भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों के विकास और वैश्विक नृत्य के रूप में उनकी स्थिति की व्याख्या कीजिये। समय के साथ इनके विकसित होने तथा वर्तमान में मौजूद इनके विभिन्न प्रकारों की चर्चा कीजिये? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय नृत्य शैली का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- विभिन्न भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों के विकास पर चर्चा कीजिये।
- वैश्विक नृत्य रूप के रूप में भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों के विकास और स्थिति पर चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- भारत को इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिये जाना जाता है तथा भारतीय शास्त्रीय नृत्य इसके अभिन्न अंग हैं। भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूप हजारों वर्षों में विकसित हुए हैं तथा यह भारतीय संस्कृति, पौराणिक कथाओं और धार्मिक परंपराओं से गहराई से संबंधित हैं।
- ये नृत्य रूप न केवल भारत में लोकप्रिय हैं बल्कि इन्होंने पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर भी मान्यता प्राप्त की है।
मुख्य भाग:
- भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों का विकास:
- भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों की शुरुआत को प्राचीन काल में 200 ईसा पूर्व से देखा जा सकता है। इनका आयोजन मंदिरों और महलों में होता था तथा इन्हें पूजा का रूप माना जाता था। समय के साथ ये नृत्य विकसित होने के साथ बौद्ध धर्म, जैन धर्म और इस्लामी परंपराओं सहित विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं से प्रभावित हुए थे।
- भारत में आठ शास्त्रीय नृत्य रूप हैं जिन्हें भारत में संगीत नाटक अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त है।
- इनमें से प्रत्येक नृत्य रूप की अनूठी शैली, इतिहास और सांस्कृतिक महत्त्व है।
- भरतनाट्यम:
- भरतनाट्यम भारत में सबसे लोकप्रिय शास्त्रीय नृत्य रूपों में से एक है। इसका विकास तमिलनाडु के मंदिरों में हुआ और इसका आयोजन 2,000 से अधिक वर्षों से किया जा रहा है।
- भरतनाट्यम को हाथ की गतियों, चेहरे के भाव और शरीर की आकर्षक गतिविधियों के लिये जाना जाता है।
- इसे अक्सर एकल नृत्य के रूप में किया जाता है।
- कथकली:
- कथकली केरल का एक पारंपरिक नृत्य है जिसकी उत्पत्ति 17वीं शताब्दी में हुई थी।
- इसे विस्तृत श्रृंगार, वेशभूषा और चेहरे के भावों के लिये जाना जाता है। कथकली के दौरान हिंदू पौराणिक कथाओं का प्रदर्शन होता है और इसे पुरुष नर्तकों द्वारा किया जाता है।
- कथक:
- कथक उत्तरी भारत का एक शास्त्रीय नृत्य रूप है जिसकी उत्पत्ति मुगल काल में हुई थी। इसे पैरों की तेज़ गतियों, घुमाव तथा उत्साही गतियों के लिये जाना जाता है।
- कथक में भारतीय पौराणिक कथाओं का प्रदर्शन होता है।
- कुचिपुड़ी:
- कुचिपुड़ी आंध्र प्रदेश का एक शास्त्रीय नृत्य रूप है जिसकी उत्पत्ति 17वीं शताब्दी में हुई थी।
- इसे पैरों की जटिल गतिविधियों और चेहरे के भावों के लिये जाना जाता है।
- इसमें हिंदू पौराणिक कथाओं का प्रदर्शन होता है और अक्सर इसे एकल नृत्य के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
- मणिपुरी:
- यह मणिपुर का एक शास्त्रीय नृत्य रूप है जिसकी उत्पत्ति 18वीं शताब्दी में हुई थी।
- इसे निर्दिष्ट लयात्मक भंगिमाओं और शरीर की गतिविधियों के लिये जाना जाता है।
- मोहिनीअट्टम:
- मोहिनीअट्टम केरल का एक शास्त्रीय नृत्य है जिसकी उत्पत्ति 16वीं शताब्दी में हुई थी।
- इसे विशिष्ट लयात्मक भंगिमाओं और शरीर की विशेष गतियों के लिये जाना जाता है।
- इसमें हिंदू पौराणिक कथाओं का प्रदर्शन होता है जिसे अक्सर महिला नर्तकियों द्वारा किया जाता है।
- ओडिसी:
- यह ओडिशा का एक शास्त्रीय नृत्य रूप है जिसकी उत्पत्ति दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में हुई थी।
- इसे विशिष्ट गतिविधियों, पैरों के जटिल संचलन और सुंदर मुद्राओं के लिये जाना जाता है।
- सत्रिया:
- सत्रिया असम का एक शास्त्रीय नृत्य रूप है जिसकी उत्पत्ति 15वीं शताब्दी में हुई थी।
- इसे विशिष्ट गतिविधियों, पैरों के जटिल संचलन और सुंदर मुद्राओं के लिये जाना जाता है।
- वैश्विक नृत्य के रूप में भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों का विकास और इनकी स्थिति:
- सांस्कृतिक परंपराओं, सामाजिक परिवर्तनों और वैश्वीकरण जैसे विभिन्न कारकों से भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूप समय के साथ विकसित हुए हैं। औपनिवेशिक युग में इन नृत्य रूपों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होने के बावजूद इनका आयोजन और प्रचार भारतीय नृत्य कलाकारों द्वारा किया गया।
- स्वतंत्रता के बाद विश्व स्तर पर इन नृत्य रूपों को मानकीकृत करने एवं लोकप्रिय बनाने के लिये कई संस्थानों और अकादमियों की स्थापना की गई थी। इसके साथ ही भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों को वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई और अब कई देशों में इनका प्रदर्शन और प्रचलन देखने को मिलता है।
- गैर-भारतीय नर्तकियों द्वारा भी इन नृत्य रूपों का प्रदर्शन होता है जिससे इनकी नवीन शैलियों का उदय हुआ है।
निष्कर्ष:
भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों का समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक महत्त्व है। समय के साथ विकसित यह नृत्य विभिन्न कारकों से प्रभावित हुए हैं। इन नृत्य रूपों को वैश्विक मान्यता प्राप्त हुई है और आज यह कई देशों में लोकप्रिय हैं। भारत की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने और विश्व स्तर पर सांस्कृतिक विविधता और समझ को बढ़ावा देने के लिये इन नृत्य रूपों का संरक्षण और प्रचार किया जाना आवश्यक है।