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प्रश्न :
भारत के उच्च चालू खाता घाटे के कारणों पर चर्चा कीजिये और इसे दूर करने के उपाय सुझाइये। (150 शब्द)
08 Feb, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- चालू खाता घाटे का परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- भारत में उच्च चालू खाता घाटा के कारणों पर चर्चा कीजिये और इसे दूर करने के उपाय सुझाइये।
- तदनुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय
- चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) तब होता है जब किसी देश द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य उसके द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं के कुल मूल्य से अधिक हो जाता है।
- वस्तुओं के निर्यात तथा आयात के संतुलन को व्यापार संतुलन कहा जाता है। व्यापार संतुलन 'चालू खाता संतुलन' का एक हिस्सा है।
मुख्य भाग
- चालू खाता घाटे के कारक:
- बढ़ता व्यापार घाटा: भारत का व्यापार घाटा, निर्यात और आयात के बीच का अंतर, हाल के वर्षों में कच्चे तेल, सोने और अन्य वस्तुओं के आयात में वृद्धि के कारण बढ़ रहा है।
- तेल और अन्य आयातित वस्तुओं की बढ़ती कीमतों ने व्यापार घाटे को बढ़ाने में योगदान दिया है, जिससे भारत के लिये शेष विश्व के साथ अपने व्यापार को संतुलित करना अधिक कठिन हो गया है।
- गैर-आवश्यक आयात में वृद्धि: भारत अधिक पूंजीगत सामान, मध्यवर्ती सामान और उपभोक्ता वस्तुओं का आयात कर रहा है, जो चालू खाता घाटे को बढ़ा रहा है।
- निर्यात में कमी: वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा की कमी और बुनियादी ढाँचे तथा अनुसंधान एवं विकास में निवेश की कमी के कारण भारत का निर्यात सुस्त बना हुआ है।
- इसके परिणामस्वरूप लगातार व्यापार घाटा बढ़ा है, जो उच्च CAD में योगदान देता है।
- रुपये का मूल्यह्रास: एक कमज़ोर रुपया आयात को और अधिक महंगा बनाता है, जिससे चालू खाता घाटा अधिक होता है।
- उच्च राजकोषीय घाटा: भारत में उच्च राजकोषीय घाटे के कारण चालू खाता घाटा अधिक हो गया है क्योंकि सरकार को विदेशों से उधार लेकर अपने खर्च को पूरा करना पड़ता है।
- बढ़ता व्यापार घाटा: भारत का व्यापार घाटा, निर्यात और आयात के बीच का अंतर, हाल के वर्षों में कच्चे तेल, सोने और अन्य वस्तुओं के आयात में वृद्धि के कारण बढ़ रहा है।
- उच्च चालू खाता घाटे से निपटने के तरीके:
- निर्यात को बढ़ावा देना: सरकार बुनियादी ढाँचे में निवेश, कारोबारी माहौल में सुधार और नवाचार को बढ़ावा देकर निर्यात को बढ़ावा देने के लिये कदम उठा सकती है।
- यह निवेश के लिये अनुकूल वातावरण बनाकर, नौकरशाही बाधाओं को कम करके और निर्यातकों को प्रोत्साहन प्रदान करके प्राप्त किया जा सकता है।
- आवक निवेश को प्रोत्साहित करना: सरकार विनियामक बोझ को कम करके और एक अनुकूल कर व्यवस्था बनाकर तथा वित्त तक पहुँच में सुधार करके और भ्रष्टाचार को कम करके एक स्थिर कारोबारी माहौल प्रदान करके आवक निवेश को प्रोत्साहित कर सकती है।
- आयात पर नियंत्रण: सरकार घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देकर, आयात शुल्क कम करके और स्थानीय वस्तुओं तथा सेवाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करके आयात को नियंत्रित करने के लिये कदम उठा सकती है।
- बचत को प्रोत्साहन: सरकार वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देकर, वित्त तक पहुँच में सुधार करके और बचत के लिये प्रोत्साहन प्रदान करके बचत को प्रोत्साहित कर सकती है।
- यह निवेश के लिये अनुकूल वातावरण बनाकर, नौकरशाही बाधाओं को कम करके और नवाचार को बढ़ावा देकर प्राप्त किया जा सकता है।
- ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि: भारत को आयातित ऊर्जा पर अपनी निर्भरता कम करने की आवश्यकता है, जिससे इसके आयात बिल में कमी आएगी और इसके CAD में सुधार होगा।
- इसे घरेलू ऊर्जा उत्पादन बढ़ाकर, वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत विकसित करके तथा ऊर्जा दक्षता में सुधार करके प्राप्त किया जा सकता है।
- निर्यात को बढ़ावा देना: सरकार बुनियादी ढाँचे में निवेश, कारोबारी माहौल में सुधार और नवाचार को बढ़ावा देकर निर्यात को बढ़ावा देने के लिये कदम उठा सकती है।
निष्कर्ष
- भारत का उच्च CAD कारकों के संयोजन का परिणाम है, जिसमें व्यापक व्यापार घाटा, कम निर्यात आदि शामिल हैं।
- इस चुनौती से निपटने के लिये सरकार को बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है, जिसमें निर्यात को बढ़ावा देना, आवक निवेश को प्रोत्साहित करना, आयात को नियंत्रित करना और बचत को प्रोत्साहित करना शामिल है।
- इन कदमों को उठाकर, भारत विदेशी पूंजी पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है, अपने व्यापार संतुलन में सुधार कर सकता है और अधिक स्थिर और टिकाऊ अर्थव्यवस्था बन सकता है।
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