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प्रश्न :
आज़ादी का लक्ष्य पूरे देश की भागीदारी के बिना संभव नहीं था। इस संदर्भ में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के योगदान को उजागर कीजिये।
24 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- स्वतंत्रता आंदोलन में पूरे भारत के योगदान को समझाएँ
- आज़ादी के संघर्ष में उत्तर-पूर्वी राज्यों के योगदान को बताएँ
- निष्कर्ष
भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ और स्वतंत्रता के इस संघर्ष में देश के हर प्रांत और राज्य के लोगों ने भागीदारी की एवं समग्र रूप से अपना योगदान दिया। इस प्रक्रिया में उत्तर-पूर्वी राज्यों ने भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार सहयोग दिया। ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह की शुरुआत करने में उत्तर-पूर्व ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने अंततः अंग्रेज़ों को हमारी मातृभूमि छोड़ने के लिये बाध्य किया।
इस क्षेत्र के कुछ प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी निम्नलिखित हैं:
- यू टिरोट सिंह- वर्तमान मेघालय के इस सेनानी ने जनजातियों एवं समुदायों की एकता के लिये प्रयास किया तथा 3 वर्षों तक ब्रिटिश सत्ता से संघर्ष किया। बाद में उन्हें ढाका में कैद कर लिया गया जहाँ उनकी मृत्यु हो गई।
- रानी गाइडिनलियू- स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण नेतृत्वकर्त्ता थीं। उन्होंने अंग्रेज़ों की दमनकारी नीतियों का खुलकर विरोध किया और इसके परिणामस्वरूप ‘जेलियागांग’ लोगों ने कर देने से मना कर दिया। उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में अंग्रेज़ों के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया; 16 वर्ष की उम्र (1932 ई.) में उन्हें जेल में डाल दिया गया।
- कनक लता बरुआ- ये असमी स्वतंत्रता सेनानी थीं तथा ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन से संबद्ध थीं। 1942 के आंदोलन में जब वह शान से राष्ट्रीय झंडा थामे हुई थीं तो अंग्रेज़ों ने उन्हें गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया।
उपरोक्त सेनानियों के अलावा उत्तर-पूर्व के कई अन्य लोगों ने भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इनमें से कुछ के नाम हैं: बीर टिकेन्द्र जीत सिंह, कुशल कुँवर, गोम्बधन कुँवर एवं पियाली फूकन।
इस तरह, इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में उत्तर-पूर्व के स्वतंत्रता सेनानियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
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