- फ़िल्टर करें :
- राजव्यवस्था
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध
- सामाजिक न्याय
-
प्रश्न :
प्रश्न. भारत में सत्ता के विकेंद्रीकरण और पंचायतों तथा नगर पालिकाओं के कामकाज पर 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
07 Feb, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन को संक्षेप में समझाते हुए अपना उत्तर शुरू कीजिये।
- भारत में सत्ता के विकेंद्रीकरण एवं पंचायतों और नगरपालिकाओं के कामकाज पर उनके प्रभाव की चर्चा कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
भूमिका
- भारत में क्रमशः 1992 और 1993 में लागू किया गया 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन का उद्देश्य सत्ता का विकेंद्रीकरण करना और स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देना था।
- इन संशोधनों ने पंचायतों (ग्रामीण स्थानीय सरकारों) और नगरपालिकाओं (शहरी स्थानीय सरकारों) से संबंधित प्रावधानों को भारत के संविधान में जोड़ा, उन्हें संवैधानिक स्थिति और शक्तियों के साथ संस्थागत निकायों के रूप में मान्यता दी। संशोधनों का उद्देश्य समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों को सशक्त बनाना और उन्हें स्थानीय निर्णय लेने में प्रत्यक्ष अधिकार प्रदान करना है।
मुख्य भाग
- शक्ति के विकेंद्रीकरण पर प्रभाव:
- 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन के कारण केंद्र और राज्य सरकारों से स्थानीय निकायों को सत्ता हस्तांतरित करने की प्रक्रिया के कारण भारत में सत्ता के विकेंद्रीकरण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
- सत्ता के इस हस्तांतरण ने प्रशासन के अधिक लोकतांत्रिक रूप को जन्म दिया है, क्योंकि यह स्थानीय समुदायों को उनके दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णयों में अधिक से अधिक सम्मिलित होने की अनुमति देता है।
- संशोधनों ने प्रशासन के अधिक सहभागी रूप को भी जन्म दिया है, क्योंकि स्थानीय समुदाय अब निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने और अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों को उत्तरदाई ठहराने में सक्षम हैं।
- 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन के कारण केंद्र और राज्य सरकारों से स्थानीय निकायों को सत्ता हस्तांतरित करने की प्रक्रिया के कारण भारत में सत्ता के विकेंद्रीकरण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
- पंचायतों के कामकाज पर प्रभाव:
- 73वाँ संविधान संशोधन का भारत में पंचायतों के कामकाज पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
- संविधान संशोधन से पहले, पंचायतों को कमज़ोर और अप्रभावी संस्थानों के रूप में देखा जाता था, जिनके पास अपने समुदायों की प्रभावी ढंग से सेवा करने के लिये आवश्यक संसाधनों और शक्तियाँ दोनों की कमी थी।
- संशोधन ने पंचायतों को एक संवैधानिक दर्ज़ा प्रदान किया है, जिससे उन्हें अपने कार्यों को करने के लिये पूंजी का एक अधिक स्थिर स्रोत और अधिक शक्तियाँ प्राप्त करने की अनुमति मिली है।
- इसने पंचायतों को अपने समुदायों की सेवा करने एवं शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और आधारभूत संरचना जैसी बुनियादी सेवाएँ प्रदान करने में अधिक प्रभावी बनने में सक्षम बनाया है।
- ऐसा ही एक उदाहरण आंध्र प्रदेश राज्य में पंचायत राज व्यवस्था की सफलता है। आंध्र प्रदेश में, पंचायतों को निर्णय लेने में बड़ी भूमिका दी गई है और विभिन्न विकास कार्यक्रमों को लागू करने का अधिकार दिया गया है।
- इससे कई सफल विकास कार्यक्रमों का निर्माण हुआ है, जैसे सड़कों, स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण, जिससे स्थानीय समुदायों को बहुत लाभ हुआ है।
- 73वाँ संविधान संशोधन का भारत में पंचायतों के कामकाज पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
- नगरपालिकाओं के कामकाज पर प्रभाव:
- नागरिकों की भागीदारी में वृद्धि: नगरपालिकाओं के कामकाज के साथ, निर्णय लेने की प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी में वृद्धि हुई है।
- उदाहरण के लिये, कुछ नगरपालिकाओं में, बजट आवंटन या नई अवसंरचनागत ढाँचा परियोजनाओं की योजना बनाने जैसे महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले निवासियों से परामर्श किया जाता है।
- पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा: नगरपालिकाओं के कामकाज ने भी पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद की है।
- उदाहरण के लिये, अहमदाबाद नगर निगम ने हरित भवनों को बढ़ावा देने के लिये कई पहलें लागू की हैं, जो कार्बन उत्सर्जन को कम करने और वायु गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करती हैं।
- नागरिकों की भागीदारी में वृद्धि: नगरपालिकाओं के कामकाज के साथ, निर्णय लेने की प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी में वृद्धि हुई है।
- पंचायतों और नगर पालिकाओं के समक्ष चुनौती:
- पूंजी, कार्यान्वयन और पदाधिकारियों की कमी: संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद, नगरपालिकाएँ पूंजी और संसाधनों के लिये राज्य सरकारों पर निर्भर बनी हुई हैं, जो बदले में प्रभावी ढंग से कार्य करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करती हैं।
- नगरपालिकाओं के समक्ष एक अन्य चुनौती सीमित कार्य और शक्तियाँ हैं। आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने के लिये ज़िम्मेदार होने के बावजूद, भारत में नगरपालिकाओं को अक्सर अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिये आवश्यक शक्तियों और संसाधनों की कमी होती है।
- भारत में कई नगरपालिकाएँ प्रशिक्षित और सक्षम अधिकारियों की कमी से जूझ रही हैं।
- इसका परिणाम शहरी नियोजन और बुनियादी ढाँचे के विकास जैसे क्षेत्रों में तकनीकी विशेषज्ञता की कमी के रूप में सामने आता है, जो नागरिकों को सेवाओं के वितरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
निष्कर्ष
- 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन का सत्ता के विकेंद्रीकरण एवं पंचायतों और नगर पालिकाओं को सत्ता हस्तांतरित करके तथा उन्हें संवैधानिक दर्ज़ा एवं अधिक अधिकार देकर भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने की दिशा में सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- इसके परिणामस्वरूप प्रशासन का एक अधिक लोकतांत्रिक और सहभागी रूप सामने आया है, जिसमें स्थानीय समुदायों का उनके जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णयों में अधिक अधिकार है।
- हालाँकि, पंचायतों और नगरपालिकाओं को पूंजी की कमी और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो प्रभावी ढंग से कार्य करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करती हैं। जिसे सरकार द्वारा अभिनव समाधान निकालकर हल करने की आवश्यकता है ताकि विकेंद्रीकृत शासन का प्रभाव जमीनी स्तर पर जनता तक पहुँच सके।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print