भारतीय संविधान के ऐतिहासिक आधार को बताते हुए स्पष्ट कीजिये कि उन्होंने इसके विकास को किस प्रकार प्रभावित किया था? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय संविधान के ऐतिहासिक आधारों का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- भारतीय संविधान के विकास पर इनके प्रभावों की विवेचना कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
- विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को वर्ष 1947 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। वर्ष 1950 में देश के शासन की रूपरेखा के निर्धारण हेतु भारतीय संविधान लागू हुआ था। भारतीय संविधान भारतीय राजनीतिक और सामाजिक विचारों की समृद्ध विरासत पर आधारित है तथा यह देश के ऐतिहासिक अनुभवों को दर्शाता है।
मुख्य भाग:
- भारतीय संविधान के ऐतिहासिक आधार:
- भारतीय संविधान के ऐतिहासिक आधारों को स्वदेशी परंपराओं, औपनिवेशिक अनुभवों और पश्चिमी राजनीतिक विचारों सहित विभिन्न स्रोतों में देखा जा सकता है।
- स्वदेशी परंपराएँ:
- संविधान, भारत की प्राचीन और मध्ययुगीन राजनीतिक और सामाजिक परंपराओं पर आधारित है। वेदों, उपनिषदों और धर्मशास्त्रों जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों से शासन, अधिकारों और कर्तव्यों की प्रकृति के बारे में अंतर्दृष्टि प्राप्त हुई है।
- अहिंसा, सहिष्णुता और समानता से संबंधित बौद्ध और जैन शिक्षाओं ने संविधान के निर्माण को प्रभावित किया है।
- इसी तरह से मध्यकालीन भक्ति आंदोलन में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आध्यात्मिक समानता पर जोर देने के गुण संविधान में भी परिलक्षित होते हैं।
- औपनिवेशिक अनुभव:
- भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का संविधान के निर्माण पर गहरा प्रभाव पड़ा है। औपनिवेशिक काल के दौरान शुरू हुए भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के साथ अन्य राजनीतिक आंदोलनों ने स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संवैधानिकता के पश्चिमी विचारों पर बल दिया था।
- मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार,1919 और भारत सरकार अधिनियम,1935 ने संविधान के अंतिम प्रारूप हेतु आधार तैयार किया था।
- पश्चिमी राजनीतिक विचार:
- संविधान में पश्चिमी राजनीतिक विचारों (विशेष रूप से उदार लोकतंत्र और शक्तियों के पृथक्करण के विचारों) की झलक देखने को मिलती है।
- भारतीय संविधान के निर्माता अमेरिकी और फ्रांसीसी संविधानों और ब्रिटिश संसदीय प्रणाली से प्रेरित थे।
- संविधान में सामाजिक और आर्थिक न्याय के विचार और अहिंसा पर जोर देने जैसे समाजवादी और गांधीवादी विचारों के तत्व भी शामिल किये गए हैं।
- भारतीय संविधान के विकास पर प्रभाव:
- भारतीय संविधान के ऐतिहासिक आधारों का इसके प्रारंभिक प्रारूप से लेकर बाद के संशोधनों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
- संविधान का प्रारूप:
- संविधान सभा (जिसे संविधान का मसौदा तैयार करने का कार्य सौंपा गया था) भारत के विविध ऐतिहासिक और सामाजिक मूल्यों से गहराई से प्रभावित थी।
- विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों से संबंधित सदन के सदस्यों ने अपने दृष्टिकोण और परंपराओं को संविधान सभा के समक्ष रखा था।
- संविधान का मसौदा तैयार होने की प्रक्रिया के दौरान होने वाली बहस और चर्चाओं में भारत की स्वदेशी परंपराओं, औपनिवेशिक अनुभवों और पश्चिमी राजनीतिक विचारों की झलक देखी गयी।
- मौलिक अधिकारों का समावेश:
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित संविधान के मौलिक अधिकार भारत की प्राचीन और मध्ययुगीन परंपराओं को दर्शाते हैं।
- विधि के समक्ष समानता, जीवन का अधिकार और स्वतंत्रता, भारत के धर्मशास्त्रों और आध्यात्मिक समानता पर बल देने वाले भक्ति आंदोलन पर आधारित है।
- धर्म, संस्कृति और शैक्षिक अधिकारों की स्वतंत्रता के अधिकार, भारत के विविध सामाजिक ताने-बाने को दर्शाते हैं।
- संविधान में संशोधन:
- संशोधनों के माध्यम से भारतीय संविधान का विकास देश के बदलते राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को दर्शाता है।
- गांधीवादी और समाजवादी विचारों से प्रेरित संविधान की प्रस्तावना में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को शामिल करना एक महत्त्वपूर्ण संशोधन था जो भारत की आजादी के बाद की आकांक्षाओं को दर्शाता है।
- इसी तरह से वर्ष 1992 के 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों ने स्थानीय शासन को सशक्त बनाने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया।
- भारतीय संविधान के विकास को प्रभावित करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के कुछ ऐतिहासिक निर्णयों में शामिल हैं:
- केशवानंद भारती केस (1973): इसके द्वारा संविधान की मूल संरचना के सिद्धांत को स्थापित किया गया था जिसका अर्थ है कि संविधान की कुछ मुख्य विशेषताओं में संशोधन नहीं किया जा सकता है।
- मिनर्वा मिल्स केस (1980): इसके द्वारा न्यायिक समीक्षा के सिद्धांत को बरकरार रखने के साथ 42वें संशोधन के कुछ प्रावधानों को रद्द किया गया था।
निष्कर्ष:
भारतीय संविधान के ऐतिहासिक आधार भारत के विविध सामाजिक और राजनीतिक अनुभवों को दर्शाते हैं। संविधान भारत की स्वदेशी परंपराओं, औपनिवेशिक अनुभवों और पश्चिमी राजनीतिक विचारों पर आधारित है जो बदलती आकांक्षाओं और चुनौतियों के आलोक में संशोधनों के माध्यम से विकसित हुआ है। संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जिसमें भारत का लोकतांत्रिक और बहुलवादी लोकाचार प्रदर्शित होता है।