभाव बना रहता है।
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा:
- भंडारण सुविधाओं, परिवहन नेटवर्क और बाज़ार लिंकेज जैसे पर्याप्त बुनियादी ढाँचे के अभाव के कारण अक्सर फसल कटाई के बाद नुकसान होने के साथ किसानों के मुनाफे में कमी आती है।
- प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित उपयोग:
- भारत की कृषि, जल और भूमि जैसे प्राकृतिक संसाधनों के अकुशल उपयोग से त्रस्त है। इससे जल की कमी एवं मृदा क्षरण होने के साथ कृषि उत्पादकता में कमी आती है।
वितरण से संबंधित चुनौतियाँ:
- भारत में परिवहन अवसंरचना अपर्याप्त है:
- ग्रामीण क्षेत्रों को शहरी केंद्रों से जोड़ने वाली सड़कों और राजमार्गों का सही रखरखाव न होने के साथ नए परिवहन मार्गों के विकास में निवेश की कमी बनी रहती है।
- उचित भंडारण और प्रशीतन सुविधाओं का अभाव:
- उचित भंडारण और प्रशीतन सुविधाओं का अभाव भी एक चुनौती है।
- भारत के कई हिस्सों में उच्च तापमान के कारण फल और सब्जियों जैसे जल्दी खराब होने वाले उत्पाद अक्सर खराब हो जाते हैं।
- बिचौलियों द्वारा किसानों का शोषण किया जाना:
- बिचौलिये अक्सर किसानों की उपज को कम कीमत पर खरीदकर उनका शोषण करते हैं, जिससे यह समस्या और भी बढ़ जाती है।
विपणन से संबंधित चुनौतियाँ:
- अपर्याप्त विपणन शृंखला:
- कृषि उत्पादों के वितरण के लिये संगठित बाज़ारों और बुनियादी ढाँचे की कमी बनी रहती है।
- अपर्याप्त मूल्य मिलना:
- किसान अक्सर बाज़ार में प्रचलित कीमतों से अनजान होते हैं और बिचौलिये किसानों को कम कीमत देकर इसका फायदा उठाते हैं।
- जानकारी का अभाव होना:
- किसानों के पास अक्सर बाज़ार के रुझान, मूल्य निर्धारण और उपभोक्ता वरीयताओं के बारे में जानकारी की कमी होती है। इससे क्या उत्पादन करना है और उत्पादों को कब बेचना है, इस बारे में तार्किक निर्णय लेना इनके लिये मुश्किल हो जाता है।
- इन समस्याओं के समाधान के लिये आवश्यक कदम:
- सिंचाई से संबंधित बुनियादी ढाँचे में सुधार करना:
- सरकार को सिंचाई से संबंधित बुनियादी ढाँचे में सुधार करने, प्रौद्योगिकी तक पहुँच प्रदान करने और स्थायी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिये निवेश करने की आवश्यकता है। फसल खराब होने से बचाने के लिये सरकार, किसानों को बेहतर ऋण सुविधाएँ और बीमा पॉलिसी भी प्रदान कर सकती है।
- परिवहन अवसंरचना में निवेश करना:
- सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन से संबंधित बुनियादी ढाँचे और भंडारण सुविधाओं में निवेश करना चाहिये। इसके अतिरिक्त सरकार निजी क्षेत्र को कृषि-रसद और कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है।
- अधिक कुशल विपणन प्रणाली विकसित करना:
- सरकार को अधिक कुशल विपणन प्रणाली विकसित करने के साथ मूल्य निर्धारण तंत्र में पारदर्शिता बढ़ानी चाहिये। किसानों को तार्किक निर्णय लेने में सक्षम बनाने के लिये बाज़ार के रुझान, उपभोक्ता वरीयताओं और मूल्य निर्धारण के संदर्भ में जानकारी को सुलभ बनाना चाहिये।
निष्कर्ष:
- अंत में कृषि क्षेत्र में सतत और समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिये, भारत सरकार को बुनियादी ढाँचे में निवेश करने, किसानों की ऋण और प्रौद्योगिकी तक पहुँच सुनिश्चित करने, स्थायी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने और अधिक कुशल विपणन प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है।
- इन चुनौतियों का समाधान करके भारत अपने कृषि क्षेत्र की क्षमता का दोहन कर सकता है।
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