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प्रश्न :
प्रतिनिधि और विधायी निकाय के रूप में अपनी भूमिका निभाने में भारतीय संसद के समक्ष आने वाली चुनौतियों और इन चुनौतियों को हल करने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
07 Mar, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय संसद के समक्ष विद्यमान चुनौतियों पर संक्षेप में चर्चा करते हुए अपना उत्तर शुरू कीजिये।
- इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये किये गए उपायों पर चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- भारतीय संसद (जिसमें राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा शामिल हैं) देश की सर्वोच्च विधायी संस्था है। यह कानून बनाने और नागरिकों के हितों का ध्यान रखने के लिये जिम्मेदार है। हालाँकि भारतीय संसद को पिछले कुछ वर्षों में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है जिससे एक प्रतिनिधि और विधायी निकाय के रूप में अपनी भूमिकाओं को प्रभावी ढंग से पूरा करने में इसके समक्ष बाधा उत्पन्न हुई है।
मुख्य भाग:
- भारतीय संसद के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ:
- इसकी बैठक में व्यवधान और स्थगन होना: भारतीय संसद के समक्ष सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौतियों में से एक सत्र के दौरान बार-बार व्यवधान होना और इसका स्थगन होना है।
- विपक्षी दल अक्सर सदन की कार्यवाही को बाधित करते हैं जिससे इसके समय और संसाधनों की बर्बादी होती है। इससे संसद को अपनी विधायी और प्रतिनिधि भूमिकाओं को पूरा करने में बाधा उत्पन्न होती है।
- उदाहरण के लिये पेगासस स्पाइवेयर विवाद और कृषि कानूनों सहित विभिन्न मुद्दों पर विपक्षी दलों के विरोध के कारण वर्ष 2021 में संसद का मानसून सत्र बाधित हो गया था।
- विपक्षी दल अक्सर सदन की कार्यवाही को बाधित करते हैं जिससे इसके समय और संसाधनों की बर्बादी होती है। इससे संसद को अपनी विधायी और प्रतिनिधि भूमिकाओं को पूरा करने में बाधा उत्पन्न होती है।
- सदस्यों की भागीदारी की कमी: भारतीय संसद के समक्ष एक और चुनौती सदस्यों की भागीदारी का अभाव है। कई सदस्य सत्रों के दौरान अनुपस्थित रहते हैं और यहाँ तक कि उपस्थित लोग भी बहस और चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेते हैं।
- इससे विधायी गुणवत्ता में गिरावट आती है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2021 के बजट सत्र के दौरान लोकसभा में सदस्यों की उपस्थिति दर 13.63% तक कम दर्ज की गई।
- इससे विधायी गुणवत्ता में गिरावट आती है।
- कानून का निष्प्रभावी होना: भारतीय संसद को कानून के निष्प्रभावी होने के लिये भी आलोचना का सामना करना पड़ता है। संसद द्वारा पारित विधेयकों में अक्सर स्पष्टता की कमी होती है और इन पर अच्छी तरह से विचार-विमर्श न होने से इनका अप्रभावी कार्यान्वयन होता है।
- उदाहरण के लिये सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 की सूचना आयोग की शक्तियों को कम करने और आरटीआई अधिनियम के दायरे को सीमित करने के कारण आलोचना की गई थी।
- विविधता का अभाव: भारतीय संसद में महिलाओं, अल्पसंख्यकों और हाशिये पर स्थित समुदायों का प्रतिनिधित्व कम है।
- उदाहरण के लिये संसद में महिलाओं का प्रतिशत केवल 14.4% है जो वैश्विक औसत (25%) से काफी कम है।
- प्रभावशीलता का अभाव: अन्य लोकतंत्रों की तुलना में भारतीय संसद का सत्र छोटा होने के साथ इसमें सदस्यों की उपस्थिति कम रहती है।
- विधेयकों को पारित होने में लंबा समय लगता है जिससे बड़ी संख्या में विधेयक लंबित रहते हैं। इसके कारण विधायी प्रक्रिया में देरी होती है।
- इसकी बैठक में व्यवधान और स्थगन होना: भारतीय संसद के समक्ष सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौतियों में से एक सत्र के दौरान बार-बार व्यवधान होना और इसका स्थगन होना है।
- इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये किये गए उपाय:
- आचार संहिता: भारतीय संसद ने अपने सदस्यों के लिये एक आचार संहिता अपनाई है जिससे सत्र के दौरान उनके व्यवहार और आचरण के लिये दिशा-निर्देश मिलता है। आचार संहिता का उद्देश्य सदन में मर्यादा और शिष्टता को बढ़ावा देना, व्यवधानों को रोकना और सदस्यों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना है।
- वर्ष 2021 में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदस्यों से आचार संहिता का पालन करने और बजट सत्र के दौरान प्रतिकूल व्यवहार से बचने का आग्रह किया था।
- प्रौद्योगिकी को अपनाना: भारतीय संसद ने अपनी कार्यप्रणाली में सुधार के लिये प्रौद्योगिकी को अपनाने पर बल दिया है। सदस्यों के बीच बेहतर संचार की सुविधा और दूरस्थ भागीदारी को सक्षम करने के लिये ऑनलाइन पोर्टल और ऐप विकसित किये गए हैं।
- उदाहरण के लिये COVID-19 महामारी के दौरान संसद ने वर्चुअल सत्र आयोजित करने और दूरस्थ भागीदारी को सक्षम करने के लिये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को अपनाया था।
- समिति प्रणाली: भारतीय संसद द्वारा विधेयकों को सदन में प्रस्तुत किये जाने से पहले मूल्यांकन करने हेतु विभिन्न समितियों की स्थापना की गई है। यह समितियाँ विशेषज्ञ राय प्रदान करने के साथ यह सुनिश्चित करती हैं कि इसके विधायी परिणाम प्रभावशाली हों।
- अनुशासनात्मक कार्रवाई: संसद द्वारा प्रतिकूल व्यवहार में लिप्त सांसदों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इस कार्रवाई में सदन से निलंबन और निष्कासन शामिल है।
- आचार संहिता: भारतीय संसद ने अपने सदस्यों के लिये एक आचार संहिता अपनाई है जिससे सत्र के दौरान उनके व्यवहार और आचरण के लिये दिशा-निर्देश मिलता है। आचार संहिता का उद्देश्य सदन में मर्यादा और शिष्टता को बढ़ावा देना, व्यवधानों को रोकना और सदस्यों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना है।
निष्कर्ष:
- भारतीय संसद को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिससे विधायी और प्रतिनिधि निकाय के रूप में अपनी भूमिकाओं को प्रभावी ढंग से पूरा करने की इसकी क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है। हालाँकि आचार संहिता अपनाने, प्रौद्योगिकी अपनाने, समिति प्रणाली और अनुशासनात्मक कार्रवाई जैसे उपाय इन चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।
- भारतीय संसद को पारदर्शिता, जवाबदेही और समावेशिता को बढ़ावा देने और एक लोकतांत्रिक संस्था के रूप में प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये ऐसे उपायों को अपनाना जारी रखना आवश्यक है।
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