प्रश्न :
श्रद्धा शर्मा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में एक वरिष्ठ सिविल सेवक हैं। वह पिछले 20 वर्षों से सेवारत हैं और इन्हें ईमानदार, सक्षम और निष्पक्ष सिविल सेवक के रूप में जाना जाता है। इनके विभाग को एक बड़े निगम को पर्यावरणीय मंजूरी देने का काम सौंपा गया है जो एक वन क्षेत्र में नया कारखाना स्थापित करना चाहता है।
श्रद्धा शर्मा इस बात से अवगत हैं कि इस परियोजना के गंभीर पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं जिसमें वनों की कटाई, जैव विविधता की हानि और प्रदूषण होना शामिल हैं। वह यह भी जानती हैं कि इस निगम का देश के अन्य भागों में पर्यावरणीय मानदंडों और विनियमों का उल्लंघन करने का इतिहास रहा है।
श्रद्धा शर्मा पर इस निगम की ओर से मंजूरी देने का काफी दबाव बना हुआ है क्योंकि इससे हजारों रोज़गार सृजित होने के साथ निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। दूसरी ओर इन पर पर्यावरण कार्यकर्ताओं और गैर सरकारी संगठनों का भी काफी दबाव बना हुआ है जो संभावित पर्यावरणीय और अन्य सामाजिक नुकसानों का हवाला देते हुए इस मंजूरी को अस्वीकार करने का आग्रह कर रहे हैं।
इस संदर्भ में श्रद्धा शर्मा विकास को बढ़ावा देने तथा रोज़गार सृजित करने के रूप में अपने कर्त्तव्य और पर्यावरण तथा स्थानीय समुदायों के हितों की रक्षा करने के रूप में अपने कर्त्तव्य के बीच दुविधा का सामना कर रही हैं। इस संदर्भ में इन्हें पर्यावरण मंजूरी देने या न देने का फैसला करना है और इनके इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे।
प्रश्न. उपर्युक्त मामले में अपना निर्णय लेने के क्रम में श्रद्धा शर्मा को किन कारकों पर विचार करना चाहिये? इस नैतिक द्वंद के संभावित समाधान क्या हैं और प्रत्येक समाधान में शामिल दुविधाएँ क्या हैं?
17 Feb, 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- मामले की संक्षिप्त व्याख्या करते हुए अपना उत्तर शुरू कीजिये।
- मामले में शामिल विभिन्न हितधारकों तथा नैतिक मुद्दों और दुविधाओं के बारे में चर्चा कीजिये।
- मामले में शामिल निर्णय लेने वाले कारकों, संभावित समाधान और दुविधाओं पर चर्चा कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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भूमिका
यह मामला पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में कार्यरत एक वरिष्ठ सिविल सेवक श्रद्धा शर्मा से संबंधित है, जहाँ वह फैक्ट्री स्थापित करने के लिये बड़े निगमों को पर्यावरण मंजूरी देने का कार्य करती हैं। इसके अलावा उन्हें कॉर्पोरेट और जलवायु कार्यकर्ता दोनों के दबाव का सामना करना पड़ता है, जिससे प्रस्ताव को स्वीकृत या अस्वीकृत करने के संदर्भ में श्रद्धा के लिये नैतिक दुविधा पैदा हो जाती है।
मुख्य भाग
- शामिल हितधारक:
- श्रद्धा शर्मा, वरिष्ठ सिविल सेवक
- व्यापार संघ,
- स्थानीय समुदाय,
- पर्यावरण कार्यकर्त्ता और गैर सरकारी संगठन,
- समाज,
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
- शामिल नैतिक मुद्दे:
- हितों का टकराव: सुश्री शर्मा निगम की ओर से मंजूरी देने के लिये अत्यधिक दबाव की स्थिति में हैं, जो हितों के टकराव के बारे में चिंता पैदा करता है।
- पारदर्शिता और निष्पक्षता: खुली और सहभागी निर्णय लेने की प्रक्रिया के साथ पर्यावरण मंजूरी देने का निर्णय पारदर्शी और निष्पक्ष होना चाहिये।
- सामाजिक न्याय: स्थानीय समुदायों पर परियोजना का संभावित प्रभाव सामाजिक न्याय और स्वदेशी समुदायों के अधिकारों के बारे में नैतिक प्रश्न उठाता है।
- सत्यनिष्ठा और ईमानदारी: सुश्री शर्मा की प्रतिष्ठा ईमानदार, सक्षम और निष्पक्ष अधिकारी होने की है, जो सार्वजनिक सेवा में सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के महत्त्व के बारे में नैतिक प्रश्न उठाती है।
- सुश्री शर्मा को अपना निर्णय लेने में निम्न कारकों पर विचार करना चाहिये:
- पर्यावरणीय प्रभाव: सुश्री शर्मा को वनोन्मूलन, जैव विविधता की हानि और प्रदूषण सहित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करना चाहिये।
- उन्हें परियोजना के दीर्घकालिक पारिस्थितिक परिणामों के साथ-साथ स्थानीय समुदायों पर प्रभाव पर भी विचार करना चाहिये।
- सामाजिक प्रभाव: उन्हें लोगों के विस्थापन और उनकी आजीविका के व्यवधान सहित स्थानीय समुदायों पर परियोजना के प्रभाव का आकलन करना चाहिये।
- कॉर्पोरेट ट्रैक रिकॉर्ड: सुश्री शर्मा को देश के अन्य हिस्सों में पर्यावरण नियमों और विनियमों के संबंध में निगम के पिछले रिकॉर्ड की जाँच करनी चाहिये।
- यदि निगम का नियमों का उल्लंघन करने का इतिहास रहा है, तो यह एक संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र में एक नई परियोजना के लिये उपयुक्त नहीं हो सकता है।
- आर्थिक लाभ: सुश्री शर्मा को परियोजना के संभावित आर्थिक लाभों पर भी विचार करना चाहिये, जैसे रोज़गार सृजन और निवेश की वह राशि जो निगम इस क्षेत्र में लाने को तैयार है।
- उन्हें स्थानीय अर्थव्यवस्था एवं क्षेत्र के व्यापक सामाजिक और आर्थिक विकास पर परियोजना के प्रभाव पर भी विचार करना चाहिये।
- कानूनी दायित्व: सुश्री शर्मा को अपने विभाग और देश के कानूनों तथा विनियमों का पालन करना चाहिये। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिये कि निगम पर्यावरण मंजूरी देने से पहले सभी कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करता है।
- इस नैतिक दुविधा के संभावित समाधानों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- शर्तों के साथ पर्यावरण मंजूरी: सुश्री शर्मा पर्यावरण मंजूरी दे सकती हैं, लेकिन परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये निगम पर कड़ी शर्तें लगा सकती हैं।
- शर्तों में प्रतिपूरक वनीकरण, प्रदूषण नियंत्रण के उपाय और स्थानीय समुदायों के लिये सामाजिक कल्याण के उपाय शामिल हो सकते हैं।
- दुविधाएँ: इस स्थिति में शामिल दुविधाओं में निगम द्वारा शर्तों को पूरा नहीं करने की संभावना शामिल है, जिससे दीर्घकालिक पर्यावरणीय क्षति होती है।
- यदि परियोजना पर्यावरणीय मानदंडों और विनियमों को पूरा करने में विफल रहती है तो इससे विभाग की प्रतिष्ठा को भी नुकसान हो सकता है।
- पर्यावरण मंजूरी का अस्वीकरण: सुश्री शर्मा परियोजना की संभावित पर्यावरणीय और सामाजिक लागतों का हवाला देते हुए पर्यावरण मंजूरी को अस्वीकार कर सकती हैं।
- यह निर्णय पर्यावरण की रक्षा करेगा और स्थानीय समुदायों के हितों की रक्षा करेगा।
- दुविधाएँ: इस समाधान में शामिल दुविधाओं में संभावित आर्थिक लाभों का नुकसान शामिल है, जैसे रोज़गार सृजन और निवेश।
- इसका परिणाम निगम की कानूनी चुनौतियों के रूप में भी हो सकता है और यह विकास विरोधी होने के कारण विभाग की छवि को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
- विशेषज्ञ की राय: सुश्री शर्मा पारिस्थितिकीविदों, पर्यावरणविदों और अन्य प्रासंगिक हितधारकों जैसे पर्यावरण कार्यकर्त्ता, गैर सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदाय से विशेषज्ञ राय ले सकती हैं और एक सूचित निर्णयन हेतु पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन का लाभ उठा सकती हैं।
- इस दृष्टिकोण में निर्णयन से पहले सभी हितधारकों के साथ जुड़ना और सभी विकल्पों की तुलना शामिल होगा।
- दुविधाएँ: यदि पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट से पता चलता है कि पर्यावरण का क्षरण हो रहा है, तो निगम को कारखाने के लिये एक वैकल्पिक स्थान की पहचान करने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा जो महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय क्षति या स्थानीय समुदायों को नुकसान नहीं पहुँचाएगा।
- यदि पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट परियोजना के लिये अनुमोदन प्रदान करती है और सुझाव देती है कि पर्यावरण को कोई या बहुत कम नुकसान नहीं होगा, तो मंजूरी दी जानी चाहिये क्योंकि इससे रोज़गार पैदा होगा और उस क्षेत्र के आर्थिक उत्पादन में वृद्धि होगी।
निष्कर्ष
सुश्री शर्मा को अंतिम समाधान के रूप में सभी हितधारकों को शामिल करके विशेषज्ञ की राय लेना तथा सभी को विश्वास में लेते हुए उचित नियमों और विनियमों का पालन करना शामिल है जिससे उनका निर्णय जनहित के अनुरूप होगा एवं आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के प्रतिस्पर्धी हितों के संतुलन हेतु एक लोक सेवक के रूप में उनके कर्तव्य के अनुरूप है।