लोकसभा की प्रभावी कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने में लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका और इसके उत्तरदायित्व का विश्लेषण कीजिये। अपने कर्तव्यों के निर्वहन के क्रम में अध्यक्ष की निष्पक्षता और पारदर्शिता को मज़बूत करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- लोकसभा अध्यक्ष के बारे में संक्षिप्त परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका और उत्तरदायित्वों की विवेचना कीजिये।
- अध्यक्ष की निष्पक्षता और स्वायत्तता को मज़बूत करने के उपायों पर चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 93 से लेकर अनुच्छेद 97 तक लोकसभा अध्यक्ष से संबंधित प्रावधान हैं। लोकसभा अध्यक्ष भारतीय संसद के निम्न सदन का पीठासीन अधिकारी होता है।
मुख्य भाग:
लोकसभा अध्यक्ष अपनी शक्तियों और कर्तव्यों को तीन स्रोतों से प्राप्त करता है अर्थात् भारत का संविधान, लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन संबंधी नियम तथा संसदीय अभिसमय।
लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका और उत्तरदायित्व:
- प्राथमिक उत्तरदायित्व:
- यह सदन के संचालन और इसकी कार्यवाही को विनियमित करने के लिये सदन में व्यवस्था और मर्यादा बनाए रखता है।
- यह इसकी प्राथमिक जिम्मेदारी होती है और इस संबंध में अंतिम शक्ति भी इसी के पास होती है।
- अर्ध-न्यायिक भूमिका:
- विशेषाधिकार के मामलों पर निर्णय लेना: अध्यक्ष के पास सदन और उसके सदस्यों के विशेषाधिकार के उल्लंघन से संबंधित मामलों पर निर्णय लेने की शक्ति होती है।
- यह सदन में जरूरी दस्तावेजों की मांग कर सकता है और यहाँ तक कि सदन की अवमानना के लिये व्यक्तियों को कारावास की सजा का आदेश भी दे सकता है।
- संसदीय नियमों की व्याख्या करना: अध्यक्ष को संसदीय प्रक्रियाओं और नियमों की व्याख्या करने का अंतिम अधिकार होता है। यह सदस्यों द्वारा उठाए गए प्रश्नों के संबंध में प्रक्रिया निर्धारण के साथ प्रश्नों, प्रस्तावों और संशोधनों की स्वीकार्यता पर निर्णय ले सकता है।
- सदस्यों की अयोग्यता: अध्यक्ष के पास दलबदल या संसदीय प्रक्रियाओं के उल्लंघन के आधार पर सदन के किसी सदस्य को अयोग्य घोषित करने की शक्ति होती है।
- कार्यकारी भूमिका:
- सचिवालय पर प्रशासनिक नियंत्रण: अध्यक्ष का लोकसभा सचिवालय पर प्रशासनिक नियंत्रण होता है जो अनुसंधान, प्रलेखन और अन्य संबंधित सेवाओं के मामले में सदन को सहायता प्रदान करने के लिये जिम्मेदार होता है।
- संसद भवन की संपदा का प्रबंधन: अध्यक्ष के पास संसद भवन की संपदा के प्रबंधन की भी जिम्मेदारी होती है, जिसमें भवनों और बुनियादी ढाँचे का रखरखाव और परिसर की सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल है।
- अधिकारियों की नियुक्ति: अध्यक्ष के पास सदन में कुछ अधिकारियों को नियुक्त करने की शक्ति होती है जैसे महासचिव, संयुक्त सचिव और उप सचिव।
- ये नियुक्तियाँ सरकार के परामर्श से की जाती हैं।
- सदन का प्रतिनिधित्व करना: अध्यक्ष, घरेलू और विदेशी दोनों संस्थानों के साथ अपनी बैठक में सदन का प्रतिनिधित्व करने के लिये भी जिम्मेदार होता है।
- वह सदन की ओर से प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व कर सकता है और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और बैठकों में भाग ले सकता है।
- विधायी भूमिका:
- विधायी प्रक्रिया में भूमिका: अध्यक्ष, विधायी प्रक्रिया के तहत विधेयकों को मतदान के लिये रखकर और मतदान के परिणामों की घोषणा करके महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- मतों की बराबरी की स्थिति में यह निर्णायक मत का प्रयोग कर सकता है।
- विधेयकों का प्रमाणन: अध्यक्ष के पास किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करने की शक्ति होती है। एक बार प्रमाणित हो जाने के बाद ऐसा विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है, न कि राज्यसभा में।
- समितियाँ: अध्यक्ष के पास समितियों का गठन करने की शक्ति होती है, जैसे कि कार्य मंत्रणा समिति, नियम समिति और गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों और संकल्पों संबंधी समिति।
- ये समितियाँ सदन के संचालन के साथ नियमों तथा प्रक्रियाओं को तैयार करने में अध्यक्ष की सहायता करने के लिये जिम्मेदार होती हैं।
- विवेकाधीन शक्ति: अध्यक्ष के पास कुछ विवेकाधीन शक्तियाँ भी होती हैं जैसे किसी सदस्य को निर्धारित समय सीमा से परे बोलने की अनुमति देना, सदन के कार्य को संक्षिप्त अवधि के लिये निलंबित करना और किसी विशेष मुद्दे पर बोलने वाले सदस्यों को चुनना।
अध्यक्ष की पारदर्शिता और स्वायत्तता को मज़बूत करने के उपाय:
- वैश्विक मानदंडों को अपनाना: जैसे ब्रिटेन में अध्यक्ष, सत्तासीन दल का सदस्य नहीं होता है।
- आचार संहिता: अध्यक्ष को एक ऐसी आचार संहिता का पालन करना चाहिये जो निष्पक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेहिता के सिद्धांतों को निर्धारित करती हो।
- आचार संहिता को सभी राजनीतिक दलों के परामर्श से विकसित किया जाना चाहिये और इसे एक स्वतंत्र निकाय द्वारा लागू किया जाना चाहिये।
- प्रशिक्षण और विकास: अध्यक्ष के ज्ञान और कौशल को बढ़ाने के लिये नियमित प्रशिक्षण और विकास के अवसर प्रदान किये जाने चाहिये।
- इसमें संसदीय प्रक्रियाओं, नेतृत्त्व, संघर्ष समाधान और संचार कौशल पर प्रशिक्षण शामिल होना चाहिये।
- संसदीय समितियों को मज़बूत बनाना: अध्यक्ष के निर्णयों और कार्यों की स्वतंत्र निगरानी हेतु संसदीय समितियों की भूमिका को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- ऐसा अध्यक्ष के निर्णयों की जाँच करने और जहाँ आवश्यक हो वहाँ सुधारात्मक कार्रवाई की सिफारिश करने के लिये समितियों को सशक्त बनाकर किया जा सकता है।
- सचिवालय को मज़बूत करना: सचिवालय को पर्याप्त संसाधन, स्टाफ और प्रशिक्षण प्रदान करके अध्यक्ष के कर्तव्यों के निर्वहन में सहायता प्रदान करने के लिये मज़बूत किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
- अध्यक्ष, संसदीय कार्यवाही को आकार देने और इसे निर्देशित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यह सुनिश्चित करता है कि महत्त्वपूर्ण कानून पर बहस होने के साथ यह पारित हो।
- लोकसभा अध्यक्ष भारतीय संसदीय प्रणाली के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यह देश के लोकतंत्र के सुचारू संचालन का अभिन्न अंग है।