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प्रश्न :
हम शिक्षा, नीतिगत पहल और जमीनी स्तर की सक्रियता के माध्यम से अधिक न्यायपूर्ण और समतायुक्त समाज बनाने के दिशा में किस प्रकार कार्य कर सकते हैं? (150 शब्द)
14 Feb, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्यायउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- न्यायसंगत और समतामूलक समाज की आवश्यकता का संक्षेप में परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- शिक्षा, नीतिगत पहल और जमीनी सक्रियता के माध्यम से न्यायसंगत और समतामूलक समाज के विकास की दिशा में सरकार द्वारा किये गए उपायों पर चर्चा कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- भारत संस्कृति, धर्म, भाषा और सामाजिक आर्थिक स्थिति के मामले में अत्यधिक विविधता वाला देश है। हालांकि इस विविधता के परिणामस्वरूप असमानता और अन्याय के साथ हाशिए पर रहने वाले समूहों को भेदभाव, गरीबी और सीमित अवसरों का सामना करना पड़ता है।
- इसलिये भारत में न्यायसंगत और समतामूलक समाज की अत्यधिक आवश्यकता है जिसमें सभी नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, रोज़गार के अवसर एवं सामाजिक सुरक्षा तक समान पहुँच प्राप्त हो। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें शिक्षा, व्यवहारिक नीतियाँ और जमीनी सक्रियता शामिल है।
मुख्य भाग:
- शिक्षा: न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज हेतु शिक्षा एक आवश्यक उपकरण है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये शिक्षा का उपयोग निम्न तरीके से किया जा सकता है जैसे:
- शिक्षा तक समान पहुँच: सभी बच्चों की (चाहे उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति कुछ भी हो) गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच होनी चाहिये। शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 को 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिये अधिनियमित किया गया था। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि यह अधिनियम प्रभावी ढंग से लागू हो।
- समावेशी शिक्षा: समावेशी शिक्षा एक ऐसी अवधारणा है जो विकलांग छात्रों सहित सभी छात्रों के लिये सीखने के समान अवसरों को संदर्भित करती है।
- सरकार ने सभी छात्रों को समावेशी शिक्षा प्रदान करने के लिये समग्र शिक्षा अभियान शुरू किया है।
- करियर मार्गदर्शन प्रदान करना: करियर मार्गदर्शन कार्यक्रम से छात्रों को भविष्य के बारे में सही निर्णय लेने में मदद मिल सकती है। नेशनल करियर सर्विस पोर्टल सरकार की एक ऐसी पहल है जिससे छात्रों को करियर मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है।
- नीतिगत पहल: प्रभावी नीतियाँ न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज का आधार होती हैं। इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु नीतियों के उपयोग के कुछ तरीके हैं जैसे:
- गरीबी उन्मूलन: भारत में गरीबी, असमानता के प्रमुख कारणों में से एक है। सरकार ने गरीबी उन्मूलन हेतु कई पहलें शुरू की हैं जैसे कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005, जो प्रत्येक ग्रामीण परिवार को न्यूनतम 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी प्रदान करता है।
- सामाजिक सुरक्षा: पेंशन और बीमा से संबंधित सामाजिक सुरक्षा नीतियों से कमजोर लोगों के लिये सुरक्षा प्रदान हो सकती है। सरकार ने कई सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ शुरू की हैं जैसे कि राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, जिसके तहत वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं और विकलांग लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- लैंगिक समानता: भारत में लैंगिक असमानता एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। सरकार ने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना जैसी कई पहलें शुरू की हैं, जिसका उद्देश्य लड़कियों की शिक्षा और सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है।
- जमीनी स्तर की सक्रियता: यह सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने हेतु एक शक्तिशाली उपकरण है। कुछ ऐसे तरीके हैं जिनसे अधिक न्यायसंगत और समतामूलक समाज हेतु जमीनी स्तर की सक्रियता का उपयोग किया जा सकता है जैसे:
- सामुदायिक गतिशीलता: समुदायों को एकजुट करने से एकजुटता की भावना पैदा होने के साथ सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा मिल सकता है। भारत में स्वयं सहायता समूहों के आंदोलन सामुदायिक एकजुटता का उत्कृष्ट उदाहरण हैं जिसने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में सहायता की है।
- अधिकारिता: नीति परिवर्तन हेतु, अधिकारिताआवश्यक है। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के माध्यम से नागरिकों को सरकार से पारदर्शिता की मांग करने का अधिकार प्राप्त हुआ है।
- सामाजिक आंदोलन: चिपको आंदोलन जैसे सामाजिक आंदोलनों ने पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
निष्कर्ष:
- न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज हेतु बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें शिक्षा, नीतिगत पहल और जमीनी स्तर की सक्रियता शामिल है। सरकार ने समता को बढ़ावा देने के लिये कई पहलें शुरू की हैं लेकिन अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
- समावेशी शिक्षा, गरीबी उन्मूलन, सामाजिक सुरक्षा और लैंगिक समानता की दिशा में प्रयास जारी रखना अनिवार्य है। जमीनी सक्रियता, समुदायों को एकजुट करने के साथ नीति परिवर्तन एवं सामाजिक आंदोलनों का समर्थन करके इन प्रयासों की पूरक बन सकती है। समन्वय के साथ कार्य करके हम भारत के समाज को अधिक न्यायसंगत और समतामूलक समाज में बदल सकते हैं।
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