1857 का विद्रोह केवल एक सिपाही विद्रोह नहीं था बल्कि यह ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ शुरू होने वाला स्वतंत्रता संग्राम था। इस विद्रोह के कारणों, प्रकृति और परिणामों के संदर्भ में इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- 1857 के विद्रोह का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- इसके कारणों, प्रकृति और परिणामों की विवेचना कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
1857 का भारतीय विद्रोह (जिसे आमतौर पर सिपाही विद्रोह के रूप में जाना जाता है) भारत के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना है। यह भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ पहला बड़ा विद्रोह था। यह विद्रोह भारतीय सैनिकों या सिपाहियों द्वारा शुरू किया गया था, जो ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवारत थे। कुछ इसे केवल सैनिक विद्रोह मानते हैं जबकि अन्य इसे ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ शुरू हुए स्वतंत्रता संग्राम के रूप में देखते हैं।
मुख्य भाग:
- इस विद्रोह के कारण:
- 1857 के विद्रोह के अनेक कारण (आर्थिक और सामाजिक से लेकर राजनीतिक और धार्मिक तक) थे।
- आर्थिक: भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों का नकारात्मक प्रभाव पड़ा था जिसने भारतीय कारीगरों और व्यापारियों को व्यवसाय से बाहर कर दिया था।
- कंपनी की भू-राजस्व नीतियों के कारण भी भारत के कई हिस्सों में व्यापक गरीबी और अकाल की स्थिति उत्पन्न हुई थी।
- सामाजिक: अंग्रेजों ने कुछ ऐसी नीतियों की शुरुआत की थी जो पारंपरिक सत्ता संरचनाओं और भारतीय कुलीनों एवं उच्च जाति के हिंदुओं के विशेषाधिकारों के लिये खतरा थीं।
- अंग्रेजी शिक्षा की शुरूआत और ईसाई मिशनरियों के आगमन ने भी भारतीय अभिजात वर्ग के बीच सांस्कृतिक खतरे की भावना पैदा की।
- धार्मिक: धार्मिक कारकों ने भी इस विद्रोह में भूमिका निभाई थी। अंग्रेजों द्वारा शुरू किये गए नए धार्मिक सुधारों और प्रथाओं की शुरूआत से कई भारतीयों, विशेषकर सिपाहियों (जो ज्यादातर हिंदू और मुसलमान थे) के धार्मिक विश्वासों पर प्रश्नचिन्ह लगा था।
- राजनीतिक: अंग्रेजों ने कई भारतीय राज्यों पर कब्जा कर लिया था और भारतीय शासकों को नाममात्र का शासक बना दिया था। लॉर्ड डलहौजी द्वारा शुरू किये गए व्यपगत के सिद्धांत के कारण कई भारतीय शासकों में असंतोष उत्पन्न हुआ था।
- इस विद्रोह की प्रकृति:
- व्यापक भागीदारी: 1857 का विद्रोह केवल सिपाहियों का विद्रोह नहीं था बल्कि इसमें भारतीय समाज के विभिन्न वर्ग शामिल थे। सिपाही मात्र शुरुआती उत्प्रेरक थे, लेकिन जल्द ही यह विद्रोह समाज के अन्य हिस्सों में फैल गया था जिसमें किसान, कारीगर और यहाँ तक कि कुछ शासक वर्ग भी शामिल थे।
- यह विद्रोह उत्तरी भारत तक ही सीमित नहीं था बल्कि यह बंगाल, बिहार और मद्रास सहित देश के अन्य हिस्सों में फैल गया था।
- गठबंधनों पर बल देना: विद्रोहियों का स्पष्ट उद्देश्य ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकना और एक स्वतंत्र भारतीय राज्य की स्थापना करना था।
- विद्रोहियों ने कानपुर के नाना साहब और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई समेत विभिन्न भारतीय शासकों के साथ गठबंधन किया था जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था।
- इस दौरान विद्रोहियों की स्वतंत्र भारतीय राज्य के संदर्भ में स्पष्ट दृष्टि थी इसमें कुछ नेताओं ने स्वतंत्रता के बाद समाज में पारंपरिक भारतीय मूल्यों की स्थापना का प्रस्ताव दिया था और अन्य ने आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण की वकालत की थी।
- विद्रोह के परिणाम:
- 1857 के विद्रोह के भारत और ब्रिटिश साम्राज्य दोनों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े थे जैसे:
- बाँटो और राज करो की नीति: इसके तत्काल प्रभाव के रूप में अंग्रेजों द्वारा विद्रोह का क्रूरता से दमन किया गया था जिसके परिणामस्वरूप हजारों भारतीयों की मौत हुई थी।
- अंग्रेजों ने भारतीय प्रतिरोध को कमजोर करने और भविष्य के विद्रोह को रोकने के लिये बाँटो और राज करो की नीतियों को भी लागू किया था।
- ब्रिटेन को सत्ता का हस्तांतरण होना: इसके पश्चात ब्रिटिश क्राउन ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया था तथा ब्रिटिश सरकार ने कुछ शिकायतों को दूर करने के लिये विभिन्न सुधारों की शुरुआत की थी।
- प्रमुख सुधार करना: भारतीय उद्योगों को अधिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये आर्थिक नीतियों को संशोधित किया गया और भारतीय किसानों को अधिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये भू-राजस्व नीतियों में सुधार किया गया था।
- भारतीय राष्ट्रवाद का पुनरुत्थान होना: इस विद्रोह का भारतीय राष्ट्रवाद पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था। कई इतिहासकार इसे भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में पहला महत्त्वपूर्ण कदम मानते हैं।
- बहादुर शाह ज़फर सहित विद्रोह के नेतृत्वकर्ता, भारतीय प्रतिरोध के प्रतीक बन गए और उनकी विरासत ने महात्मा गांधी सहित बाद के भारतीय राष्ट्रवादियों को प्रेरित किया।
निष्कर्ष:
इस विद्रोह का ब्रिटिश जनता और सरकार पर भी काफी प्रभाव पड़ा था जिससे ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों का पुनर्मूल्यांकन किया गया था तथा भारतीय मांगों के प्रति अधिक समझौतावादी दृष्टिकोण को अपनाया गया था। इसलिये इसे स्वतंत्रता के लिये होने वाला प्रथम संग्राम कहा जा सकता है क्योंकि यह पहली बार था जब विभिन्न क्षेत्रों, धर्मों और सामाजिक समूहों से संबंधित लोग भारतीय ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिये एक साथ आए थे। ये सभी औपनिवेशिक उत्पीड़न से स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहते थे और अपने को पुनर्स्थापित करना चाहते थे।