पर्यावरण से संबंधित नीति-निर्माण में नैतिक दृष्टिकोण को किस प्रकार शामिल किया जा सकता है? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- पर्यावरण से संबंधित नीति निर्माण के बारे में संक्षिप्त परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- पर्यावरण से संबंधित नीति-निर्माण में शामिल किये जा सकने वाले विभिन्न नैतिक विचारों पर चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- पर्यावरण से संबंधित नीति-निर्माण से आशय पर्यावरण की रक्षा के साथ सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये कानून, नियम और दिशानिर्देश विकसित करने की प्रक्रिया है।
- पर्यावरण से संबंधित नीति-निर्माण को आकार देने में नैतिक विचार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि नीतियों का उद्देश्य समाज और भावी पीढ़ियों के कल्याण को बढ़ावा देना होता है।
- इसके अलावा भारत, विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है लेकिन तीव्र औद्योगीकरण से गंभीर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। वर्तमान में वायु और जल प्रदूषण, वनों की कटाई तथा जलवायु परिवर्तन सहित कई पर्यावरणीय चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- नीतियों को लागू करने में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के साथ भारत में पर्यावरण संबंधित नीति-निर्माण ऐतिहासिक रूप से कमजोर रहा है। हालाँकि हाल के वर्षों में पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व को लोकप्रियता मिली है और भारत में भी पर्यावरण से संबंधित नीति-निर्माण में प्रगति हुई है।
मुख्य भाग:
पर्यावरण से संबंधित नीति-निर्माण में नैतिक विचारों को शामिल करना:
- नैतिक विचार पर्यावरण से संबंधित नीति-निर्माण का एक अभिन्न अंग होना चाहिये क्योंकि इन नीतियों का उद्देश्य समाज का कल्याण करना और पर्यावरण की रक्षा करना होता है। ऐसे कई तरीके हैं जिनमें नैतिक विचारों को पर्यावरण नीति-निर्माण में शामिल किया जा सकता है जैसे:
- संबंधित हितधारकों को शामिल करना: पर्यावरण से संबंधित नीति-निर्माण में नैतिक विचारों को शामिल करने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक इसमें विभिन्न हितधारकों को शामिल करना है।
- हितधारकों में स्थानीय समुदाय, नागरिक समाज संगठन और उद्योग के प्रतिनिधि शामिल हो सकते हैं। हितधारकों को शामिल करने से यह सुनिश्चित होता है कि नीति निर्माण में सभी पक्षों की चिंताओं को ध्यान में रखा गया है और इन नीतियों को लोक कल्याण को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2019 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) को शुरू किया जिसका उद्देश्य 102 शहरों में वायु प्रदूषण को कम करना है।
- इसे सरकार, नागरिक समाज और शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों के हितधारकों को शामिल करते हुए भागीदारीपूर्ण दृष्टिकोण के माध्यम से विकसित किया गया था।
- हितधारकों की भागीदारी से सुनिश्चित होगा कि नीति को सभी पक्षों की चिंताओं को हल करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- निवारक सिद्धांत: निवारक सिद्धांत ऐसा प्रमुख नैतिक सिद्धांत है जिसे पर्यावरण नीति-निर्माण में शामिल किया जाना चाहिये।
- इस सिद्धांत के अनुसार वैज्ञानिक निश्चितता के अभाव में पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान को रोकने के लिये निवारक उपाय किये जाने चाहिये।
- इस सिद्धांत से सुनिश्चित होता है कि नीतियों को अनिश्चितता की स्थिति में भी पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2017 में भारत सरकार ने वायु प्रदूषण की चिंताओं के कारण दीपावली पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में पटाखों की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- यह प्रतिबंध निवारक सिद्धांत के आधार पर लागू किया गया था क्योंकि पटाखों से वायु प्रदूषण होने के साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान होने के वैज्ञानिक प्रमाण थे।
- सतत् विकास लक्ष्य: सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) पर्यावरण नीति-निर्माण में नैतिक विचारों को शामिल करने के लिये रूपरेखा प्रदान करते हैं।
- एसडीजी, 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए 17 लक्ष्यों का एक समूह है जिसका उद्देश्य सतत् विकास को बढ़ावा देना और जलवायु परिवर्तन तथा पर्यावरणीय क्षरण सहित वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना है।
- उदाहरण के लिये भारत सरकार ने सतत् विकास पर बल देने के साथ एसडीजी को अपनी नीति-निर्माण में शामिल किया है।
- वर्ष 2018 में सरकार ने जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) की शुरुआत की, जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और सतत् कृषि को बढ़ावा देने के उपाय शामिल हैं।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन: पर्यावरणीय प्रभाव आकलन का उपयोग नीतियों के कार्यान्वयन से पहले इसके संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन करने के लिये किया जा सकता है।
- इससे सुनिश्चित होता है कि नीति निर्माता अपनी नीतियों के संभावित पर्यावरणीय परिणामों से अवगत हैं और उनके नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिये कदम उठा सकते हैं।
- पर्यावरण न्याय: पर्यावरणीय न्याय का आशय नस्ल, रंग, राष्ट्रीय मूल एवं आय के इतर पर्यावरणीय कानूनों, विनियमों और नीतियों के प्रवर्तन,विकास एवं कार्यान्वयन में सभी लोगों की सार्थक भागीदारी सुनिश्चित करना है।
- पर्यावरण न्याय से सुनिश्चित होता है कि पर्यावरण संरक्षण के लाभ और हानियों में समाज के सभी सदस्यों की सामान भागीदारी हो।
निष्कर्ष:
- पर्यावरण से संबंधित नीति-निर्माण में नैतिक विचारों को शामिल करने से सतत् विकास को बढ़ावा मिलने और पर्यावरण की रक्षा होने के साथ सुनिश्चित होता है कि नीतियों को सभी के कल्याण को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किया गया है। सरकार ने पर्यावरण से संबंधित नीति-निर्माण में काफी प्रगति की है लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिये और अधिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है कि नीतियों को प्रभावी ढंग से विकसित और क्रियान्वित किया जाए।