सार्वजनिक जीवन में सिविल सेवक सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को किस प्रकार बढ़ावा दे सकते हैं? (150 शब्द)
16 Mar, 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के महत्त्व को संक्षेप में समझाते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को बढ़ावा देने के तरीकों पर चर्चा कीजिये।
तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
सत्यनिष्ठा और ईमानदारी सार्वजनिक जीवन के आवश्यक तत्त्व हैं। इनसे यह सुनिश्चित होता है कि सरकार जवाबदेह और पारदर्शी होने के साथ नागरिकों को सेवाएँ प्रदान करने में कुशल है। सिविल सेवक इन मूल्यों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि इनके द्वारा ही नीतियों को लागू करने एवं सार्वजनिक धन का प्रबंधन करने के साथ लोगों को सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। इसलिये यह आवश्यक है कि सिविल सेवक अपने आचरण और निर्णय लेने में सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को प्रदर्शित करें।
मुख्य भाग:
सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को बढ़ावा देने के तरीके:
नैतिक दिशानिर्देश विकसित करना: सिविल सेवकों के लिये स्पष्ट नैतिक दिशानिर्देश निर्धारित होने चाहिये जिनसे इनके अपेक्षित व्यवहार के मानकों को परिभाषित किया जा सके। इन दिशानिर्देशों को सभी कर्मचारियों को प्रभावी रूप से संप्रेषित करने के साथ इन कर्मचारियों को दिशानिर्देशों के निहितार्थों को समझने में मदद करने के लिये प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
व्हिसलब्लोइंग को प्रोत्साहित करना: सिविल सेवकों को संगठन के अंदर होने वाले किसी भी गलत कार्य या अनैतिक व्यवहार की रिपोर्ट करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
कर्मचारी, प्रतिशोध के डर के बिना ऐसे मामलों की रिपोर्ट कर सकें ऐसा सुनिश्चित करने हेतु व्हिसलब्लोइंग तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
आचार संहिता को लागू करना: सिविल सेवकों को आचार संहिता का पालन करना चाहिये। बदलती परिस्थितियों के अनुसार इस संहिता की नियमित रूप से समीक्षा करने के साथ इसे अद्यतन किया जाना चाहिये।
उदाहरण के लिये भारत में केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 में उपहारों, हितों के टकराव और वित्तीय सत्यनिष्ठा से संबंधित प्रावधानों सहित सिविल सेवकों के अपेक्षित आचरण को शामिल किया गया है।
पारदर्शिता को बढ़ावा देना: सिविल सेवकों को अपनी निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शी होना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उनके कार्य सार्वजनिक हितों द्वारा निर्देशित हों।
सूचना तक सार्वजनिक पहुँच को प्रोत्साहित करने के साथ लोक सेवकों को उनके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये।
उदाहरण के लिये भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 द्वारा नागरिकों को सरकार के पास उपलब्ध जानकारी तक पहुँच प्रदान की गई है जिससे सरकारी कार्य में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिला है।
भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को मजबूत करना: सिविल सेवकों को अपनी संपत्ति, देनदारियों और वित्तीय विवरणों को प्रदर्शित करना चाहिये। हितों के टकराव को रोकने के लिये भ्रष्टाचार विरोधी उपाय किये जाने चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि लोक सेवक भ्रष्ट आचरण में शामिल न हों।
निष्कर्ष:
सार्वजनिक क्षेत्र के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु ईमानदारी और सत्यनिष्ठा आवश्यक है। सिविल सेवक इन मूल्यों को बढ़ावा देने और नैतिक मानकों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नैतिक दिशानिर्देश विकसित करके सिविल सेवक यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे सार्वजनिक हित और लोक कल्याण में कार्य करें।
इन बिंदुओं को समझाने के लिये विभिन्न देशों के उदाहरणों का उपयोग किया गया है लेकिन यह ध्यान रखना आवश्यक है कि सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को बढ़ावा देना एक वैश्विक चुनौती है जिसके लिये सभी हितधारकों को प्रयास करने की आवश्यकता है।