हिमालयी राज्यों में भू-धँसाव और भूस्खलन की हालिया घटनाओं के संदर्भ में बताइये कि ऐसी घटनाओं के घटित होने में विकासात्मक गतिविधियों की क्या भूमिका है? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भूस्खलन और भू-धँसाव का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भूस्खलन की घटना में विकासात्मक गतिविधियों की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- भूस्खलन के लिये उत्तरदायी अन्य कारणों पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भूस्खलन का अभिप्राय चट्टान के ढेर या मलबे का ढलान से नीचे की ओर विस्थापित होना है जबकि भूमि अवतलन का तात्पर्य पृथ्वी की सतह का धँसाव होना है।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा प्रकाशित 'लैंडस्लाइड एटलस ऑफ इंडिया' के अनुसार, हिमालयी क्षेत्र में भारत की 66% भूस्खलन घटनाएँ होती हैं। उत्तराखंड में जोशीमठ का अवतलन होना, भू-धँसाव की हाल की प्रमुख घटना है।
मुख्य भाग:
भूस्खलन और भू-धँसाव में विकासात्मक गतिविधियों की भूमिका:
- शहरीकरण:
- हिमालयी क्षेत्र की विकासात्मक गतिविधियों से भूमि अवतलन और भूस्खलन को बढ़ावा मिल सकता है।
- उदाहरण के लिये गगनचुंबी इमारतों के निर्माण से, मृदा धँसाव हो सकता है।
- जोशीमठ के भूमि धँसाव में अन्य कारकों के साथ-साथ तेजी से हो रहा शहरीकरण एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा है।
- जलवायु परिवर्तन:
- मानवजनित गतिविधियों से होने वाला जलवायु परिवर्तन भी हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन और भूमि धँसाव की घटना का प्रमुख कारक है।
- पिघलते ग्लेशियर, अनियमित वर्षा प्रतिरूप और बढ़ते तापमान से मृदा अस्थिर हो सकती है जिससे भूस्खलन और भूमि धँसाव का जोखिम बढ़ सकता है।
- भूमि का अनुचित उपयोग:
- अनुचित भूमि उपयोग जैसे कि अनियमित विनिर्माण से भूस्खलन और भूमि धँसाव को बढ़ावा मिल सकता है।
- उदाहरण के लिये पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र में अनियमित विनिर्माण और अतिक्रमण को केदारनाथ आपदा के प्रमुख कारकों में से एक के रूप में पहचाना गया है।
- खनन:
- खनन गतिविधियाँ से मृदा संरचना कमजोर हो सकती है जिससे भूमि धँसाव और भूस्खलन को बढ़ावा मिल सकता है।
- निर्वनीकरण:
- विकासात्मक गतिविधियों जैसे बाँधों, सड़कों और इमारतों के निर्माण हेतु वनों की कटाई करने के कारण मृदा अस्थिर होने से भूस्खलन के जोखिम में वृद्धि हो सकती है।
- उदाहरण के लिये उत्तराखंड में श्रीनगर हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट के निर्माण में व्यापक स्तर पर वनों की कटाई की गई थी, जो इस राज्य में वर्ष 2013 में आई बाढ़ में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों में से एक था।
अन्य कारण:
- भारी वर्षा, बर्फबारी और ज्वालामुखी विस्फोट आदि जैसे प्राकृतिक कारणों से भी भूस्खलन हो सकता है।
- भूस्खलन के मलबे वाले पुराने क्षेत्र भूमि धँसाव हेतु अधिक प्रवण होते हैं। जोशीमठ में होने वाले भूमि धँसाव के संदर्भ में यह प्रमुख कारकों में से एक था।
निष्कर्ष:
- सतत विकास प्रथाओं को अपनाने के साथ यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को कम करने वाली पर्यावरणीय अनुकूल विकासात्मक गतिविधियों पर बल दिया जाए। इसमें वनीकरण, खनन गतिविधियों का उचित नियमन और पर्यावरण अनुकूल शहरी नियोजन जैसी प्रथाओं को बढ़ावा देने जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली एवं आपदा पूर्व तैयारी योजना पर बल देने के साथ समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन पहलों को लागू किया जाना चाहिये।